पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५३८

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मोहताज २८२९ मोहनी रखकर उसका मुंह खोल देना । ( अन्न के व्यापारी) मोहड़ा हिये पर मोहत नील सुपीत हिौरी। -दीनदयाल गिरि। मारना=(१) किसी काम को सब से पहले कर डालना । ! मोहना-कि० अ० [सं० मोहन (१) किमी पर आशिक या अनु- (२) मुँह । मुख। रक्त होना। मोहित होना।झना। 30-(क) सुदर वधु संज्ञा पुं० दे० "मोहरा"। अति श्यामल पोहै। देग्यत सुर नर का मन मोहै। मोहताज-वि० [अ०] (१) धनहीन । निर्धन । गरीब । (२) केशन । (ब) देग्वा रूप सकल सुर मोहै।-तुलसी । (ग) जिसे किसी बात की अपेक्षा हो। जैसे,—वह आपकी चाप्यो दल बल चारु बने। मोहे सुर औरन कौन गने।- मदद के मोहताज नहीं हैं। केशव । (२) मर्छिन होना। बेहोश हो जाना। उ०—अष्टम मोहताजी-संज्ञा स्त्री० [हिं० माइताज+ई (प्रत्य॰)] मोहताज होने । सर्ग महा समर कुश लय भरतहि साथ । जुग थुन कर की क्रिया या भाव। मोहियो भरत नाय तिन हाय।-शिरमौर । मोहन-संज्ञा पुं॰ [सं०] (१) मोह लेने वाला व्यक्ति । जिम . क्रि० स० [सं० मोइन । (१) अपने ऊपर अनुरक्त करना । देखकर जी लुभा जाय । उ०-लग्विमोहन जो मन रहै तो .. मुग्ध करना । मोहित करना । लुभा लेना। उ०--(क) मन राखौ मान ।-विहारी । (२) श्रीकृष्ण । उ०—मोहन पंडित अनि सिगरी पुरी मनहु गिरा गति गृढ़ । सिंहनियुत तेरे नाम को कढ़ो बा दिना छोर । ब्रजवामिन को मोह के : जनु चंद्रिका मोहति मूह अमृद । -केशव । (ख) बैठे चलो मधुपुरी ओर । रमनिधि । (३) एक वर्ण वृत्त जराय जरे पलका पर राम पिया सवको मन मोह।-- जिसके प्रत्येक चरण में एक सगग और एक जगण होता केशव (ग) अहो भले लतिका-तम मोहें । कलिन कोप- है। उ०—जन राजवंत । जग जोगवंत । तिनको उदोत । लन सामन मोहैं 1-प्रतापनास पण मिश्र। (२) भ्रम में केहि भांति होत ।-केशव । (४) एक प्रकार का तांत्रिक : ढाल देना। संदेह पदा कर देना। धोखा देना । उ0- प्रयोग जिससे किसी को बेहोश या मर्छित करते हैं। (क) तुम आदि मध्य अवपान एक । जग मोहत ही वपु उ०-मारन मोहन बसकरन उच्चाटन अम्थंभ । आकर्षन सत्र : धरि अनेक । केशव । (ब) अति प्रचंड रघुपति के माया । भाँति के पद सदा करि दंभ । (५) प्राचीन काल का एक जेहि न मोह अम्म को जग जाया ।-नुलमी। प्रकार का अस्त्र जिससे शत्रु मूर्छित किया जाता था। उ.--: संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) तृणा (२) एक प्रकार की चमेली। बर विद्याधर अस्त्र नाम नंदन जो ऐसो। मोहन, स्वापन, मोहनास्त्र-संश। पुं० [सं.] प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र। समन, गौम्य, कर्पन पुनि लेयो।-माकर । (६) को कहते है कि इसके प्रभाव ये शन मूच्छिन हो जाता था। की कोठी अर्थात् यह स्थान जहाँ दबने के लिए ऊख के माह निशा-संज्ञा स्त्री. द. "मोहरात्रि"। गाँड़े डाले जाते है।इये कुंडी और धगरा भी कहते हैं। महिनी-मंशा ना० [सं०] (1) वैशाग्न सुदी एकादशी । (२) (७) कामदेव के पाँच बाणों में से एक बाण का नाम । एक लंबा सूत का कहा जो हल्दी के खेतों में पाया जाता (4) धतूरे का पौधा । (९) बारह मात्राओं का एक ताल : है । इस पाकर तांत्रिक लोग वशीकरण यंत्र बनाते हैं।(३) जिसमें सात आघात और पांच खाली रहते हैं। इसका एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में पगण, भगण, तगण, यगण और सगण होते हैं। (४) भगवान् का वह स्त्री रूप मृदंग का घोल यह है-धा धा ता गे तेरे कता कता. जो उन्होंने समुद्र-मथन के उपरांत अमृत बाँटते समय धारण किया था। (५) एक प्रकार की मिठाई। (६) वशी- गदि घेने नाग देत् तेरे केरे। धा। करण का मंत्र । लुभाने का प्रभाव । उ०-(क) जिन वि० [सं०] [स्त्री. मोहनी } मोह उत्पन्न करनेवाला।। निज रूप मोहनी द्वारी । कीन्हें स्वबस मकल, नर 30--(क) मोहनि मूरति श्याम की यौं घट रही समाय । नारी।-तुलसी। (स्व) निरवि लवन राम जाने रितुपति -बिहारी । (ब) सब भाँति मनोहर मोहन रूप अनुप काम मोहि मानो मदन सोहनी मूंड नाई है ।- हैं भूप के बालक है।-तुलसी। तुलसी। मोहनभोग-संज्ञा पुं० [हिं० माइन+भौग ] (1) एक प्रकार का ! मुहा०-मोहनी डालना वा लाना-पमा प्रभाव डालना कि कोई हलुआ । (२) एक प्रकार का केला (फल) । (३) एक एका दम मोहित हो जाय। माया के कम करना । जादू करना । प्रकार का आम । उ०-नागरि मन गई अरुडराइ । अति विरह तनु भई मोहनमाला-संशा बी० [सं०] सोने की गुरियों या दानों की म्याकुल धर न नेकु सुहाइ । श्याम सुदर मदनमोहन मोहनी बनी हुई माला । उ०—(क) मोहनलाल के मोहन को यह मी लाइ । मातु पितु को त्रास मानत मन बिना भइ बाइ । पैन्हप्ति मोहनमाल अकेली।-देव। (ख) मोहनमाल बिसाल जननि सों दोहनी माँगत बेगि दे री माह । सूर प्रभु को ७०८