पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५३१

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मोटाना २८२२ मोतिया बदमाशी। उ०-डगर डगर में चलहु कन्हाई समुझिन मोठस-वि० [ ? ] मौन । चुप । उ.--मोठस के रघूनाथ रहौ लागै बहुत मोटाई ।--रघुनाथदास । बिनु मोठस कीन्हे ते जीवे को भहै। रघुनाय । मुहा०—मोटाई उतरना-शेवा किरकिरी होना । दुरुस्त होना । मोड़-संज्ञा स्त्री० [हिं० मुना] (1) रास्ते आदि में धूम जाने पाणीपन छूटना। मोटाई चढ़नाः-पाजी, बदमाश या घमंडी का स्थान । एक ओर फिर जाने का स्थान । वह स्थान जहाँ होना । मोटाई झपना--(१) शरारत दूर होना । बदमाशी से किसी और को मुबा जाय। उ०-आज बड़े लाट छूटना । (२) घमट न रह जाना। ऐठ निकल जाना। अमुक मोब पर वेष बदले एक गरीब काले आदमी से मांटाना-कि० अ० [हिं० मोटा+आना (प्रत्य॰)] (1) मोटा बातें कर रहे थे-बालमुकुंद गुप्त । (२) घुमाव या मुदने होना। स्थूलकाय हो जाना। (२) अहंकारी हो जाना । की क्रिया । (३) घुमाव या मुबने का भाव । (४) कुछ अभिमानी होना । (३) धनवान हो जाना। दूर तक गई हुई वस्तु में वह स्थान जहाँ से वह कोना या कि म परे को मोटा करना। दूसरे को मोटे होने में खुमाव डालती हुई दूसरी ओर फिरी हो। पहायता देना। मोड़ना-क्रि० स० [हिं० मुड़ना का प्रेर०] (१) फेरना । मोटापन-संज्ञा पुं० [हिं० मोटा+पन (प्रत्य॰)] मोटाई । स्थूलता। लौटाना। मोटापा-संज्ञा पु० [हिं० मोटा+पा (प्रत्य०)] मोटे होने का भाव।। संयो० क्रि०-डालना । --देना। मोटापन । मोटाई। मुहा०-मुंह मोड़ना=(१) किसी काम के करने में आनाकानी मोटिया-संज्ञा पुं० [हिं० भोटा+इया (प्रत्य॰)] मोटा और खुरखुरा करना । आगा पाछा करना । रुकना । (२) विमुख होना । देशी कपड़ा। गादा । गजी। खहड़ । सल्लम । जैसे,—वे पराङ्मुख होना । (३) किसी फैली हुई मतह का कुछ अंश समेट मोटिया पहनना ही अधिक पसंद करते हैं। कर एक तह के ऊपर दूसरी तह करना । जैसे,—(क) चादर मंज्ञा पुं० [हिं० मोट बाझ ] बोझ ढोनेवाला कुली। का कोना मोड़ दो। (ख) कागज़ किनारे पर मोड़ दो। मजदूर । उ०—मोटियों को भा के कपड़े पहनाकर तिलंगा (४) किसी छड़ की सी सीधी वस्तु का कुछ अंश दूसरी बनाते हैं। शिवप्रसाद। ओर फेरना। (५) धार भुथरी करना। कुंठित करना । मोहायित-संज्ञा . ! सं०] साहित्य में एक हाव जिसमें जैसे, धार मोड़ना। नायिका अपने आंतरिक प्रेम को कटु भाषण आदि-द्वारा | मोड़ा-संज्ञा पुं० [सं० मुंड, मि० ५० मुंडा लड़का ] [स्त्री० मोडी छिपाने की चेष्टा करने पर भी छिपा नहीं सकती। लड़का । बालक । ( केशवदास ने लिया है कि स्तंभ, रोमांच आदि मोड़ी-संशा स्त्री० [ देश० ] (1) घसीट वा शीघ्र लिखने की साविक भावों को बुद्धिबल से रोकने को 'मोडायित' लिपि । (२) दक्षिण भारत की एक लिपि जिसमें प्रायः हाव कहते हैं।) मराठी भाषा लिखी जाती है। मोठ-संज्ञा स्त्री० [सं० मकुष्ठ, प्रा० मउट मूंग की तरह का एक | मोण-संज्ञा पुं० [सं०] (१) सूखा फल । (२) कुंभीर । मगर । प्रकार का मोटा अन्न, जो बन-मूंग भी कहा जाता है। (३) मक्खी । (४) बाँस या सींक का बना ढक्कनदार यह प्रायः सारे भारत में होता है। इसकी बोआई ग्रीष्म टोकरा । झाया। पिटारा । मोना । ऋतु के अंत या वर्षा के प्रारंभ में और कटाई खरीफ की मोतदिल-वि० [अ० मादिल ] जो न बहुत गरम और न बहुत फमल के साथ जाड़े के आरंभ में होती है। यह बहुत ही मर्द हो। शरत और उष्णता आदि के विचार से मध्यम साधारण कोटि की भूमि में भी बहुत अच्छी तरह होता है अवस्था का । ( इस शब्द का व्यवहार प्रायः ओषधि या और प्राय: बाजरे के साथ बोया जाता है। अधिक वर्षा से | जलवायु आदि के लिए होता है।) यह खराब हो जाता है। इसकी फलियों में जो दाने | मोतबर-वि० [अ०] (१) विश्वास करने योग्य । जिस पर निकलते हैं, उनकी दाल बनती है। यह दाल साधारण विश्वास किया जा सके। (२) जिस पर विश्वास किया दालों की भाँति खाई जाती है; और मंदाग्नि अमवा ज्वर जाता हो । विश्वासपात्र ।। में पथ्य की भाँति भी दी जाती है। वैधक में इसे गरम, मोतियदाम-संज्ञा पुं० [सं० मौक्तिकदाम, प्रा. मोत्तिमदाम ] एक कसैली, मधुर, शीतल, मलरोधक, पथ्य, रुचिकारी, हलकी, वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में चार जगण होते हैं। बादी, कृमि जनक, तथा रक्तपित्त, कफ, बाव, गुदकील, जैसे,—भजो रघुनाय धरे धनु हाथ । विराजत कठ सु वायुगोले, ज्वर, दाह और क्षयरोग की नाशक माना है। मोतियदाम। इसकी जद मादक और विशैली होती है। मोट । मुगानी। मोतिया-संशा पुं० [हिं० मोती+इया (प्रत्य॰)] (1) एक प्रकार मोथी । बनमूंग। का बेला जिसकी कली मोती के समान गोल होती है । (२) यित'