पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५४८

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२८३९ य-हिन्दी वर्णमाला का २६ वाँ अक्षर । इलका उच्चारण-स्थान तालू यंत्रणा संज्ञा स्त्री० [ पुं०] (1) क्लेश । यातना। तकलीफ । (२) है। यह स्पर्श वर्ण और उथम वर्ण के बीच का वर्ण है| दर्द। वेदना । पीडा । इसीलिए इसे अंतःस्थ वर्ण कहते हैं। इसके उच्चारण में कुछ यंत्रनाल-संभा पुं॰ [सं०] वह नल जिपके द्वारा कुएँ आदि मे आभ्यंतर प्रयत्र के अतिरिक्त संवार, नाद और घोप नामक | जल निकाला जाता है। वाह्य प्रयत्न भी होते हैं। यह अल्पप्राण है। यंत्रणेषणी-संज्ञा स्त्री० [सं०] चक्की। यंत, यंता-संज्ञा पुं० [सं०यंन् । सारथी । (हिं.) यंत्र मंत्र-संशा पुं० [सं० ] जादू । टोना । टोटका। यंति-संशा स्त्री० [सं० ) दमन । यंत्रमातृका-संशा स्त्री० [सं०] चौसठ कलाओं में से एक कला, यंत्र-संवा पुं० [सं०] (1) तांत्रिकों के अनुसार कुछ विशिष्ट जिसमें अनेक प्रकार के यंत्र या कलें आदि बनाना और प्रकार से बने हुए आकार या कोष्टक आदि, जिनमें कुछ अंक उनसे काम लेना सम्मिलित है। या अक्षर आदि लिखे रहते हैं और जिनके अनेक प्रकार के यंत्रगज-संज्ञा पुं० [सं० ) ज्योतिष में एक यंत्र जिसमे ग्रहों और फल माने जाते हैं। तांत्रिक लोग इनमें देवताओं का अधि- तारों की गति जानी जाती है। धान मानते हैं। लोग इन्हें हाथ या गले में पहनते भी है। यंत्रविद्या-संशा श्री० [सं०] कलों के चलाने और बनाने जंतर। की विद्या। यौ०-यंत्र-मंत्र जादू, टोना या टोटका आदि । यंत्रशाला-सदा मी | सं०] (१) बेधशाला । (२) वह स्थान (२) विशेष प्रकार से बना हुशा उपकरण, जो किसी ! जहाँ अनेक प्रकार के यंत्रादि हों। विशेष कार्य के लिए प्रस्तुत किया जाय । औज़ार । जैसे,- यंत्रमूत्र-संगा पुं० [सं०] वह सूत्र जिसकी सहायता से कठ- (क) वैद्यक में तेल और पासव आदि तैयार करने के अनेक पुतली नचाई जाती है।। प्रकार के यंत्र होते हैं। (व) प्राचीन काल में भी अनेक यंत्राीड़-संक्षा पुं० [सं०] एक प्रकार का मनिपात ज्वर जिसके ऐसे यंत्र बनते थे, जिनसे दर मेही शग्रओं पर प्रहार कारण शरीर में बहुत अधिक पीड़ा होती है और रोगी का किया जाता था। (३) किमी खाय काम के लिये बनाई लहू पीले रंग का हो जाता है। हुई कल या औजार । जैसे,—आजकल संसार में सैकड़ों | यंत्रालय-संशा पुं० [सं० ] (१) वह स्थान नहीं कर या यंत्रादि प्रकार के यंत्र प्रचलित हैं, जिनकी सहायता से सैकड़ों | हो। (२) धारावाना । प्रेस । हजारों आदमियों का काम एक या दो आदमी कर लेते ! यंत्राश-संज्ञा पुं० [सं० ] एक राग जो हनुमत के मत मे हिटोल हैं। (१) बंदूक । (५) बाजा । बाध । (६) बाजों के द्वारा । राग का पुत्र है।। होनेवाला संगीत । (७) कणा । बीन। () ताला। एक | यंत्रिका-संज्ञा श्री० [सं०] स्त्री की छोटी बहन । कोटी साली। प्रकार का बरतन । (१०) नियंत्रण । संज्ञा स्त्री० छोटा ताला। यंत्रक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) सुश्रुत के अनुसार कपड़े का वह | यंत्रित-वि० [सं०] (1) जो यंत्र आदि की सहायता से बाँधा बंधन जो घाव आदि पर बाँधा जाता है । पटी। (२) वह या बंद कर दिया हो। रोका या बंद किया हुआ। शिल्पकार जो यंत्र आदि की सहायता से चीजें तैयार करता (२) ताला लगा हुआ । ताले में बंद । उ०—नाम पाहरू हो। (३) वह जो वशीकरण करता हो। वश में कर लेने दिवस निषि ध्यान तुम्हार कराट । लोचन निज-पद-जंत्रित वाला। प्रान जाहि केहि बाट ।-तुलनी। यंत्रकरंडिका-संज्ञा स्त्री० [सं० ] बाजीगरों की पेटी जिसके द्वारा यंत्री-संज्ञा पुं० [सं० यत्रिन् (१) यंत्र मंत्र करनेवाला । तांत्रिक । वे अनेक प्रकार के खेल करते हैं। (२) बाजा बजानेवाला । उ०-सूरदास स्वामी के चलिबे यंत्रग्रह-संशा पुं० [सं०] (1) वह स्थान जहाँ यंत्र की सहायता ज्यों मंत्री बिनु यंत्र सकात ।-सूर। (३) नियंत्रण करने से किसी प्रकार का कम होता हो अथवा कोई भी तैयार या बांधनेवाला। की जाती हो। (२) वेधशाला। (३) वह स्थान जिसमें ! यंद-संगा ५० [हिं० ] स्वामी। प्राचीन काल में अपराधियों आदि को रखकर अनेक प्रकार य-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) यश । (२) योग । (३) यान । सवारी। की यंत्रणा दी जाती थी। (४) संयम । (५) छंद-शास्त्र में यगण का संक्षिप्त रूप। यंत्रण-संज्ञा पुं० [सं०] (1) रक्षा करना। (२) बाँधना । (३) वि० दे० "यगण"। (६) यव । जौ। (७) यम । (4) नियम में रखना । नियम के अनुसार चलाना। नियंत्रण।। स्याग । (९) प्रकाश ।