पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५४५

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मौलसिरी २८३६ म्यान मौलसिरी-संशा स्त्री० [सं० मौलि+श्री ] एक प्रकार का बड़ा मौसली -संज्ञा स्त्री० दे० "मौलसिरी" । पदावहार पेड़ जिसकी लकड़ी अंदर से लाल और चिकनी मौसा-संज्ञा पुं० [हिं० मौसी का पुं०] [स्त्री. मौसी ] माता की होती है और जिसमे मेज, कुसी आदि बनाई जाती है। बहिन का पत्ति । मौम्पिया या मासी का पति । यह दरवाजे और सँगहे बनाने के भी काम आती है। मौसिम-संज्ञा पुं० [अ० ] [वि. मौसिमी (1) उपयुक्त समय । इसके फूल मुकुट के आकार के, तारे की भाँति छोटे छोटे अनुकूल काल । (२) ऋतु । होते हैं और उनसे इन बनाया जाता है। इसके फल पकने ! मौसिमी-वि० [फा०] (१) समयोपयोगी। काल के अनुकूल । पर खाने योग्य होते हैं और बीजों से तेल निकलता है। ' (२) ऋतु-संबंधी। ऋतु का । जैसे, मौसिमी फल, इसकी छाल ओषधियों में काम आती है। इसका पेव बीजों सौसिमी मिठाई। ये उत्पन्न होता है और सब देशों में लगाया जा सकता है। मौसिया-संश। पुं० दे. "मौसा"। पश्चिमी घाट और कनारा में यह जंगलों में स्वच्छंद रूप से वि० संबंध में मौसी या मौसा के स्थान का । मौसी के उगता है। यह पेड़ बहुत दिनों में बढ़ता है। यह बरसात द्वारा संबंध रखनेवाला । जैसे, मौखिया सास, मौसिया में फूलता और शरद ऋतु में फलता है। इसके फूल साकेद, | ससुर | वि० दे० "मौसेरा" । जैसे, चोर चोर मौसिया कटावदार और छोटे छोटे बहुत ही कोमल और मीठी भाई । ( कहावत ) सुगंधवाले होते हैं। उ.-पहिरत ही गोरे गरे यो दौरी मौलियाउन/-वि० [हिं० मौसी+आउत (प्रत्य०)] मौसेरा । दुति लाल । मनौ परसि पुलकित भई मौलसिरी की | मौसियायत-वि० वे "मौसियाउत"। माल।-विहारी। मौसी-संशा बी० [सं० मातृप्वमा प्रा० माउरिसा][वि० मीसरा, पा-यकुल । केसर । सीधगंध । मुकुल । मधुपुष्य ।। गौसियाउन ] माता की बहिन । मासी। उ०-मातु मौसी सुरभि । शारदिक । करक । चिरपुष्प।। बहिनि हूँ ते सासु ते अधिकाइ। करहि तापस तीय तनया मौलि-संक्षा पुं० [सं०](१) किसी पदार्थ का सब से ऊँचा भाग। सीय हित चित लाइ ।-तुलसी। चोटी। सिरा । चूड़ा । (२) मस्तक । सिर । (३) किरीट। मौसेरा-वि० [हिं० मौसा+एरा (प्रत्य०)। मौसी के द्वारा (४) जूड़ा। जटाजूट । (५) अशोक का पेड़। (६) मुख्य वा संबद्ध । मौसी के समंध का। जैसे, मौसेरा भाई, प्रधान व्यक्ति । सरदार । (७) पृषिधी । भूमि । ज़मीन । मौसेरी बहिन, मौसेरा ससुर, मौसेरी सास इत्यादि । मोली-वि० [सं० मौलिन् ] जिसके सिर पर मौलि या मुकुट हो। उ.-जब देवसरूप बैठ गये, उनके मौसेरे ससुर नंदकुमार अपनी टौर से उठे और देखकर कहने लगे।- मोपल-संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के एक पर्व का नाम । अधखिला फूल। मौपिकापुत्र-संज्ञा पुं० [सं० ] शतपय बामण के अनुसार एक मौहूर्त-संश। पुं० [सं०] महुर्त बतलानेवाला, ज्योतिषी। आचार्य का नाम। मौहर्तिक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मुहर्स बतलानेवाला, ज्योतिषी। मोटा-संज्ञा स्त्री० [सं०] धूं से की मार।चूं संधू सा । मुक्कामुकी। (२) दक्ष की मुर्ती नाम की कन्या से उत्पन्न एक देवगण । मौष्टिक-संज्ञा पुं० [सं०] चोरी। वि० मुहर्त से उत्पन्न । मुहूर्तोद्भव । मौसम-संज्ञा पुं० दे. "मौग्निम"। म्याँच-संज्ञा स्त्री० [ अनु० ] बिली की बोली। मौस -वि० [अ० मयस्सर प्राप्त ] (1) जो सुगमता मे। मुहा०-म्याँच म्याएँ करना-भयभीत होकर धामी आवाज से मिल सके। सुप्राप्य। बोलना । डर के मार बोल बंद हो जाना। उ०-माधव जी सौ महा०---मोगर आना=मिल सकना । उ.-समय की चूक अपराधी हौं । जनम पाइ कछु भलो न कीन्हों कहा सो क्या हक सालति प्रथीनन को मौसर न आ बने और जवाब निबहीं।..."हँसि बोले जगदीश जगत्पति बात तुम्हारी को।-बलबीर । यो । करुणासिंधु कृपालु कृपानिधि भजो शरण को क्यों। (२) उपलब्ध । प्रास । उ.-(क) औसर के मौसर भये बात सुने ते बहुत हँसीगे चरण कमल की सौं । मेरी देह मत दे कर तें खोइ । जोवन औसर भावतो बार बार नहि छुटत जम पठ्य जितक हुते घर मौं । लै लै सब हथियार होइ । रसनिधि । (ख) बार बार नहि होत है औसर आपने सान धराये त्यौं। जिनके दारुन दरस देखि के पतित मौसर बार । सो सिर देव को अरे जो फिर हजै त्यार । करत म्यौं म्यौं।-सूर। रमनिधि । म्यान-संज्ञा पुं० [फा० मियान ] (क) कोष जिसमें तलवार, क्रि० प्र०-~-आना ।-करना ।—होना । कटार आदि के फल रखे जाते हैं। तलवार, कटार आदि का मीसल-वि० [सं०] मूमल संबंधी। मूसल का । फल रखने का खाना । उ०—(क) चाखा चाहै प्रेम रस मुकुटधारी।