पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५६९

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युध्म २८६० का पालन करते रहे। कुरुक्षेत्र के युद्ध में कृष्ण ने इन युवगंड-संज्ञा पुं० [सं० ] मुहाँसा ।। यह अग्रस्य यात कहलानी चाही कि 'अश्वत्थामा मारा युवति, युवती-वि० स्त्री० [सं० ] प्राप्तयौवना । जवान (स्त्री)। गया। इस कथन मे द्रोण की मृत्यु निश्चित थी। इन्होंने मंज्ञा स्त्री० (१) जवान स्त्री। (२) प्रियंगु । (३) सोनजुही। बहुत आगा पीछा किया; पर अंत में इन्हें इतना कहना (४) हलदी। पड़ा-“अश्वत्थामा मारा गया, न जाने हाथी या मनुष्य"। युवतीष्ठा-संज्ञा स्त्री० [सं०] स्वर्ण यूधिका । सोनजुही। यह पिछला वाक्य इन्होंने कुछ धीरे में कहा था । इनके युवनाश्व-संज्ञा पुं० [सं०] (१) एक सूर्यवंशी राजा का नाम जीवन भर में सत्य के अपलाप का केवल यही एक उदाहरण जो प्रसेनजित् का पुत्र था । प्रसिद्ध मांधाता इसी का मिलता है। पुत्र था । (२) रामायण के अनुसार धुधुमार के पुत्र युध्म-संज्ञा पुं० [सं०] (1) संग्राम । युद्ध। (२) धनुप । (३) का नाम । वाण । (४) अस्त्र शस्त्र । (५) योन्द्रा । (६) शरभ । युवन्य-वि०म० ] जवान । युध्य-वि० [सं० ] जिसके साथ युद्ध किया जा सके। यवराई-संज्ञा स्त्री० [हिं० युवराज ] युवराज का पद । युनिवर्सिटी-संज्ञा स्त्री० दे० "यूनिवर्सिटी" । मंशा पुं० दे० “युवराज"। युयु-संज्ञा पु० | सं०] घोड़ा। यवगज-संज्ञा पुं० [सं०] {मी. यवरा ] राजा का वह राज- युयुपाखुर-संज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रकार का कोटा बाघ । कुमार जो उसके राज्य का उत्तराधिकारी हो । राजा का युयुक्षमान-वि० [सं०1 (1) मिलन या संयोग चाहनेवाला। वह मय से घड़ा लड़का जिसे आगे चलकर राज्य मिलने- (२) ईश्वर में लीन होने की कामना रखनेवाला। वाला हो। युयुत्सा-संशा थी | सं० ) (1) युद्ध करने की इच्छा । रहने युवराजत्व--संजा पुं० | मं०] युवराज का भाव वा धर्म । __ की इच्छा । (२) शत्रुता । विरोध । युवराज्य। युयुत्स-वि० [सं०] लड़ने की इच्छा रखनेवाला। जो लड़ना युवराजी-संश। 10 [सं.युवराज+ई (प्रत्य॰)] युवराज का पद । चाहता हो। युवराज्य । उ.--जिनहि देखि दशरथ नृप राजी । देन संज्ञा पु० एतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । विचारत हे युवराजी । —पमाकर । युयुधान-संज्ञा पुं० [सं०] (1) इंद्र। (२) क्षत्रिय । (३) युवा-वि० [ स० सुवन् ] [ स्त्री० युवती ] जिसकी अवस्था सोलह योद्धा । (४) सात्यकी का एक नाम, जो कुरक्षेत्र के युद्ध मे लेकर पैतिस वर्ष तक के अंदर हो। जवान । यौवना- में पांडवों की ओर से लड़े थे। वस्था प्राक्षा याशियन-संशा पु० [अ० युरोप+एशिया ) वह जिसके माता यवानपिड़िका-संशा खी० [सं०] मुहाँमा । पिता में से कोई एक युरोप का और दूसरा एशिया का, यू-अन्य० दे. “यों"।। विशेषत: भारतवर्ष का निवासी हो। यू-संज्ञा स्त्री० [सं०] पकी हुई दाल का पानी । नूय । यत-संज्ञा पुं० [सं०1 पूर्वी गोला के तीन महाद्वीपों में से युक-संशा पुं० [सं०] जूं नामक कीड़े जो बाल या कपड़ों में पद सय मे कोटा महाद्वीप, जो एशिया के पश्रिम में काकेशस जाते हैं। ढील । चीलर । और यूराल पर्वतों के उम्प पार से आरंभ होता है । इसके यूका-संशा स्त्री० [सं०] (1) एक प्रकार का परिमाण जो एक उत्तर में आर्फटिक, समुद्र, पश्चिम में एटलांटिक महासागर, यत्र का आठवाँ भाग और एक लिक्षा का अठगुना होता है। दक्षिण में भूमध्य सागर और कृष्ण मागर तथा पूर्व में (२) जूं नाम का कीड़ा जो सिर के बालों में होता है। काकेशस और यूराल पर्वत पड़ता है । यह महाप्रदेश वि० दे० "जूं"। (३) खटमल । (५) अजवायन । (५) प्रायः २४०० मील चौदा और ३४०० मील लंबा है। एक प्रकार से यह एशिया का अंश और बहुत बड़ा प्रायः युगंधर-मंज्ञा पुं० [सं० ] पंजाब के एक प्राचीन नगर का नाम, द्वीप ही है। फ्रांस, जर्मनी, रूम, आस्ट्रिया, पुर्तगाल, स्पेन जिसका वर्णन महाभारत में आया है । आजकल इसे इटली, यूनान आदि इसके प्रसिद्ध देश हैं। "धुरंधर" कहते हैं। युरोपियन-वि० [ 0] युरोप का । युरोप संबंधी । जैसे, यूत-संशा पुं० [सं० यूति ] मिश्रण । मिलावट । मेल । उ.- युरोपियन सभ्यता, युरोपियन साहित्य । विचि बिचि प्रीति रहसि रस रीति की राग रागिनी के धूत संज्ञा पुं० पुरोप महादेश के किसी देश का निवासी। बादे। स्वा. हरिदास । युवक-संशा [सं०] सोलह वर्ष से लेकर तीस वर्ष तक की युति-संशा स्त्री० [सं.] मिलाने की क्रिया । मिश्रण । मेल । अवस्थावाला मनुष्य । जवान । युवा। युथ-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक ही जाति या वर्ग के अनेक जीवों