पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५६३

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याजुपीबृहतो २८५४ याददाश्त याजुषीबृहती-संशा स्त्री० [ सं.] एक वैदिक छंद जिसमें नौ यातु-संज्ञा पुं० [सं०] (1) श्रानेवाला । (२) रास्ता चलनेवाला। वर्ण होते हैं। पथिक । (३) राक्षस । (१) काल । (५) बायु। हवा। याज्य-वि० [सं०] (1) यज्ञ कराने योग्य । (२) जो यज्ञ में (६) यातना । कष्ट । (७) हिंसा । (८) अस्त्र । दिया या पढ़ाया जानेवाला हो। (३) (दक्षिणा) जो यातुध-संज्ञा पुं० [सं०] गुग्गुल। यज्ञ कराने से प्रास हो। यातुधान-संज्ञा पुं० [सं०] राक्षस । उ०-पक्षिराज यक्षराज याश-वि० [सं०] यज्ञ संबंधी। यज्ञ का। प्रेतराज यातुधान । देवता अदेवता नृदेवता जिते याज्ञतूर-मंशा पु०म० ] एक प्रकार का साम। जहान । केशव । यामदत्ति-मंशा पुं० [सं० ] कुवेर । यालिक-संज्ञा पुं० [सं० ] बौद्धों का एक संप्रदाय । याज्ञवल्क्य-संज्ञा पुं० मं०] (1) एक प्रसिद्ध ऋपि जो वैशम्पायन यात्रा-संशा स्त्री० [सं०] (३) एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के शिष्य थे। कहते है कि एक यार वैशम्पायन ने किसी की क्रिया । सफर । (२) प्रयाण । प्रधान । (३) दर्शनार्थ कारण मे अप्रसन्न होकर इनमे कहा कि तुम मेरे शिष्य होने देवस्थानों को जाना । तीर्थाटन । (४) उत्सव । (५) व्यव- के योग्य नहीं हो; अत: जो कुछ तुमने मुझमे पढ़ा है, वह हार । (६) बंग देश में प्रचलित एक प्रकार का अभिनय, सब लौटा दो। इस पर याज्ञवल्क्य ने अपनी सारी पढ़ी जिसमें नाचना और गाना भी रहता है। यह प्रायः राय- हुई विद्या उगल दी, जिसे वैशंपायन के दूसरे शिष्यों ने तीतर लीला के ढंग का होता है। बनकर चुग लिया । इसीलिए उनकी शाखाओं का नाम ' यात्रावाल-मंशा पुं० [सं० यात्रा+हिं बाल (प्रत्य॰)] वह बाह्मण तैत्तिरीय हुआ। याज्ञवल्क्य ने अपने गुरु का स्थान छोड़कर या पंडा जो तीर्थाटन करनेवालों को देव-दर्शन सूर्य की उपासना की और सूर्य के वर में वे शुक्ल यजुर्वेद कराता हो। या वाजसनेयी संहिता के आचार्य हुए । इनका दूसरा नाम : यात्रिक-संज्ञा पुं० [सं०] (१) यात्रा का प्रयोजन । कहीं जाने वाजसनेय भी था। (२) एक ऋपि जो राजा जनक के का अभिप्राय या उद्देश्य । (२) वह जो जीवन धारण करने दरबार में रहते थे और जो योगीश्वर याज्ञवल्लय के नाम से . के लिए उपयुक्त हो । (३) यात्री । पथिक । (४) यात्रा की प्रसिद्ध है। मैत्रेयी और गार्गी इन्हीं की पत्नियों थीं। (३) सामग्री । सफर का सामान । योगीश्वर याज्ञवल्क्य के वंशधर एक स्मृत्तिकार । मनुस्मृति वि० (१) यात्रा संबंधी । यात्रा का । (२) जो बहुत दिनों के उपरांत इन्हीं की स्मृति का महत्व है; और उसका : से चला आता हो।रीति के अनुसार । प्रधानुकूल । दायभाग आज तक कानून माना जाता है। यात्री-संज्ञा पुं० [सं० यात्रा ] (१) एक स्थान से दूसरे स्थान को याज्ञसेनी-सशास्त्री० [सं०] द्रौपदी का एक नाम । जानेवाला । यात्रा करनेवाला । मुसाफिर । (२) देव-दर्शन याशिक-संज्ञा पुं० [सं०] (9) यज्ञ करने या करानेवाला । (२) . या तीर्थाटन के लिए जानेवाला। गुजराती आदि ब्राह्मणों की एक जाति । याथातथ्य-संहा पुं० [सं०] यथातथ्य होने का भाव । यथार्थता । यातन-संज्ञा पुं० [सं०] (1) परिशोध । बदला । (२) पारि-! ठीक-पन । तोपिक । इनाम। याथार्य-संज्ञा पुं० [सं०] यथार्थ होने का भाव । यथार्थता । यातना-संज्ञा स्त्री० [सं० । (१) बहुन अधिक कष्ट। तकलीफ। यादःपति-संज्ञा पुं० [सं०] (१) समुद्र । (२) वरुण । पीड़ा । उ०—कोरि कोरि यातनानि फोरि फोरिमारिये।- याद-संज्ञा स्त्री० [फा०] (1) स्मरण शक्ति । स्मृति । जैसे,- केशव । (२) दंड की वह पीड़ा जो यमलोक में भोगनी आपकी याद की मैं प्रशंसा करता हूँ। (२) रमरण करने की पड़ती है। क्रिया । जैसे,—मैं अभी आपको याद ही कर रहा था। यातव्य-वि० [सं०] (ऐसा शत्रु ) जो पास होने के कारण क्रि० प्र०—करना ।—दिलाना । —पड़ना ।—रखना ।- चढ़ाई के योग्य हो। रहना।—होना। याता-संशा स्त्री० [सं० यातु ] पति के भाई की स्त्री। जेठानी वा संज्ञा पुं० [सं० यादम् ] मछली, मगर आदि जलजंतु । देवरानी । उ०-सास ननंद यातान को आई नीठि सुवाय। यादगार-संज्ञा स्त्री० [फा०] वह पदार्थ जो किसी की स्मृति के अब आली घर गवन की सुधि आये सुधि जाय। मतिराम। रूप में हो। स्मृति-चिह्न । स्मारक । संज्ञा पुं॰ (1) जानेवाला । (२) रथ चलानेवाला । सारथी। याददाश्त-संज्ञा स्त्री० [फा०] (1) स्मरण शक्ति। स्मृति । (३) मार डालनेवाला । हत्या करनेवाला। जैसे,—आपकी याददाश्त बहुत अच्छी है। (२) किसी यातायात-संज्ञा पुं० [सं०] गमनागमन | आना जाना ।। घटना के स्मरणार्थ लिखा हुआ लेख । स्मरण रखने के लिए आमद-रफ्त । लिखी हुई कोई बात।