पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५४४

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मौर्य २८३५ मौलवी मूलपुरुप 'चंद्रगुप्त' माना गया है। पुराणों के अनुसार पारसी आर्यो' और मध्य एशिया की अन्य जातियों का चंद्रगुप्त का जन्म मुरा नामक शूदा से हुआ था और वह प्रभाव पड़ा था। इसीलिए मनुजी ने उन्हें वास्य क्षत्रिय चाणक्य की सहायता से नंदों का नाश कर पाटलिपुत्र लिखा है-'झल्लोमलश्च राजन्या द्वात्यालिच्छिवि रेवच । का सम्राट हुआ था। (वि० दे० "चंद्रगुप्त"।) पर बौद्ध ग्रंथों नटश्च करणश्चैव वसोदविद एव च" संभव है कि बौद्ध हो में 'चंद्रगुप्त' को 'मोरिय' वंश का लिया है और उसे शुद्ध जाने के कारण ही संस्कार-च्युत होने पर इन जातियों क्षत्रिय माना है। मौर्य वंश के शुद्ध क्षत्रिय होने की पुष्टि को बायज लिया गया हो; और इसीलिए पुराणों में दिव्यावदान में अशोक के मुंह से कहलाए हुए 'देवि अह' चंद्रगुप्त मौर्य के वंश के लिए भी 'वृपल' वा वर्णसंकर क्षत्रियः कथं पलांडे परिभक्षयामि' से भी होता है, जिसमें लिखा गया हो । महावंश के टीकाकार और दिव्यावदान के अशोक कहता है-'देवि, मैं क्षत्रिय हूँ मैं प्याज कैसे टीकाकारों का कथन है कि चंद्रगुप्त मोरिय नगर के राजा खाउँ ।' 'मुरा' शब्द में 'य' प्रत्यय लगाने से 'मौर्य' का पुत्र था । जब मोरिय के राजा का स हुआ, तब शब्द बहुत खींच ग्वाँच से बनता है; पर पाली भाषा में उसकी गर्भवती रानी अपने भाई के साथ बड़ी कठिनता 'मोरिया' शब्द आया है, जिसकी सिद्धि पाली व्याकरण से भागकर पुरुषपुर चली आई और वहीं चंद्रगुप्त का जन्म के अनुसार मोर शब्द मे, जो 'मयूर' का पाली रूप है, हुआ। यह चंद्रगुप्त गोएँ चराया करना था। इसे होनहार की गई है। यह समझकर जैनियों ने चंद्रगुप्त की माता देख चाणक्य जी अपने आश्रम पर लाए और उपनयन को नंद के मयूर-पालकों के सरदार की कन्या लिखा है। कर अपने साथ तक्षशिला ले गए। जब सिकंदर ने बुद्धघोष के विनयपिटक की अस्यकथा की रीका और महावंश पंजाब पर आक्रमण किया, तब तक्षशिला के ध्वंस होने पर की टीका में चंद्रगुप्त को मोरिय नगर के राजा की रानी का चंद्रगुप्त आचार्य चाणक्य के साथ सिकंदर के शिविर में पुन लिग्या है। यह मोरिय नगर हिन्दकुश और चित्राल के था । वील साहब का कथन है कि मोरिय नगर उजानक मध्य उनानक ( सं. उद्यान) देश में था। महापरि प्रदेश में था, जो हिंदुकुश और चित्राल के मध्य में था। निर्वाण सूत्र में लिखा है कि जिन्म समय महात्मा गौतम बुद्ध इन सब बातों को देखते हुए जान पड़ता है कि जिस प्रकार का कुशीनगर में निर्वाण हुआ था और मल्लराज ने उनकी निस्विश से लिच्छवि, शक से शाक्य आदि राजवंशों के अंत्येष्टि के अनंतर उनके भस्म और अस्थि को कुशीनगर नाम पड़े, उसी प्रकार मोरिय नगर के प्रथम अधिवासी में चैत्य बनाकर प्रतिष्ठित करना चाहा था, उस समय होने के कारण मौर्य राजवंश का भी नाम रखा गया और कपिलवस्तु, राजगृह आदि के राजाओं ने महारमा बुद्धदेव आचार व्यवहार की विभिन्नता से पुराणों में उसे 'वृपल' के धातु को बाँटकर अपने अपने भाग को अपने अपने आदि लिखा गया । पारस की सीमा पर रहने के कारण उनके देश में चैत्य बनाकर रखने के उद्देश्य से कुशीनगर पर आचार-व्यवहार और रहन महन पर पारपियों का प्रभाव चढ़ाई की थी, जिससे महान् उपद्रव की संभावना देख पड़ा था; और चंद्रगुप्त तथा अशोक के समय के गृहों और महात्मा द्रोण ने महात्मा बुद्धदेव के धातु को विभक्त कर राजप्रासादों का भी निर्माण पारस के भवनों के दंग पर ही प्रत्येक को कुछ कुछ भाग देकर झगड़ा शांत किया था। किया गया था। चंद्रगुप्त के अनंतर अशोक मौर्य वंश उन राजाओं में, जिन्हें महात्मा बुद्धदेव की चिता के भस्म का सबसे प्रसिद्ध सम्राट हुआ। मौर्य साम्राज्य का ध्वंश का भाग दिया गया था, पिप्पलीकानन के मोरिया राजा {गों ने किया। पर विक्रम की आठवीं शताब्दी तक इधर का भी उल्लेख महापरिनिर्वाण सूत्र में है। इससे विदित उधर मौय्यों के छोटे छोटे राज्यों का पता लगता है। ऐसा होता है कि महात्मा बुद्धदेव के परिनिर्वाण काल में पिप्पली प्रसिद्ध है, और जैन ग्रंथों में भी लिखा है कि चित्तौड़ का कानन में मोरिय क्षत्रियों का निवास था। इससे मोरिय गद मौर्य या मोरी राजा चित्रांग ने बनवाया था। राजवंश की सत्ता का पता चंद्रगुप्त से बहुत पहले तक मौर्वी-संज्ञा स्त्री० [सं०] धनुष की प्रत्यंचा । कमान की चलता है। ये मोरिय लोग शाक्य, लिच्छवि, मल्ल आदि रोरी । ज्या । वंश के क्षत्रियों के संबंधी थे । जान पड़ता है कि ये लोग मौल-वि० [सं०] (1) मूल से संबंध रखनेवाला। (२) मौरूसी। काबुल के प्रदेशों के रहनेवाले क्षत्रिय थे; और जब पारसी पैतृक । आर्यों ने भारतीय आर्यों पर आक्रमण करना प्रारंभ किया, संज्ञा पुं० [सं० ] प्राचीन काल के एक प्रकार के मंत्री। तब ये लोग भागकर नेपाल को तराई में चले आए और मौलवी-संज्ञा पुं० [अ० ] (1) अरबी भाषा का पंडित । (२) वहाँ के लोगों को अपने अधिकार में करके इन्होंने छोटे मुसलमान धर्म का आचार्य, जो अरबी, फारसी आदि छोटे अनेक राज्य स्थापित किए। इनके आधार आदि पर | भाषाओं का ज्ञाता हो।