पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५५

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२३४८ बकवाना नीच या दोनों ओर म्सन की भाँनि चार चार अंगुल श्री बकरी पाती खात है ताकी काकी खाल । जो नर बकरी सात और पतली चली होती है जिस गलम्लन या गलथन कहते है तिनको कवन हवाल-कबीर । है। बकरों की अनेक जातियाँ है, कोई छोटी, कोई बड़ी, पर्या-अज । लाग । बकर । कोई जंगली, कोई पास, किसी के बाल छोटे और किमी के बकराना-क्रि० म० [हिं० बकग्ना ] दोष या करतूत कहलाना । लंबे और बड़े होते हैं। आर्यजानि को बकरों का ज्ञान बहुत कबूल कराना । प्राचीन काल से है। वदों में अज' शब्द गो के साथ ही बकरिपु-संज्ञा पुं० [सं० वकारिपु ] भीमसेन का एक नाम । माथ कई जगह आया है। बकरे की चर्बी से देवताओं को बकल-संश। पुं० दे० "कला"। आहुति देने का विधान अनेक स्थलों में है। वैदिक काल में अकलस-संज्ञा पुं० [अ० बकल्म ] एक प्रकार की चौकार या लेकर स्मृमि काल तक और प्राय: आज तक अनेक स्थानों संबोतरी विलायती अंकुमी या चौकोर छल्ला जो किसी में, भारतवर्ष में, यह प्रथा भी कि जब किमी के यहाँ कोई . बंधन के दो छोरों को मिलाए रखने या करने के काम में प्रतिष्ठित अतिथि आता था तो उनके एस्कार के लिए गृह आता है। यह लोहे, पीतल या जर्मनसिल्वर आदि का पति बड़े बकरे को मारकर उम्मके मांस से अतिथि का बनता है और विलायती थिम्तरबंद या बस्टकोट आदि के आतिथ्यमस्कार करना था। बकरे के मांस, ध और यहाँ पिछले भाग अथवा पतलून की गेलिप आदि में लगाया तक किबकरे के संग रहने को भी पत्र में यक्ष्मा रोग का जाता है। कहीं कहीं, जैसे जूनों पर, इसे केवल शोभा के नाशक माना है। बकरी का दृध मीठा और सुपारप तथा लिए भी लगाते हैं। बकसुआ। लाभदायक होता है पर उसमें से एक प्रकार की गंध आती | बकला-संशा पुं० [सं० वफल ] (1) की छाल। (२) फल है जिसमे लोग उसके पीने में हिचकते हैं। वेदों में 'भाज्य' के ऊपर का छिलका । शम्न घी के लिए आता है जिस्पसे जान पाता है कि आर्यों यकली-संज्ञा स्त्री० [ देश. (5) एक वृक्ष जो लंबा और देखने ने पहले पहल बकरी के वृध से धी निकालना प्रारंभ में बहुत सुंदर होता है। इसकी छाल सफेद और चिकनी किया था। यद्यपि मय जाति की यकरियाँ दुधार नहीं होती है। इसकी लकड़ी चमकीली और अयंत हद होती होती, फिर भी कितनी ऐसी जातियाँ भी है जो एक पेर है। यह वृक्ष बीजों से उगता है और इसके पेड मध्यभारत से पाँच मेर तकध देती हैं। बकरियों के अयन में दो और हिमालय पर तीन हजार फुट तक की उँचाई तक होते थन होते हैं और छ: महीने में एक मे घार तक बच्चे है। इसकी लकड़ी से आरायशी और खेती के सामान जनती है। बचों के मुँह में पहले चौभा को छोड़कर नीचे बनाए जाते है तथा इसके लट्ठ रेल को सबक पर पटरी के दांत नहीं होते पर छठे महीने आठ दाँत निकल आते .. के नीचे बिछाए जाते है। इसका कोयला भी अच्छा है। ये दाँत प्रति वर्ष दो दो करके टूटते जाते हैं और उनके होता है और पसे चमड़ा सिझाने में काम आते हैं। इस स्थान में नये दाँत जमते जाते हैं और पाँच वर्ष सब दाँत पेद में एक प्रकार का गोंद निकलता है जो कपड़े छापने के घराबर हो जाते हैं। यही अवस्था करे की मध्य आयु की काम में आता है। इसे धावा, धव आदि भी कहते हैं। गुलरा । है। बकरों की आयु प्राय: तेरह वर्ष की होनी है पर कभी धवरा । स्वस्थया । (२) फल आदि का पतला छिलका । कभी वे इससे भी अधिक जीते हैं। इनके खुर छोटे ओर . बकवती-संडा स्त्री० [म. वकवती ] एक नदी का प्राचीन नाम । कड़े होते हैं और बीहड़ स्थानों में जहाँ दूसरे पशु आदि नहीं बकवाद-संज्ञा स्त्री० [हि. बक+वाद ] व्यर्थ की बात । बकरक। जा सकते, बकरा अपने पैर जमाता हुआ मजे में चला जाता सारहीन वार्ता। उ.--(क) खलक मिला खाली रहा बहुत है। हिमालय में तिब्बती बकरियों पर ही लोग माल लाद- फिया बकवाद । बाम झुलावे पालना तामें कौन सवाद।- कर सुख से तिब्बत से भारत की तराई में प्लाते और यहाँ । कबीर । (ख) ऊधो लें कत चतुर कहावत । जे नहि जाने पीर से तिनत ले जाते हैं। अंगूरा, कश्मीरी आदि जाति की पराई है सर्वज्ञ जनावत ...............। कहि कहि कपट बारियों के बाल लंबे, अत्यंत कोमल और बहुमूल्य होते संदेसन मधुकर कत बकवाद बढ़ावत । कारो कुटिल मिठुर हैं और उनसे पश्मीने, शाल दुशाले आदि बनाए जाते हैं। चित अंतर सूरदास कवि गावत--सूर । बकरा बहस गरीब पशु होता है और कड़ए, मीठे, कटीले क्रि० प्र०-करना।-मचाना।-होना। सब प्रकार के पेत्रों की पत्तियाँ खाता है। यह भेव की भाँति | बकवादी-वि० [हिं० वकवाद+ई (प्रत्य॰)] बकवाद करनेवाला । स्पोक और निर्बुद्धि नहीं होता बल्कि साहसी और चालाक बकबक करनेवाला । बहुत बात करनेवाला । बनी। होता है। बधिया करने पर करे बहुत पढ़ते और पुष्ट बकवाना-क्रि० स० [हिं० बकना का प्रे० ] बकने के लिए प्रेरणा होते है। उनका मांस भी अधिक मच्छा होता है। 30 करना। किसी से बकवाद कराना।