पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५६६

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याघर युगकीलक यावर-वि० [फा०] सहायक । मददगार । युक्तरसा-संशा सा० [सं०] (1) गंधरात्रा । गंधनाकुली । यावरी-मंज्ञा स्त्री० [सं०] यावर का भाव या धर्म । मित्रता । नाकुल कंद । (२) राना । रापन । युक्तधेयसी-सशास्त्री० [सं०] गंध राम्ना । नाकुली कंद। यावशूक-संज्ञा पुं० [सं.] यवक्षार । जवाखार । युक्ता-संशा स्त्री० [सं०] (1) एलापर्णी । (२) एक वृत्त का यावस-संशा पु० [सं०] घास, डंठल आदि का पूला । जुरा । नाम जिसमें दो नगण और एक मगण होता है। जोरा। युनायस-संज्ञा पु० [सं०] प्राचीन काल के एक अस्त्र का नाम यावास-संशा पुं० [सं०] यवास से बनाया हुआ मद्य । जवामे जो लोहे का होता था। की शराब। युक्तार्थ-वि० [सं० ] ज्ञानी । याविक-सं-IT पुं० [ स. ] मक्का नामक अन्न । युक्ति-संज्ञा स्त्री | सं० ] (1) उपाय । ढंग । तरकीब । (२) कौशल। यावी-संशा ली. [सं०] (1) शंखिनी । (२) यधतिका नाम की चातुरी। (३) चाल । रीति । प्रथा । (४) न्याय । नीति । लता। (५) अनुमान । अंदाजा । (६) उपपत्ति । हेतु । कारण । याधीक-संज्ञा पुं० [सं.] लाठी बाँधनेवाला योन्द्रा । लठबंध । (७) नर्क । ऊहा । (८) उचित विचार । ठीक तर्क जैसे, लठत । युक्तियुक्त बात । (९) योग । मिलन । (१०) एक अलंकार का यास-संज्ञा पुं० [सं.] लाल धमासा ।। नाम, जिसमें अपने मर्म को छिपाने के लिए दूसरे को किसी यासा-संज्ञा स्त्री० [सं०1 (1) कोयल । (२) मना। क्रिया या युक्ति द्वारा वंचित करने का वर्णन होता है। उ.- यासु*-सर्व० दे. "जासु"। लिम्बत रही पिय-चित्र तहँ आवत लखि सखि आन । चतुर यास्क-संज्ञा पुं० [सं०] (१) यस्क ऋषि के गोत्र में उत्पन्न तिया तेहि कर लिग्वे फूलन के धनुबान । (११) केशव के पुरुष। (२) वैदिक निरुक्त के रचयिता एक प्रसिद्ध ऋषि अनुसार उक्ति का एक भेद जिसे स्वभावोक्ति भी कहते हैं। का नाम। युक्तिकर-वि० [सं० ) जो तर्क के अनुग्गार ठीक हो। उचित यास्कायनि-संज्ञा पुं० [सं०] यास्क के गोत्र में उत्पन्न पुरुष। विचारपूर्ण । युक्ति-संगत । युक्तियुक्त । याहि*-सर्व० [हिं० या+हि ] इसको । इसे । उ०--जो युक्तियुक्त-वि० [सं० ] उपयुक्त तर्क के अनुकूल । युक्ति-संगत । यह मेरो बैरी कहियत ताको नाम पहायो । देहु गिराय ठीक । वाजिब । जैसे,—आपको सभी बातें बहुत ही याहि पर्वत ते क्षण गतजीव करायो।-सूर । युक्तियुक्त होती है। यंजान-संशा पु० [सं०] (1) सारथी । (२) विप्र । (३) दो युगंधर-संज्ञा पुं० [सं०] (1) कूबर। हरम । (२) गाड़ी का प्रकार के योगियों में से वह योगी जो अभ्यास कर रहा हो, बम । (३) एक पर्वत का नाम । (४) हरिवंश के अनुसार पर मुक्त न हुआ हो। कहते है कि ऐसा योगी समाधि तृणि के पुत्र और सात्यकि के पौत्र का नाम । लगाकर सब बातें जान लेता है। युग-संशा पु० [सं०] (1) एकत्र दो वस्तुएँ । जोड़ा । युग्म । यंजानक-संज्ञा पुं० सं०] युजान नामक योगी। दे. "युजान"। (२) जुआ । जुआठा । (३) ऋद्धि और वृद्धि नामक दो युक्त-वि० [सं०] (1) एक साथ किया हुआ। जुड़ा हुआ। ओषधियाँ । (४) पुरुष । पुश्त । पी। (५) पास के खेल किसी के साथ मिला हुआ। (२) मिलित । मम्मिलित । की व गोल गोल गोटियाँ, जो बिमान पर चली जाती (३) नियुक्त। मुकर्रर । (४) आसक्त । (५) सहित । हैं। (६) पासे के ग्वेल. की वे दो गोटियों जो किपी संयुक्त । साथ । (६) संपन्न । पूर्ण । (७) उचित । ठीक । प्रकार एक घर में साथ आ बैठती है। (७) पाँच वर्षका वाजिब । संगत । मुनासिब । यह काल जिसमें वृहस्पति एक राशि में स्थित रहता है। संज्ञा पुं० (१) वह योगी जिसने योग का अभ्यास कर (८) समय । काल । जैम, पूर्व युग । (९) पुराणानुसार लिया हो। (ऐसे योगी को, जो ज्ञान-विज्ञान से परितृप्त, काल का एक दीर्घ परिमाण । ये संख्या में चार माने गए कूटस्थ, जितेंद्रिय हो और जो मिट्टी और सोने को सुल्य है, जिनके नाम सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग हैं। जानता हो, युक्त कहा गया है।) (२) रैवत मनु के पुत्र दे० "सत्ययुग" आदि। का नाम । (३) धार हाथ का एक मान । मुहा०-युग युग बहुत दिनों तक । अनत काल तक। जैसे- युक्तरथ-संज्ञा पुं० [सं०] एक औषध-योग जिसका प्रयोग युग युग जीओ। युगधर्म समय के अनुसार चाल या व्यवहार। वस्तिकरण में होता है। भावप्रकाश में रंड़ की जद के वि. जो गिनती में दो हो। काय, मधु, तेल, सेंधा नमक, बच और पिप्पली के योग युगकालक-संघा पुं० [स० ] वह लकड़ी या खू या जो बम जोर को युक्तरथ कहा है। जुए के मिले छेदों में डाला जाता है। सैल।सैला। ७१५