पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५४०

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मोहि २८३१ मौकृत के साथ एक बार किया गया हो। म्यवहार में 'मोहाल' करनेवाला । (२) लोभी । लालची । (३) भ्रम या अविद्या पूरा माना जाता है और इसी विचार से उसकी पट्टी वा . में पा हुआ। अज्ञानी। हिस्सा बनाया जाता है। मोहेला संज्ञा पुं० [अ० महल ] एक प्रकार का चलता गाना। संशा पुं० [हिं० मोहार ] (1) मधुमक्खी की एक जाति । मोहली-संशा मी० [देश॰] एक प्रकार की मछली जो हिमालय मोहार । (२) मधुमक्खी का छत्ता । और सिंध की नदियों में मिलती है। मोहिं*-सर्व० [सं० मा, पा. मई ] ब्रज भाषा और अबधी के मोहोपमा-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक अलंकार का नाम जो केशवदास उत्तम पुरुष "मैं" का वह रूप जो पहले सब कारकों में आता के अनुसार उपमा का एक भेद है। पर और आचार्य जिसे था, पर पीछे कर्म और संप्रदान में ही आने लगा। मुझको। 'भ्रांति' अलंकार कहते हैं। वि० दे. "नाति"। मुझे। उ.-(क) मरूँ पर माँगों नहीं अपने तन के काज। मौज-वि० सं०] [स्त्री० मौजा ] मुंज का बना हुआ। परमारथ के कारने मोहि न आवै लाज ।-सूर । (ख) नैना मौजकायन-संज्ञा पुं० [सं०] मुंजक ऋषि के गोन में उत्पन्न पुरुष । कयौ न मानै मेरो।हारि मानि कै रही मौन हैनिकट सुनत मौजवान-वि० [सं० मौजवत् ] (1) मुंजवान नामक पर्वत में उत्पन्न । नहि टेरो। ऐसो भये मनों नहि मेरे जबहि श्याम मुग्व (२) मुंजवान् नामक पर्वत संबंधी। हेरो। मैं पछताति जबहि सुधि आवति ज्यों दीन्हीं मोहिं मौजिबंधन-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञोपवीत-संस्कार । व्रतबंध । डेरो। -सूर। जनेऊ। मोहित-वि० [सं०] (१) मोह या भ्रम में पड़ा हुआ । मुग्ध। मौजी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] ज की बनी हुई मेरकला। (२) मोहा हुआ। आसक्त। . यौ०--मौजिबंधन । माहिनी-वि० सी० [सं०] मोहनेवाली। वि० [सं० मीजिन् । (१) जो मूंज की मेखला धारण किए संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) त्रिपुरमाली नामक फूल । वटपत्रा। हुए हो। जो मूंज की मेम्बला पहने हो। (२) दे० “मौजीय" । बेला । (२) विष्णु के एक अवतार का नाम । भागवत के मौजीपत्रा-संज्ञा स्त्री० [सं.] बल्यजा। अनुसार विष्णु ने यह अवतार उस समय लिया था, जब मौजीय-वि० [सं० ] मुंज का बना हुआ । देवताओं और दैल्यों ने मिलकर रखों के निकालने के लिए मोड़ा-*-संज्ञा पु० [सं० माणवक | [स्त्री. मोड़ी ] लड़का । समुद्र मथा था और अमृत के निकलने पर दोनों उसके उ.-(क) मैया बहुत बुरो बलदाऊ । कहन लगे बन बडो लिए परस्पर झगड़ रहे थे। उस समय भगवान् ने तमासो सब मौदा निलि आऊ।-सूर । (ख) बाटही मोहिनी अवतार धारण किया था और उन्हें देखते ही असुर गोरस बेच री आज तू माय के मूंड चदै मति मौड़ी।- मोहित होकर बोले थे कि अच्छा लाओ, हम दोनों दलों के रसखानि । लोग बैठ जाय और मोहिनी अपने हाथ से हम लोगों को : __संज्ञा पुं० दे० "मोहा"। अमृत बाँट दे। दोनों दलों के लोग पंक्ति बाँधकर बैट गए मौका-संक्षा पुं० [अ०] (1) वह स्थान जहाँ कोई घटना संघटित और मोहिनी रूप विष्णु ने अमृत बाँटने के बहाने से हो। घटनास्थल । वारदात को जगह ।उ०-वास साहब ने देवताओं को अमृत और असुरों को सुग पिला दी। मौके पर जाकर, अच्छी तरह तहकीकात की।--द्विवेदी । (३) माया । जादू । टोना । उ०—देवी ने ऐसी मोहिनी (२) देश । स्थान । जगह । जैसे,—मकान का मौका अच्छा शाली थी कि यशोदा को लड़की के होने की भी सुध नहीं है । (३) अवसर । समय । उ०-तब मे बंबई जाने नहीं थी। (४) वैशाख शुक्ल एकादशी का नाम । (५) एक : का हमें मौका ही न आया।-द्विवेदी । अर्द्धसम वृत्ति का नाम जिसके पहले और तीसरे चरणों में महा०—मौका देना=अवकाश देना। समय देना । मौका देखना। बारह और दूसरे तथा चोथे घरणों में यात मात्राएँ होती । वा तकनादाँव में रहना । उपयुक्त अवसर की ताक में रहना । हैं; और प्रत्येक चरण के अंत में एक सगण अवश्य होता है। मौका पाना- (१) अवकाश पाना । 'फरमन पान। । (२) उपयुक्त उ.-शंभु भक्तजन प्राता भव दुख हरें । मन वांछित फल.. समय या अवसर पाना । मौका पाना, मौका मिलना वा हाथ दाता मुनि हिय धरें। (६) पंद्रह अक्षरों के एक वर्णिक छंद लगना-(१) अवकाश मिलना । समय या अवसर मिलना । का नाम जिसके प्रत्येक चरण में संगण, भगण, तगण, यगण (२) घात मिलना । दांव पाना । और सगण होते हैं। उ०-सुभ तो ये सखि री आदिहुँ । मौकुल-संज्ञा पुं० [सं०] कौआ। जो चित्त धरी । नर औ नारि पहैं भारत के एक घरी। मौका-वि० [अ०] (1) रोका हुआ। बंद किया हुआ । स्थगित मोही-वि० [सं० मोहिन् ] [स्त्री. मोहिनी ] मोहित करनेवाला। किया हुआ । उ.-(क) सरकार ने अब इस सती होने की वि० [हिं० मोह+ई (प्रत्य॰)] (1) मोह करनेवाला । प्रेम बुरी रस्म को मौकूफ कर दिया है। शिव । (ब) एक