पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५३०

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मोट २८२१ मोटाई मोट-संज्ञा स्त्री० [हिं० मोटरी ] गठरी । मोटरी । उ०—(क) जोग अधिक दूरी पर हो । पतला का उलटा । दबीज । दलदार । मोट सिर बोम आनि तुम कत धौं घोष उतारी।—सूर । गादा । जैसे, मोटा कागज, मोटा कपड़ा, मोटा तन्ना । (ख) नट न सीम माबित भई लुटी सुखन की मोट । 'चुप (३) जिसका घेरा या मान आदि साधारण में अधिक हो। करिये चारी करति सारी परी सरोट ।-बिहारी । (ग) ' जैसे, मोटा डंडा, मोटा घड़, मोटी कलम ।। नाम ओट लेत ही निखोट होत स्वोटे खल, चोट बिनु मोट । मुहा०--मोटा अपामी-जिनके पास अथिका धन हो । अमीर । पाय भयो न निहाल को। तुलसी। मोटा भाग्य-सौभाग्य । ग्युशकिस्मता । उ.--(क) महज संज्ञा पुं० चमड़े का बड़ा थैला जिसके द्वारा खेत सींचने के संतोपहि पाइप दाद मोटे भाग ।-दादू । (ख) सूरदाग्य लिए कुएँ से पानी निकाला जाता है। चरसा। पुर । उ० प्रभु मुदित जसोदा भाग बड़े करमन की मोदी ।सूर । संगति छोड़ि कर असरारा । उबहे भोट नरक की धारा ।- (४) जो ख़ब चूर्ण न हुआ हो। जिसके कण ख़ब महीन कवीर। न हो गए हों। दरदरा । जैसे,—यह आटा मोटा है।

  • वि० [हिं० मोटा] (१) जो बारीक न हो। मोटा। (५) बढ़िया या सूक्ष्म का उल्टा। निम्न कोटि का । घटिया।

(२) कम मोल का । साधारण । उ०-भूमि सयन पट मोट स्वराय । जैसे, मोटा अनाज, मोटा कपड़ा, मोटी अक्ल । पुराना । दिये डारि तन भूषन नाना ।—तुलसी । वि. उ.-भूमि सयन पट मोट पुराना । -तुलसी । (ब) दे. "मोटा"। तुम जानति राधा है छोटी। चतुराई अंग अंग भरी है, मोटकी-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक रागिनी का नाम । पूरण शान न बुद्धि की मोटी-मूर । मोटन-संज्ञा पुं० [सं० ] (9) वायु । हवा । (२) मलना, रगड़ना ! मुहा०-मोटा झोटा-बटिया । बराब । मोटी बात साधारण या पीसना। बात । मामली बात । मोटे हिसाब से अदान म। अटकल से । मोटनक-संशा पुं० [सं०] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण बिल्कुल ठीक ठीक नहीं । मोटे तौर पर बहुत मूक्ष्म विचार के में एक तगण, दो जगण और अंत में एक एक लघु गुरु कुल अनुसार नहीं । स्थूल रूप मे। मिलाकर ११ अक्षर होते हैं । जैसे,-आये दसरस्थ बरात (६) जो देखने में भला न जान पड़े। भद्दा । वेडील । सजे । दिग्पाल गयंदन देखि लजे। चान्यो दल दूलह चारु उ०-मनौ बराह भूधर महपनि धर। दयनन की कोटी । बने । मोहे सुर औरन कौन गने ।-केशव । शनि शिशुमेलि मुग्व अंबुज भ.तर उपज उपमा मोटी। मोटर-संज्ञा पुं० [अ० ] (१) एक विशेष प्रकार की कल या यंत्र : जिससे किसी दूसरे यंत्र आदि का संचालन किया जाता मुहा०-मोटी चुनाई-विना गर्दै हु बटाल पत्थरी का जाला। है। चलानेवाला यंत्र । (२) एक प्रकार की प्रसिद्ध छोटी मोटी भूल-मदी या भग भूल । गादी जो इस प्रकार के यंत्र की सहायता से चलती है। (७) साधारण से अधिक । भारी या कठिन। जन्म, मोटी इस गाड़ी में तेल आदि की सहायता से चलनेवाला एक मार, मोटी हानि, मोटा खर्च । उ.---(क) चंदी इंजिन लगा रहता है, जिसका संबंध उसके पहियों से होता ग्वल मल. रूप जे काम भक्त, अघ-बानि । पर दुम्ब पोई है। जब यह इंजिन चलाया जाता है, तब उसकी सहायता ! सुख जिन्हें पर सुग्व मोटी हानि ।-विश्राम । (ख) दुबल से गाड़ी चलने लगती है। यह गाड़ी प्रायः सवारी और को न सताए जाकी मोटी हाय । बिना जीव की स्वाय बोझ ढोने अथवा खींचने के काम में आती है। से लोह भरम ह जाय । -कवीर । (ग) नारि र आरत मोटरी-संज्ञा स्त्री॰ [ तैलंग मूटा गरी ] गठरी । उ०—(क) : पुकारत सुन न कोऊ, काह देवननि मिलि मोटी मुठ मार आश्रय बरन कलि बिबम विकल भये, निज निज मरजाद: दी।-तुलनी । मोटरी सी डार दी।-तुलसी । (ख) अमृत केरी मोटरी महा-मोटा दिखाई देना .आंग्य को ज्योति में कमी होना । सिर से धरी उतारि ।-कबीर।। कम दिखाई देना । केवल मार्टी से दिखाई देना। मोटा-वि० [सं० मुष्ट-मोटा ताजा आदमी, या हिं. मोट (८) धर्मटी ! अहंकारी । उ०--मोटो दयकंध सो न दयरो [ सी० मोटा] (1) जिसके शरीर में आवश्यकता से विभीषण को बानि परी रावरे की प्रेम पराधीनता । अधिक मास हो । जिसका शरीर चरबी आदि के कारण : -तुलसी। बहुत फूल गया हो। दुबला का उलटा । स्थूल शरीर संज्ञा पुं० मरवा जमीन । मार। वाला । जैसे, मोटा आदमी, मोटा बंदर। सिंज्ञा पुं० [हिं० मोट ] बोझ । गट्ठा। यौ०-मोटा ताजा या मोटा मोटा स्थूल शरीरवाला । (२) : मोटाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० मोटा+ई (प्रत्य०) । (1) मोटे होने का जिसकी एक ओर की सतह दूसरी ओर की सतह से भाव । स्थूलता। पीवरता । (२) शरारत । पाजीपन ।