पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५५२

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यशमंदिर का अधिकांश इन्हीं यज्ञ संबंधी बातों से भरा पड़ा है (दे० | यश-संशा पुं० [सं० ] वह जो यज्ञों के विधान आदि जानता हो। "वेद")। पहले तो सभी लोग यज्ञ किया करते थे, पर | यशत्राता-संज्ञा पुं० [सं० यशात 1 (1) वह जो यज्ञ की रक्षा जब धीरे धीरे यज्ञों का प्रचार घटने लगा, सब अध्वर्यु और करता हो। (२) विष्णु। होता ही यज्ञ के सब काम करने लगे। पीछे भिन्न भिन्न यज्ञदत्तक-संशा पुं० [सं०] वह पुत्र जो यज्ञ के प्रसाद स्वरूप ऋषियों के नाम पर भिन्न भिन्न नामोंवाले यज्ञ प्रचलित हुए, प्राप्त हुआ हो। जिससे ब्राह्मणों का महत्व भी बढ़ने लगा। इन वेदों में | यज्ञदुह-संज्ञा पुं० [सं० ] राक्षस । अनेक प्रकार के पशुओं की बलि भी होती थी, जिससे कुछ | यज्ञधर--संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु। लोग असंतुष्ट होने लगे: और भागवत आदि नए संप्रदाय यशनेमि-संज्ञा पुं० [सं०] श्रीकृष्ण का एक नाम । स्थापित हुए, जिनके कारण यज्ञों का प्रचार धीरे धीरे बंद | यक्षपति-संज्ञा पुं० [सं०] (1) विष्णु । (२) वह जो यज्ञ करता हो गया। यज्ञ अनेक प्रकार के होते थे। जैसे,-सोमयाग, हो, यजमान । अश्वमेध यज्ञ, राजसूज्ञ यज्ञ, ऋतुयाज, अनिष्टोम, अतिरात्र, : यक्षपत्नी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) यज्ञ की स्त्री, दक्षिणा । (२) महावत, दशरात्र, दर्शपूर्णमास, पवित्रेष्टि, पुत्रका रेष्टि, धातु-। पुराणानुसार यज्ञ करनेवाले माथुर ब्राह्मणों की वे निपा जो मास्य सौत्रामणि, दशपेय, पुरुषमेध आदि आदि। अपने पत्तियों के मना करने पर भी श्रीकृष्ण के लिये भोजन आर्यों की ईरानी शाखा में भी यज्ञ प्रचलित रहे और लेकर बन में गई थीं। "यन" कहलाते थे। इस "यन" से ही फारसी का "जश्न" | यक्षपर्वत-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक पर्वत का नाम जो शब्द बना है। यह यज्ञ वास्तव में एक प्रकार के पुण्योत्सव । नर्मदा के उत्तर-पश्चिम में है। थे। अब भी विवाह यज्ञोपवीस आदि उत्सवों को कहीं कहीं यक्षपशु-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वह पशु जिसका यज्ञ में बलिदान यज्ञ कहते है। किया जाय। (२) घोड़ा । (३) बकरा । पर्या०-सव । अधर । सप्ततंतु । ऋतु । इष्टि । वितान । | यज्ञपात्र-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ में काम आनेवाले काठ के बने मन्यु । आहव । सवन । हर। अभिषय । होम । हवन । हुए बरतन । मह । (२) विष्णु। यशपाव-संज्ञा पुं० [सं० ] एक प्राचीन ऋषि का नाम जिनका यक्षक-संज्ञा पुं० [सं०] (9) यज्ञ । (२) वह जो यज्ञ करता हो । ___ उल्लेख पराशर स्मृति में है। यज्ञकर्ता-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ करनेवाला । याजक । यजमान ।। यशपाल-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ का संरक्षक। यज्ञ की रक्षा यज्ञकर्म-संशा पुं० [सं०] यज्ञ का काम । करनेवाला। यशकल्प-संज्ञा पुं० [सं० ] विष्णु। यशपुरुष-संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु। उ०-यज्ञ पुरुष प्रसन्न जब यसकारी-संशा पुं० [सं० यशकारिन् ] वह जो यज्ञ करता हो। भए । निकसि कुंड से दरशन दए।—सूर । यज्ञ करनेवाला। यज्ञफलद-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ का फल देनेवाले, विष्णु । यझकाल-संज्ञा पुं० [सं०] (१) यज्ञादि के लिए शास्त्रों द्वारा | यशवाहु-संज्ञा पुं० [सं०] (1) अग्नि का एक नाम। (२) पुराणा- निर्दिष्ट समय । (२) पौर्णमासी। नुसार शाल्मलि द्वीप के एक राजा का नाम । यझकीलक-संज्ञा पुं० [सं०] काठ का वह खूटा जिसमें यज्ञ के यशभाग-संज्ञा पुं० [सं०] (1) यज्ञ का अंश, जो देवताओं को लिए बलि दिया जानेवाला पशु बाँधा जाता था। यूपकाष्ट ।। दिया जाता है। (२) ये देवता जिन्हें यश का भाग मिलसा यज्ञकुंड-संज्ञा पुं॰ [सं०] हवन करने की वेदी या कुंछ । है। जैसे, इंद्र। यमकेतु-संज्ञा पुं॰ [सं०] (1) वह जो यज्ञ की क्रियाओं का | यशभाजन-संशा पुं० [सं० ] यज्ञपात्र । ज्ञाता हो। (२) एक राक्षस का नाम । यज्ञभूमि-संज्ञा स्त्री० [सं०] वह स्थान जहाँ यज्ञ होता हो। यज्ञकोप-संज्ञा पुं० [सं०1 (1) वह जो यज्ञ से द्वेष करता हो। यज्ञक्षेत्र । (२) रावण के दल का एक राक्षस, जिसका उल्लेख वाल्मी- यशभूषण-संज्ञा पुं० [सं०] कुश । कीय रामायण में है। यज्ञभोक्ता-संज्ञा पुं० [सं० यज्ञभोक्त ] विष्णु । यक्षतु-संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु । यज्ञमंडप-संशा पुं० [सं० ] यज्ञ करने के लिये बनाया हुआ यशक्रिया-संशा स्त्री० [सं०] (1) यज्ञ के काम । (२) कर्मकांट। मंडप । यशगिरि-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक पर्वत का नाम । | यज्ञमंडल-संज्ञा पुं० [सं० ] वह स्थान जो यश करने के लिये यय-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वह जो यश विध्वंस करता हो। घेरा गया हो। (२) राक्षस। | यशमंदिर-मंचा पुं० [सं० ] यज्ञशाला । A .