पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५४

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वकचन २३४७ बकचन-संज्ञा पुं० दे. "बकचंदन"। विषही को।-माकर । (२) प्रलाप करना । बदबवाना। बकचा-संज्ञा पुं० दे० "बकुचा"। उ.--(क) काजी तुम कौन किताब बखाना । झखत बकचिचिका-संज्ञा स्त्री० [सं० वकाचिका ] एक प्रकार की। बकत रह्यो निशि बासर मत एको नहि जाना । कबीर । मछली । इस मछली के मुँह की जगह लंबी चोंच सी होती (म्व) नाहिन केशव साख जिन्हैं बकि के तिनसों दुस्वयं है। कौवा मछली। मुख कोरो। केशव । बकची-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) एक प्रकार की मछली । (२) संयां० क्रि०-चलना ।-जाना। --डालना। । मुहा०--कना झकना=बबडाना । बिगड़कर व्यर्थ की बातें बकठाना-क्रि० स० [सं० विकुंठन ] किसी बहुत कसैली चीज़ | करना । जैसे कटहल के फूल या तेंदू आदि के फल खाने से मुंह का | बकपंचक-संज्ञा पुं० [सं० वकप जक ] कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष सूख जाना, उसका स्वाद बिगड़ जाना और जीभ का की एकादशी से पूर्णमासी तक का समय जिसमें मांस, सुकर जाना। मछली आदि खाना बिलकुल मना है। बकतर-संज्ञा पुं० [फा०] एक प्रकार की जिरह या कवच जिसे | बकम-संज्ञा पुं० दे० "बक्कम"। योद्धा लवाई में पहनते हैं। यह लोहे की कड़ियों का चकमौन-संज्ञा पुं० [सं० वक+मौन } अपना दुष्ट उद्देश्य सिद्ध बना हुआ जाल होता है और इससे गोली और सलवार करने के लिए बगले की तरह सीधे बनकर चुपचाप रहने से बक्षस्थल की रक्षा होती है। उ०-कबिरा लोहा एक की क्रिया या भाव। है गढ़ने में है फेर । ताही का बकतर बना, ताही की वि० चुपचाप अपना काम साधनेवाला । उ.-मुख में शमशेर ।-कबीर। कर में काख में हिय में घोर धकमौन । कहै कबीर पुकारि बकता*-वि० दे."वक्ता"। के पंडित चीन्हो कोन ।-कबीर। बकतिया-संज्ञा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार की छोटी मछली जो बकयंत्र-संज्ञा पुं० [सं० वकयंत्र] वैद्यक में एक यंत्र का नाम । यह संयुक्त प्रांत, बंगाल और आसाम की नदियों में होती है। काँच की एक शीशी होती है जिपका गलालबा और सामने बकध्यान-संज्ञा पुं० [सं० कभ्यान ] ऐसी चेष्टा, मुद्रा या ढंग जो बगले के गले की तरह झुका होता है। इस यंत्र से काम देखने में तो बहुत माधु और उत्तम जान पड़े, पर जिसका लेने के समय शीशी को आग पर रख देते है और झुके हुए वास्तविक उद्देश्य बहुत ही दुष्ट और अनुचित हो। उस । गले के सिरे पर दूसरी शीशी अलग लगा देते हैं जिसमें बगले की सी मुद्रा जो मछली पकड़ने के लिए बहुत सीधा तेल या अरक आदि जाकर गिरता है। सादा बनकर ताल के किनारे खड़ा रहता है। पाखंरपूर्ण यकर-कसाव-संज्ञा पुं० [हिं० बकरी+अ० करसाव कसाई ] मुद्रा । बनावटी साधुभाव । उ.-रण ते भागि निलज गृह [स्त्री० बकर-कसाबिन ] बकरों का मांस बेचनेवाला पुरुष । आवा । इहाँ आइ बकायान लगाया । तुलसी । चिक। क्रि०प्र०--लगना ।—लगाना । 'बकरना-क्रि० स० [हिं० वकार अथवा बकना ] (१) आपसे आप विशेष स शब्द का प्रयोग ऐसे समय होता है जब कोई । बकना । बरमदाना । उ०-यशोदा ऊखल याम्यो श्याम । व्यक्ति अपना पुरा उद्देश्य सिजू करने के लिए अथवा मठ मूठ मनमोहन बाहर ही छोदे आपु गई गृह काम । दही मथत लोगों पर अपनी साधुता प्रकट करने के लिए बहुत सीधा मुख ते कछु बकरति गारी दे दे नाम । घर घर रोलत सादा बन जाता है। माखन चोरत षट् रस मेरे धाम । -सूर । (२) अपना बकध्यानी-वि० [हिं० वकध्यानिन् ] बगले की तरह बनावटी दोष या करतूत आप से आप कहना । कबुल करना । जैसे,- ध्यान करनेवाला । जो देखने में सीधा सादा पर वास्तव में जब मंत्र पढ़ा जायगा तब जो घोर होगा वह आप से दुष्ट और कपटी हो। आप बकरेगा। बकनख-संज्ञा पुं० [सं० वकनख ] महाभारत के अनुसार विश्वा- | बकरा-संज्ञा पुं० [सं० वार ) [स्त्री० बकरी ] एक प्रसिद्ध चतु. मित्र के एक पुत्र का नाम । पाद पशु जिसके सींग तिकोने, गठीले और ऐंठनदार तथा बकना-क्रि० स० [सं० वचन ] () ऊटपटांग बात कहना । पीठ की ओर झुके हुए होते हैं, पूंछ छोटी होती है, शरीर अयुक्त वात बोलना । व्यर्थ बहुत बोलना। उ०(क): से एक प्रकार की गंध आती है, और खुर फटे होते हैं। जेहि धरि सखी उठावहिं सीस विकल नहि रोल | घर : यह जुगाली करके खाता है। कुछ बकरों की ठोड़ी के कोड जीव न जाना मुखरे बकत कुचोल ।-जायसी। नीचे लंबी दादी भी होती है और कुछ जातियों के बकरे (ख) बाद ही बाद बदी के बकै मति बोर दे बंज विषय | बिमा सींग के भी होते हैं। कुछ बकरों के गले में जबड़े के