पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५६१

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यवीनर यह यवीनर-सशा पु.. | 01 (1) पुराणानुसार अजमीढ़ के एक पुत्र का नाम । (३) एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक का नाम । (२) भागवत के अनुसार निमी के एक पुत्र जगण और दो गुरु वर्ण होते है। जैसे,—जपौ गुपाला । का नाम । सुभोर काला । कहै यशोदा । लहै प्रमोदा। यवादभव-संज्ञा पुं० [स] यवक्षार । जवाग्वार । यगंधर-संज्ञा पुं० [सं०] (१) रुक्मिणी के गर्भ से उत्पन्न कृष्ण यव्यावती-सं. .| मं० 1 (१) वैदिक काल को एक नदी। के एक पुत्र का नाम । (२) उत्पर्पिणी के एक अर्हत् का (२) वैदिक काल को एक नगरी । नाम । (जैन) (३) कर्म अथवा सावन मास का पाँचों यश-संशा पुं० [म. यश] (१) अच्छा काम करने से होनेवाला दिन । नाम । नेकनामी । कीर्ति । सुख्याति । उ०—(क) यश यशोधग-संज्ञा स्त्री० [सं०(१) गौतम बुद्ध की पत्नी और अपयश दंग्यत नहीं देग्वत ३यामल गात |-विहारी। राहुल की माता का नाम । (२) कर्म अथवा सावन मास (ब) रक्षहु मुनि जन यश ली। केश। (ग) हा पुत्र की चौथी रात । लक्ष्मण छुड़ावह वगि माहीं । मार्त इबंश यश की यवलाज यशोधरेय-संज्ञा पृ० स० | यशोधरा का पुत्र, राहुल । तोहीं।-शव । यशोमति, यशोमती-संशा मा० दे० 'यशोदा"। क्रि० प्र०—पाना । --मिलना। यशोमत्य-संज्ञा पुं० [सं०] मार्कंडेय पुराण के अनुसार एक महा०---यश कमाना या लटना-11 प...रना | ममिल जाति का नाम । करना। यशोमाधव-संशा पु० [स. विष्णु। (२) बड़ाई। प्रशंसा । महिमा । यनि-संशा मी० [सं०] (२) लाठी। छड़ी। लकदी। (२) मुहा०—यश गाना-५) प्र. करना । (२. काश होना। पताका का 'इंडा । ध्वज । (३) टहनी । शाखा। डाल । समान मानना। यश माननाः . शामा । निलोग मानना । (४) जेठी मधु । मुलेठी । (५) ताँत । (६) गले में पहनने मान मानना। का एक प्रकार का मोतियों का हार । (७) लता । बेल । यशय, यशम-सा पुं- aa] एक प्रकार का पत्थर जो हरा (८) बाहु । याह । या होता है । यह चीन और लंका में बहुत होना है। इसकी यटिक-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) तीतर पक्षी । (२) डंडा। (३) नादली बनता है, जिसे लोग छाती पर पहनने हैं। कलेजे, मजीठ। मेद और दिमाग की बिमारियों को दूर करने का इस पत्थर यष्टिका-संज्ञा दी | सं०] (1) हाथ में रखने की छदी । लकड़ी। में विलक्षण प्रभाव माना जाता है। यह भी कहा जाता है लाठी । (२) जेठी मधु । मुलेठी । (३) बावली । बापी। कि जिसके पास यह पत्थर होता है, उस पर विलं. का (४) गले में पहनने का हार । यष्टी । कुछ प्रभाव नहीं होता । इगे 'संग-यशव" भी कहते हैं। यटिकाभरण-संजा ५० [सं० ] सुश्रुत के अनुसार जल को ठंढा यशम्यान-वि.मं. 14-1] । स्व. यशव यशस्वः । करने का उपाय । कीर्तिमान् । यष्टिमधु-संशा पु० [सं.] जेठी मधु । मुलेठी। यशस्विनी-मशः मा० | १० | (१) यन कपाय । (२) महा. यष्टियंत्र-संशा पु० [सं० ] वह धूप घड़ी जिसमें एक छड़ी सीधी ज्योतिष्मती । (३) गंगा। बड़ी गाड़ दी जाती है और उसकी छाया से समय का वि० मा. जिसे यश प्राप्त हो । कतिम्ती। ज्ञान प्राप्त किया जाता है। यशस्वी-विक यशवन्] जिसका व यश हो। कीर्तिमान। यधी-संशा मी० 1 सं०] (१) गले में पहनने का एक प्रकार का यशी-वि० [र या+ई (अन्य ) । यशस्वी । कीर्तिमान । हार । मोतियों की ऐसी माला जिसमें बीच बीच में मणि उ.--ये जो पाँचों पुत्र तुम्हारे हैं, मां महावी अशी भी हो। (२) मुलेठी। होंगे।-रल्लू । यस्क-संज्ञा पुं० [सं० } एक गोत्र-प्रवर्तक ऋषि का नाम । यशील-वि० [सं० या प्र.)। कीर्तिमान् । यशस्वी। यह-सर्थ । सं० इदं ] निकट की वस्तु का निर्देश करनेवाला एक उ०-अंबर चित्र विचिन विरान आयो सुशील यशील, सर्वनाम, जिसका प्रयोग वक्ता और श्रोता को छोड़कर और सभा में।-रघुराज 1 सब मनुष्यों, जीवों तथा पदार्थों आदि के लिए होता है। यशुमति-सज्ञा की दे० "यशोदा"। जैसे,—(क) यह कई दिनों से बीमार है। (ख) यह तो यशोद-संज्ञा पुं० [स. ] पारा। अभी चला जायगा। यशोदा-मंशा सी० [40] (1) न- की स्त्री जिन्होंने श्रीकृष्ण विशेष-(क) जब इसमें विभक्ति लगती है, यह इसका रूप को पाला था। वि० दे० "नंद"। (२) दिलीप की माता . खड़ी बोली में "इस" और ब्रज भाषा में 'या' हो जाता है।