पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५५०

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यक्षवित्त २८४१ यजुवद अपना यक्षवित्त-संज्ञा पुं० [सं०] वह जो बहुत धनवान् हो, पर अपने संज्ञा पुं० (१) भाई-बंद । (२) परम मित्र । धन में से कुछ भी व्यय न करता हो। यगूर-संज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार का बहुत ऊँचा वृक्ष जिपकी यक्षस्थल-संशा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक तीर्थ का नाम । लकड़ी का रंग अंदर से काला निकलता है। यह खिलाहट यक्षांगी-संज्ञा स्त्री० [सं० / एक प्राचीन नदी का नाम । की पूर्वी और दक्षिण पूर्वी पहाड़ियों में बहुन होता है। यक्षाधिप, यक्षाधिपति-संज्ञा पु० [सं०] यक्षों के स्वामी, इसकी लकड़ी से कई तरह की सजावट की और वहुमल्य कुबेर । वस्तुएँ बनाई जाती हैं। इस भाग में जलाने से बहुत यक्षामलक-संज्ञा पुं० [सं० } पिंड खजूर । उत्तम गंध निकलती है। इसे सेसी भी कहते हैं। यक्षवास-संशा पुं० [सं०] वट का वृक्ष जिस पर यक्षों का यम्य-संज्ञा पुं० दे० "यज्ञ"। निवास माना जाता है। य -संशा पुं० दे. "यक्ष"। यक्षिणी-संशा पा० [सं०] (1) यक्ष की पत्नी । (२) कुबेर की यच्छिनी* :-संज्ञा स्त्री० दे० "यक्षिणी"। पत्नी । (३) दुर्गा की एक अनुचरी का नाम। यजंत-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ करनेवाला। यक्षी-संज्ञा स्त्री० [सं०1 (1) कुवर की स्त्री। (२) यक्ष की स्त्री। यजत-संश। पुं० [सं०] (1) ऋत्विक् । (२) एक वदिक पि का यक्षिणी। नाम जो ऋग्वेद के एक मंत्र के द्रष्टा थे। संशा पुं० [सं० यत्र+ई (प्रत्य) ] वह जो यक्ष की उपासना यजति-संज्ञा पुं० दे. "यज्ञ"। करता हो, अथवा उमे माधता हो । उ०-प्रजापती कहँ यजत्र-संज्ञा पुं० [सं०] (1) अग्निहोत्री। (२) वह जो गज्ञ पूजहि जोई। तिन कर बास यक्षपुर होई । भूती भूतहि करता हो। यक्षी यक्षन । प्रेती प्रेतन रक्षी रक्षन ।-गिरधर । यजन-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वेद-विधि के अनुसार होता और यक्ष-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) वह जो यज्ञ करता हो। (२) एक ऋत्विक आदि के द्वारा काम्य और नैमित्तिक कमाँ का प्राचीन जनपद का वैदिक नाम, जो वक्षु भी कहलाता विधिपूर्वक अनुष्ठान करना । यज्ञ करना । (यह ग्राह्मणों था और इसी नाम की नदी के आस पास था। आक्सस के पट कम्मों में से एक माना गया है।) (२) वह स्थान नदी के आस पास का प्रदेश । बदखी । (३) इय जनपद ___ जहाँ यश होता हो। का निवासी। यजनकर्ता-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ का हवन करनेवाला । याद्र-संशा पुं० [सं० ) यक्षों के स्वामी, कुवेर । यजमान-संज्ञा पुं० [सं०] (१) वह जो यज्ञ करता हो । दक्षिणा यक्षेश्वर-संज्ञा पुं० [सं०] यक्षों के स्वामी, कुवर । आदि देकर बाह्मणां ये यज्ञ, पूजन आदि धार्मिक कृत्य यक्ष्मग्रह-संज्ञा पुं० [सं०) क्षय या यक्ष्मा नामक रोग । करानेवाला व्रती। यष्टा । (२) वह जो ब्रह्मणों को दान यक्ष्मनी-संशा ी० [सं०] दाब । अँगर । देता हो। (३) महादेव की आठ प्रकार की मर्तियों में से यक्ष्मा-संज्ञा पुं० [सं० यमन । क्षयी नामक रोग। तपेदिक । वि० एक प्रकार की मूर्ति। दे. "क्षयी"। यजमानता-संज्ञा स्त्री० [सं० यजमान का भाव या धर्म। ' यक्ष्मी-संज्ञा पुं० [सं० यक्ष्मिन् ] वह जिसे यक्ष्मा रोग हुआ हो। यजमानलोक-संज्ञा पुं० [सं०] वह लोक जिसमें यज्ञ करके यक्ष्मा रोग का रोगी। तपेदिक का बीमार । मरनेवालों का निवास माना जाता है। यस्पनी-संक्षा स्त्री० [ फा | (1) तरकारी आदि का रमा। यजमानी-संज्ञा स्त्री० [सं० य जगान+ने (प्रत्य11 (1) यजमान शोरया । झोल । (२) उबले हुए मास का रसा । (३) वह का भाव या धर्म । (२) यजमान के प्रति पुरोहित की मांस जो केवल लहसुन, प्याज, धनिया और नमक डाल वृत्ति । (३) वह स्थान जहाँ किसी विशेष पुरोहित के कर उबाल लिया जाय। यजमान रहते हों। यगण-संशा पुं० [सं० ] छंदःशास्त्र में आठ गणों में से एक। यजी-संज्ञा पुं० [सं० यजिन् । वह जो यज्ञ करता हो । यज्ञ यह एक लघु और दो गुरु भात्राओं का होता है (1) करनेवाला ।। इसका संक्षिप्त रूप 'य' है। जैसे, कमाना, चलाना। यजु-संज्ञा पुं० दे. “यजुर्वेद"। विशेष—इसका देवता जल माना गया है और यह सुखदायक यजुर्विद्-संज्ञा पुं० [सं०] वह जो यजुर्वेद का ज्ञाता हो। कहा गया है। ___यजुर्वेद जाननेवाला। यगाना-वि० [फा०] (1) जो बेगाना न हो। एक वंश का। यजुर्वेद-संशा पु० [सं०] भारतीय आर्यों के चार प्रसिद्ध वेदों अपना । आत्मीय । नातेदार । (२) अकेला । फर्द । (३), में से एक वेद जिसमें विशेषतः यज्ञ-कर्म का विस्तृत अनुपम । अद्वितीय । एकता। विवरण है और जो इसीलिये वेद-त्रयी में भित्तिस्वरूप ७११