पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५२८

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मोगरा २८१९ 1122 'मैं का वह रूप जो उसे कर्ता-कारक के अतिरिक्त और + संज्ञा पुं० अधिकता । बहुतायत । ज्यादती । जैसे,- किसी कारक-चिह्न लगने के पहले प्राप्त होता है । जैसे, . वहाँ तो पशुओं के लिए चारे पानी का बा मोकला मोको, मोपै इत्यादि। मोंगरा-संज्ञा पुं० [सं० मुग्दर ] [स्त्री. मोंगरी ] काठ का बना मोका-संशा पुं० [ देश. ] मदरास, मध्य भारत और कुमायूं के हुआ एक प्रकार का यौना जिससे मेख इत्यादि ठोंकी जंगलों में होनेवाला एक प्रकार का वृक्ष जिसके पत्ते प्रति- जाती है। वर्ष सब जाते है। इसकी लकड़ी की और सफेदी लिए संज्ञा पुं० (७) दे० "मोगरा" । (२) दे. "मुंगरा"। भूरे रंग की होती है और आरायशी सामान बनाने के काम मोंगला-संज्ञा पुं० [देश॰] मध्यम श्रेणी का और साधारणतः आती है। खरावने पर इसकी लकड़ी बहुत चिकनी निक- बाज़ार में मिलनेवाला केसर । वि० दे० 'केसर"। लती है और इसके ऊपर रंग और रोगन अधिक खिलता मोछ-संज्ञा स्त्री० दे० "मूंछ"। उ०-इसके सहारे स्वदेश तक है। इसकी लकड़ी न तो फटती है और न ही होती है। श्रीमान् मोंछों पर ताव देते चले जा सकते हैं। बाल यह वृक्ष वर्षा ऋतु में बीजों से उगता है। इसे गेठा भी मुकुंद गुप्त। कहते हैं। मोढ़ा-संशा पुं० [सं० मी, प्रा० मुड्ढा=आधार ] (1) बाँस, संशा पुं०(१) दे. "मोखा"। (२) दे. "मौका"। सरकंडे या बेत का बना हुआ एक प्रकार का ऊँचा गोला- मोक्ष-संज्ञा पुं० [सं०] (1) किसी प्रकार के बंधन से छूट जाना । कार आपन जो प्राय: तिरपाई से मिलता-जुलता होता है। मोचन । छुटकारा । (२) शास्त्रों और पुराणों के अनुसार (२) बाहु के जोब के पास कंधे का घेरा । कंधा। जीव का जन्म और मरण के बंधन से छुट जाना । आवा- यौ०-सीना-मादा छाती और कंधा । गमन से रहित हो जाना । मुक्ति । नजात । मो*-सर्व० [सं० मम ] (१) मेरा । उ-मो संपति जदुपति । विशेष-हमारे यहाँ दर्शनों में कहा गया है कि जीव अज्ञान सदा विपति बिदारनहार ।-विहारी। (२) अवधी और के कारण ही बार बार जन्म लेता और मरता है। इस जन्म- ग्रज भाषा में "मैं" का वह रूप जो उसे कर्ताकारक के मरण के बंधन से छूट जाने का ही नाम मोक्ष है । जब अतिरिक्त और किसी कारक-चिह्न लगने के पहले प्राप्त होता मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है, तब फिर उसे इस संसार में है। जैसे, मोकों, मोसों इत्यादि । आकर जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती। शास्त्रकारों मोई-संज्ञा स्त्री० [हिं० मोना घी में साना हुआ आटा जो छीट ने जीवन के चार उद्देश्य बतलाए है-धर्म, अर्थ, काम की छपाई के लिए काला रंग बनाने में कसीस और धी और मोक्ष । इनमें से मोक्ष परम अभीष्ट अथवा परम पुरु- के फूलों के काढ़े में डाला जाता है। षार्थ कहा गया है। मोक्ष की प्राप्ति का उपाय आत्मतत्व संज्ञा स्त्री० [ देश ] एक प्रकार की जड़ी जो मारवाद देश या प्रतख का साक्षात् करना बतलाया गया है। न्याय- में होती है । कहीं कहीं इसे ग्वालिया भी कहते हैं। दर्शन के अनुसार दुःख का आत्यंतिक नाश ही मुक्ति या मोकदमा -संज्ञा पुं० दे० "मुकदमा"। मोक्ष है। सांप के मत से तीनों प्रकार के तापों का समूल मोकना-क्रि० स० [सं० मुक्त, हिं. मुकना ] (1) छोड़ना । नाश ही मुक्ति या मोक्ष है। वेदात में पूर्ण आत्मज्ञान- परित्याग करना । उ.-कैपित स्वास त्रास अति मोकति द्वारा माया-संबंध से रहित होकर अपने शुन्छ प्रा स्वरूप ज्यों मृग केहरि कोर । —सूर । (२) क्षिप्त करना । फेंकना । का बोध प्राप्त करना मोक्ष है । तात्पर्य यह कि सब प्रकार उ०—ठान्यौ तहाँ एक बालै बिलोक्यौ । रोक्यो नहीं जोर के सुस्व-दुःख और मोह आदि का छूट जाना ही मोक्ष है । मोक्ष नाराच मोक्यौ । केशव । की कल्पना स्वर्ग-नरक आदि की कल्पना से पीछे की और मोकल*-वि० [सं० मुक्त, हिं० मुकना] छूटा हुआ । जो बैंधा न उसकी अपेक्षा विशेष संस्कृत तथा परिमार्जित है। स्वर्ग की हो। आज़ाद । स्वच्छंद । उ०-(क)जोबन जरब महारूप के कल्पना में यह आवश्यक है कि मनुष्य अपने किए हुए पुण्य गरब गति मदन के मद मद मोकल मतंग की। मतिराम । या शुभ कर्म का फल भोगने के उपरांत फिर इस संसार में (ख) गोकुल में मोकल फिर गली गली गज प्रेम । अधोगा आकर जन्म ले; इससे उसे फिर अनेक प्रकार के कष्ट भोगने ते जाउ लै तुम अपनो सब नेम।--सनिधि। पवेंगे। पर मोक्ष की कल्पना में यह बात नहीं है। मोक्ष मोकला-वि० [हिं० मोकल ] (१) अधिक चौड़ा । कुशादा। मिल जाने पर जीव सदा के लिए सब प्रकार के बंधनों (२) खुला हुआ। छुटा हुआ। स्वच्छंद । उ०-कविरा और कष्टों आदि से छूट जाता है। सोई सूरमा जिन पाँचो राखे चूर। जिनके पाँचो मोकले (३) मृत्यु । मौत । (७) पतन । गिरना । (५) पॉटर का तिनस साहेब दूर ।-कबीर ।