पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५६८

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युतबेध युधिष्ठिर हुए भाग से जोड़कर बाँधे रहते है। (६) मैत्री-करण। मित्ररेखा सकल जगत के नृपन की छिनिक में मुरति तक (७) संश्रय। लिखि देखाई। निरखि यदुवंश को रहस मन में भयो देखि युतधेध-संशा पुं० [सं०] एक योग का नाम । यह योग उस अनिरुद्ध युद्ध मॉड्यो । सूर प्रभु टी ज्यों भयो चाहै सो समय होता है, जब द्रमा पाप-ग्रह से सातवें स्थान में | त्यों फाँसि करि कुँअर अनिरुद्ध बाँध्यो ।-सूर होता है या पाप-ग्रह के साथ होता है। ऐसे योग के समय युद्धप्राम-संज्ञा पुं० [सं०] वह पुरुष जो संग्राम में पकड़ा गया विवाहादि शुभ कमों का, फलित ज्योतिष में, निषेध है। । हो। यह दास के बारह भेदों में से एक है और वजाहत युति-संज्ञा स्त्री० [सं० ] योग । मिलन । मिलाप। मी कहलाता है। युद्ध-संज्ञा पुं० [सं०] लबाई । संग्राम । रण । युद्धमय-वि० [सं० ] (१) युद्ध संबंधी । (२) रणप्रिय । युद्ध- विशेष प्राचीन काल में युद्ध के लिए स्थ, हाथी, घोड़े और प्रिय । पदाति ये चार सेना के प्रधान अंग थे और इसी कारण ! युद्धमुष्टि-मंशा पुं० [म.] उपपेन के एक पुत्र का नाम । सेना को चतुरंगिणी कहते थे। इन चारों के संख्या-भेद के युद्धग्ग-संज्ञा पुं० [सं०] (1) कार्तिकेय । स्कंध । (२) युद्ध- कारण पत्ति, गुल्म, गण आदि सेना के अनेक भेद और | स्थल । रणभूमि । लड़ाई का मैदान । उनके पन्निवेश भेद से शूची, श्येन, मकरादि अनेक स्यूह युद्धसार-संज्ञा पुं० [सं० ] घोड़ा। थे। सैनिकों को शिक्षा संकेत-ध्वनियों मे दी जाती थी, युद्धाचार्य-संज्ञा पुं० [सं०] वह जो दूसरों को युद्ध विद्या की जिसे सुनकर सैनिकगण सम्मीलन, प्रसरण, प्रभ्रमण, शिक्षा देता हो । युद्ध सिखलानेवाला। आकुंचन, यान, प्रयाण, अपयान आदि अनेक चेष्टाएँ करते युद्धाजि-संज्ञा पुं० [सं०] अंगिरा के गोत्र में उत्पन्न एक ऋषि थे। संकाम के दो भेद थे--एक द्वंद्व और दूसरा निईदु । का नाम । जिस संग्राम में कृत्रिम वा अकृत्रिम दुर्ग में रहकर शत्रु से युद्धोन्मन-वि० [सं०] (१) युद्ध में लीन । लडाका। (२) युद्ध करते थे, उसे द्वंद्व युद्ध कहते थे। पर जब दुर्ग से जो युद्ध के लिए उतावला हो रहा हो। बाहर होकर आमने सामने खुले मैदान में लड़ते थे, तब संशा पुं० रामायण के अनुसार एक राक्षस का नाम । इसका उसे निद्व युद्ध कहते थे। निद्व युद्ध में समदेश में रथ दूसरा नाम महोदर था। यह रावण का भाई था और इसे युद्ध, विषम में हस्ति-युन्छ, मरु भूमि में अश्य-युद्ध, पर्व.. नील नामक वानर ने मारा था । तादि में पत्ति-युद्ध और जल में नौका-युद्ध किया जाता था। युध-संज्ञा स्त्री० [सं० ] युद्ध । लड़ाई। युद्ध के सामान्य निग्रम ये थे-(१) युद्ध उस अवस्था में युधांश्नौष्ठि-संज्ञा पुं० [सं०] एक ऋषि का नाम । किया जाता था, जब युद्ध से जीने की आशा और न युद्ध युधाजि-संशा पुं० दे० "युद्धाजि"। करने में नाश ध्रुव हो। (२) राजा और युद्ध शास्त्र के युधाजित्-संशा पुं० [सं०] (1) केकयराज के पुत्र का नाम । मर्मज्ञ पंडितों को युद्ध-क्षेत्र में नहीं जाने देते थे। उनसे यह भरत का मामा था। (२) कृष्ण के एक पुत्र का नाम । यथासमय युद्ध-नीति का केवल परामर्श और मंत्र लिया (३) कोष्टु नामक राजा के पुत्र का नाम । जाता था। (३) रथहीन, अश्वहीन, गजहीन और शत्रहीन युधान-संज्ञा पुं० [सं०] (१) क्षत्रिय । (२) रिपु । शत्रु । पर प्रहार नहीं होता था। (४) बाल, वृद्ध, नपुंसक और दुश्मन । अव्याहत पर तथा शांति की पताका उठानेवाले के ऊपर युधामन्यु-संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक राजा का शमान नहीं चलाया जाता था। (५) भयभीत, शरणप्राप्त! नाम जो महाभारत युद्ध में पांडवों की ओर से लदा था । युद्ध से विमुख और विगत पर भी आधात नहीं किया ! युधासर-संज्ञा पुं॰ [सं०] नंद राजा का एक नाम । जाता था। (६) संग्राम में मारनेवाले को ग्रह्माहरयादि दोष : युधिक-वि० [सं० } योद्धा।। नहीं लगते थे। (७) लबाई से भागनेवाला बड़ा पातकी युधिष्ठिर-संज्ञा पुं० [सं०] पाँच पांडवों में सब से बड़े का नाम माना जाता था। ऐसे पातकी की शुद्धि तब तक नहीं होती : जो कुंती से उत्पन्न धर्म के पुत्र थे और पांदु के क्षेत्रज थी, जब तक कि वह फिर युद्ध में जाकर शूरता न दिख पुत्र थे। ये सत्यवादी और धर्मपरायण थे पर इन्हें जूए की लावे। लप्त थी, जिसके कारण यह अपना राज्य, भाइयों और क्रि० प्र०-छिखना ।-छेड़ना ।-नना -मचना। स्वयं अपने आपको जूए में हार गए थे। महाभारत के मचाना। संग्राम के अनंतर ये हस्तिनापुर के राजसिंहासन पर बैठे मुहा०-युद्ध माँग्ना लदाई ठानना । उ॰—कुंअर सन थे। महाभारत के अनुसार अपनी धर्मपरायणता के कारण श्याम मानों काम है दूसरो सपन में देखि उखा लुभाई। ये हिमालय होकर सदेह स्वर्ग गए थे। ये आजन्म सत्य