पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५६५

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यामुनेष्टक २८५६ यावनी शिक्षा संज्ञा पुं० (१) यमुना के किनारे बसनेवाले मनुष्य । (२) परदा खोलि के सनमुख लै दीदार । बाम सनेही साइयाँ एक पर्वत का नाम । (३) महाभारत के अनुसार एक तीर्थ आदि अंत का यार ।-कबीर । (ख) रह्यौ रुक्यौ क्यों का नाम । (४) सुरमा । अजन । (५) गृहत्संहिता के अनु हु सुचलि आधिक राति पधारि। हरतु ताप सब चौस को सार एक जनपद का नाम । यह जनपद कृत्तिका, रोहिणी उर लगि यार बयारि ।-बिहारी। किसी स्त्री से अनुचित और मृगशीर्ष के अधिकार में माना जाता है। (६) एक संबंध रखनेवाला पुरुष । उपपति । जार । वैष्णन आचार्य का नाम । ये दक्षिण के रंगक्षेत्र के रहनेवाले यारकंद-संज्ञा पुं० [त. यारकंद (नगर) ] एक प्रकार का बेल-बूटा थे और रामानुजाचार्य के पूर्व हुए थे। ये संस्कृत के अच्छे जो कालीन में बनाया जाता है। विद्वान् थे। इनके र वे हुए आगम प्रामाण्य सिद्धित्रय, भग- याराना-संज्ञा पुं० { फा०] (1) यार होने का भाव । मित्रता । वदगीता की टीका, भगवद्गीता संग्रह और आत्ममंदिर मैत्री। (२) स्त्री और पुरुष का अनुचित संबंध या प्रेम । स्तोत्र आदि ग्रंथ अब तक मिलते हैं। कुछ लोग इन्हें रामा- क्रि० प्र०—करना ।--गठना ।—रखना ।—होना । नुजाचार्य का गुरु यतलाते हैं। यामुनाचार्य । यामुन मुनि। वि० मिम्र कासा । मित्रता का । जैसे, याराना बर्ताव । यामुष्टक-संज्ञा पुं० [सं०] मीया । यारी-संज्ञा सी० [फा०] (1) मैत्री । मित्रता । उ०-यारि यामेय-संदा पु० [सं०] (1) बहन का लड़का । भान्जा । (२)। फेरि के आय पै जरति न मोरे अंग। रूप रोसनी वैझपै ___धर्म की पत्नी यात्री के पुत्र का नाम । नेही नैन पतंग । -रसनिधि। (२) स्त्री और पुरुष का यास्य-संशा पु० [सं० 1 (1) चंदन । (२) शिव । (३) विष्णु। अनुचित प्रेम या संबंध । (४) अगम्त्य मुनि । (५) यमदूत । क्रि० प्र०-गाँठना ।—जोड़ना । वि० (१) यम संबंधी। यम का । (२) दक्षिण का। यार्कायन-संज्ञा पुं० [सं० ] यक ऋषि के गोत्र में उत्पन पुरुष दक्षिणीय । वा अपत्य । याम्यदिग्भवा-संगा या• [ स ] तमालपत्री। याल-संज्ञा स्त्री० [त. ] घोड़े की गर्दन के ऊपर के लंबे बाल । याम्पद्रम-संज्ञा पुं० [सं. ममल का पेड़ । शाल्मलि वृक्ष । अयाल । वाग। याम्या-संशा स्पी० [सं० } (१) दक्षिण दिशा । (२) भरणी याव-संथा पुं० [म.) (१) जी का सत्त । (२) लाख । नक्षत्र (३) महावर । यस्यायन-संज्ञा पुं० [सं०] दक्षिणायन । वि० (१) यव मे बनाया हुआ। जौ का । (२) यव संबंधी। याम्यंत्तर दिगंश-संशा ५० [सं०] लेबांश । दिगंश। ( भूगोल, यव का। ___ग्वगोल)

यावक-संज्ञा पुं० [सं० } (1) जौ। (२) यव वा जौ का सत्त ।

याम्योत्तर रेखा-संशा सम0 ] वह कल्पित रेग्या जो किसी (३) वह वस्तु जो जौ से बनाई गई हो। (५) कुल्माप । स्थान में आरंभ होकर सुमेरु और कुमेरु से होती हुई भूगोल बोरो धान । (५) माठी धान । (६) उड़द । माप । (७) के चारों ओर मानी गई हो। लाग्य । (८) महावर । विशेष-पहले भारतीय ज्योतिषी यह रेखा उज्जयिनी या याव-वि० [सं० 1 (1) जितना । लंका में गई हुई मानते थे। पर अब लोग योरप और अमे. विशेष—यह तावत् के साथ और उससे पहले आता है। रिका आदि के भिन्न भिन नगरों से गई हुई मानते है। आज (२) सय । कुल। कल बहुधा इस रेखा का केन्द्र इंगलैण्ड का ग्रीनिच नगर कि० वि० (३) जब तक । (२) जहाँ तक । माना जाता है। यावन-संज्ञा पुं० [सं० ] लोबान । यायावर-सशा पु० [सं०] (१) अश्वमेध का धोड़ा। (२) जरत्कारु वि० [स्त्री० यावनी ] यवन संबंधी । यवन का। जैसे, मुनि । (३) मुनियों के एक गण का नाम । जरत्कारु जी यावनी भाषा । यावनी सेना । इसी गण में थे। (४) एक स्थान पर न रहनेवाला साधु। यावनक-संज्ञा पुं० [सं० ] लाल अंडी । रक्त एर। सदा इधर उधर घूमता रहनेवाला संन्यासी । (५) यांचा। यावनकल्क-संज्ञा पुं० [सं० ] शिलारस । याचना । (६) वह ब्राह्मण जिसके यहाँ गाईपस्य अग्नि बरा- यावनाल-संज्ञा पुं॰ [सं०] जुआर । मक्का । घर रहती हो । माग्नि ब्राह्मण । यावनाली-संज्ञा स्त्री० [सं०] मक्के से बनाई हुई चीनी । ज्वार यायी-वि० [सं० यायिन् | | श्री. यायिनी ] जानेवाला । जो जा की शक्कर । ___ रहा हो । गमनशील। यावनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] कर कशालि नाम की ईख । रसाल । यार-संज्ञा पुं॰ [ फा . ] (१) पित्र। दोस्त । उ०—(क) बाँका वि० स्त्री० यवन संबंधी । जैसे, यावनी भाषा। यावी