पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यथाजात २८४६ यदि क्रोधादि पातकों ) का जिन साधुओं ने क्षय किया हो, ! यथाशक्ति-अव्य० [सं०] सामर्थ्य के अनुसार । जितना हो उनका चरित्र । (जैन) सके । भरसक । यथाजात--संज्ञा पुं० [सं०] मूर्ख । बेवकूफ । नीच । यथाशास्त्र-अन्य ० [सं०] शास्त्र के अनुसार । शास्त्र के अनुकूल । यथातथ्य-अन्य० [सं०] जैसे का तैसा । ज्यों का त्यों । हुबह । जैसा शास्त्रों में वर्णित है वैसा । जैसा हो, वैसा ही। यथासंभव-अन्य ० [सं०] जहाँ तक हो सके। जितना हो सके। यथानियम-अन्य० [सं० ] नियमानुसार । कायदे के मुताबिक जितना मुमकिन हो। बाकायदा। यथासमय-अन्य ० [सं०] (१) ठीक समय पर । ठीक वक्त पर । यथान्याय-अव्य ० । सं०] न्याय के अनुसार । जो कुछ न्याय हो, नियत समय पर । (२) समय के अनुसार। जैसा समय वैसा । यथोचित । हो, वैसा । यथापूर्व-अव्य० [सं०] (1) जैसा पहले था, वैसा ही। पहले यथासाध्य-अन्य [ मं०] जहाँ तक हो सके। जितना किया की नाई। पूर्ववत् । (२) ज्यों का त्यों। जा सके। यथाशक्ति। यथाभाग-अव्य० [सं०] (1) भाग के अनुसार जितना चाहिए, यथास्थान-अन्य० [सं० ] ठीक जगह पर। अपने स्थान पर । उतना । हिस्से के मुताबिक । (२) यथोचित ।। उचित स्थान पर। यथामति-अन्य ० । सं०] बुद्धि के अनुसार । समझ के मुताबिक । यथेच्छ-अव्य० [सं०] जितना या जैसा जी में आवे, उतना या यथायोग्य-अव्य० [सं०] जैसा चाहिए, वैसा । उपयुक्त। वैसा । इच्छा के अनुसार । मनमाना । ___ यथोचित । मुनासिव । यथेच्छाचार-संशा पुं० [सं०] जो जी में आवे, वही करना; यथाग्थ* अन्य० दे० "यथार्थ"। और उचित अनुचित का ध्यान न करना । स्वेच्छाचार । यथारुचि-अन्य० [सं० } रुचि के अनुसार । पसंद के मुताबिक । मनमाना काम करना। इच्छानुसार । मरजी के मुताबिक । यथेच्छाचारी-संशा पुं० [सं० यथेच्छाचारिन् ] (1) मनमाना यथार्थ-अन्य ० [सं०] (1) ठीक । वाजिव । उचित । जैसे, आचार करनेवाला । यथेच्छाचार करनेवाला । (२) जो ___आपका कहना यथार्थ है। (२) जैसा ठीक होना चाहिए, कुछ जी में आवे, वही करनेवाला । मनमौजी। वैसा । ज्यों का त्यों । जैसे का तैसा । यथेच्छित-वि० [सं०] इच्छानुसार । मनमाना । मनचाहा । यथार्थता-संशा स्त्री० [सं० } यथार्थ का भाव । सचाई । सस्यता। यथेष्ट-वि० [सं०] जितना इष्ट हो। जितना चाहिए, उतना । सच्चापन । काफी । पूरा । जैसे,—(क) वे वहाँ से यथेष्ट धन ले आए। यथालब्ध-वि० [सं०] (१) जितना प्राप्त हो, उसी के अनुसार। (ख) इस विषय में यथेष्ट कहा जा चुका है। जो कुछ मिले, उसी के मुताबिक । (२) जैनियों के यथेष्टाचरण-संज्ञा पुं० [सं०] मनमाना काम करना । इच्छा- अनुसार, जो कुछ मिल जाय उसी से सन्तुष्ट रहने की नुसार व्यवहार करना । स्वेच्छाचार । यथेष्टाचार-संज्ञा पुं० दे. “यथेष्वाचरण" । यथालाभ-वि० [सं० ] जो कुछ मिले, उसी के अनुसार । जडे यथेाचारी-संज्ञा पुं० [सं० यथेष्टाचारिन् ] अपने मन के अनुसार प्राप्त हो, उसी पर निर्भर । उ०-यथालाभ संतोष सदा व्यवहार करनेवाला । मनमाना काम करनेवाला । परगुन नहि दोष कहाँगो।-तुलसी। यथाक्त-अन्य ० [सं०] जैसा कहा गया हो। कहे हुए के अनुसार। यथावत्-अन्य० [सं० ] (1) ज्यों का त्यों । जैसा था, वैसा ही। यथोक्तकारी-वि० [सं० यथाक्तकारिन् ] (1) शास्त्रों में जो कुछ जैसे का तसा । (२) जैसा चाहिए, वैसा। पूर्ण रीति से ।। कहा गया हो, वही करनेवाला । (२) आज्ञाकारी । अच्छी तरह । जैसे, यथावत् सत्कार करना । यथोचित-वि० [सं० ] जैसा चाहिए, वैसा । मुनासिब । ठीक । यथावस्थित-अव्य० [सं०] (1) जैसा था, वैसा ही। (२) । (२) जैसे,—उसे यथोचित दंड मिलना चाहिए। सस्य । ठीक । (३) स्थिर । अचल । यदपि*--अव्य० दे. “यद्यपि"। यथाविधि-अव्य. [सं.] विधि के अनुसार । विधिपूर्वक । यदा-अन्य० [सं०] (१) जिस समय । जिस वक्त । जब। विधिवत् । यथाविहित-अव्य० [सं०] जैया विधान हो, वैसा ही। विधि | यदाकदा-अन्य [सं.] जब तब । कभी कभी। के अनुसार। यदि-अव्य० [सं०] अगर । जो। यथाशक्य-अन्य० [सं०] जहाँ तक हो सके। जहाँ तक संभव विशेष-इस अभ्यय का उपयोग वाक्य के आरंभ में संशय हो । जहाँ तक मुमकिन हो । सामर्थ्य भर । भरसक । अथवा किसी बात की अपेक्षा सूचित करने के लिए होता वृत्ति।