पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५४६

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म्याना राखा चाहै मान | दोय रखा इक म्यान में देखा सुना न सूजन और अफरा को दूर करती है। इसका प्रयोग वात कान। कबीर । (ख) जब माल इकट्ठा करते थे, अब रोग में भी होता है और इन्पकी पत्तियों की भाप बवासीर तन का अपने ठेर करो। गढ़ टूटा लइकर भाग चुका अब की पीड़ा को दूर करती है। म्यान में तुम शम्शेर करो।-नज़ीर । (२) अन्नमय कोश । पर्या०---नीलिका । नील निगुडी। सिंहक। सिंदवार। निगुंटी। शरीर । उ०—(क) कविरा सूता क्या कर, उठि न भजै म्रक्षण-संशा पुं० [सं०] (१) अपने दोषों को छिपाना । मकारी। भगवान । जम धरि जब ले जायेंगे पहा रहेगा म्यान ।। (२) तेल लगाना । (३) ममलना । मीजना । —कबीर । (ख) चंचल मनुवाँ चेत रे सोवै कहा अजान । | म्रदिमा-सशा पुं० [सं० प्रदिमन् 1 (1) मृदुता । कोमलता । (२) जम धर जब ले जायगा पड़ा रहेगा म्यान ।-कबीर । नम्रता । आजिजी। म्याना--कि० स० [हिं० म्यान ] म्यान में डालना । म्यान में प्रदिष्ट-वि० [सं० 1 अति मृदु । अत्यंत कोमल । रखना । उ०-(क) अस कहि अपनी कादि कृपानी । म्रातन-संज्ञा पुं० [सं० ] कैवर्ती मुस्तक । केवटी मोथा । म्यान्यो ताहि विशेपि बखानी:-रघुराज । (ख) तासु तेजु ! म्लान-वि० [सं०1 (1) मलिन । कुम्हलापा हुआ। (२) दुर्बल । सहि सक्यो न राना । खड्ग तुरंत म्यान महँ म्याना । कमज़ोर । (३) मैला । मलिन । संज्ञा स्त्री० लानि ।

  • संज्ञा पुं० दे० "मियाना" ।

म्लानता-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) म्लान होने का भाव । मलिनता। म्यानी-संशा स्त्री० [फा०] पाजामे की काट में एक टुकड़े का (२) ग्लानि । नाम जो दोनों पल्लों को जोड़ते समय रानों के बीच में | म्लानि-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] (1) मलिनता । कांतिक्षय । (२) जोड़ा जाता है। म्लानि । शोक। म्युनिसिपल्टी-संज्ञा स्त्री॰ [अं॰] किसी नगर के नागरिकों की ! म्लायी-वि० [सं० म्लायिन् ] (1) ग्लान। ग्लानियुक्त। (२) दुःखी। वह प्रतिनिधि सभा जिसे उस नगर के स्वास्थ्य, स्वच्छता म्लिट-वि० [सं०] (1) जो साफ़ न हो। अस्पष्ट । जैसे, तथा अन्यान्य आंतरिक प्रबंधों का स्वतंत्र रूप से नियमा म्लिष्ट वाणी । (२) अव्यक्त वाणी बोलनेवाला । जो स्पष्ट न नुसार अधिकार हो। बोलता हो। विशेष—प्राय: सभी बड़े नगरों में वहां की सफाई, रोशनी, ' म्लेच्छ-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मनुष्यों की वे जातियाँ जिनमें सड़कों और मकानों आदि की व्यवस्था तथा इसी प्रकार के वर्णाश्रम धम्म न हो। इस शब्द का मुख्य अर्थ है-स्पष्ट- और अनेक कायों के लिये म्युनिसिपैलिटी का संघटन होता भाषी अथवा प्रेमी भाषा बोलनेवाला जिसमें वर्गों का व्यक्त है। इसके सदस्यों का चुनाव प्रायः प्रति तीसरे वर्ष कुछ उच्चारण न होता हो। प्राचीन ग्रंथों में म्लेच्छ शब्द का प्रयोग विशिष्ट योग्यतावाले नागरिकों के द्वारा हुआ करता है। उन जातियों के लिए होता था, जिनकी भाषा के उच्चारण की म्युजियम-संज्ञा पुं॰ [अं॰] वह स्थान जहाँ देश तथा विदेश के शैली आर्यो की शैली में विलक्षण होती थी। ये जातियाँ अनेक प्रकार के अद्भुत और विलक्षण पदार्थ संगृहीत हों। प्रायः ऐसी थीं, जिनका आर्यो के साथ संपर्क था इसीलिए अद्भुत पदार्थों का संग्रहालय । अजायबघर । म्लेछ देश भी भारतवर्ष के अंतर्गत माना गया है और म्लेच्छों म्यों-संज्ञा स्त्री० [ अनु.] बिल्ली की बोली। उ०---मेरी देह छुटत को वर्णाश्राम-धर्म-रहित यज्ञ करनेवाला लिया है। महाभारत जम पठए जितक हुते घर मों। तिनके दारुन दरस देखि के आदि पर्व में म्लेच्छों की उत्पत्ति, विश्वामित्र से छीनकर के पतित करत म्यों म्यों।—सूर । वि. दे. "म्याँव"। ले जाते समय वशिष्ठ की धेनु नंदिनी के अंग प्रत्यंग से लिखी म्योड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं० निर्गुडी ] एक सदाबहार झाब का नाम गई है और पह्नव, द्रविड, शक, यवन, शबर, पौंड, किरात जिसमें केसरिया रंग के छोटे छोटे फूलों की मंजरियाँ यवन, सिंहल, बर्बर, खस आदि म्लेच्छ माने गए हैं। पुराणों लाती हैं, इसकी डालियों में आमने सामने पसियों में म्लेच्छों की उत्पत्ति में मतभेद है। विष्णुपुराण में लिखा होती है, जिनके बीच से दूसरी शाखाएँ निकलती है। है कि मगर ने हैहय-वैशियों को पराजित कर उन्हें धम- इसकी पत्तियों के बीच में एक सीक होती है जिसके एयुत कर दिया था और वही लोग शक, यवन, कांबोज, सिरे पर एक और दोनों ओर दो दो पत्तियाँ होती है, जो पारद और पह्नव नामक म्लेच्छ जाति के हो गए। मत्स्य- कुल मिलकर पाँच पाँच होती हैं। यह झार बनों में होता पुराण में राजा वेगु के शरीर-मंथन से म्लेच्छ जाति की है और बागों के किनारे बाढ़ पर भी लगाया जाता है। उत्पत्ति लिखी गई है। वृहत्संहिता में हिमालय और वैथक में भ्योंदी उष्ण और रुक्ष मानी गई है और इसका विध्यगिरि तथा विनशन और प्रयाग के मध्य के पवित्र स्वाद कटु तथा तिक्त लिखा गया है। यह खाँसी, कफ, । देश के अतिरिक्त अन्यत्र को म्लेच्छ देश लिखा है।