पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५७४

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योगशिक्षा २८६५ योगिनी चक्र योगशिक्षा-संशा स्त्री० [सं० ] एक उपनिषद का नाम जिसे योग वह सब दुःम्ब स्वरूप है। क्योंकि प्राप्ति में संतोष नहीं होता, शिखा भी कहते हैं। इच्छा बनी रहती है। योगसत्य-संशा पुं० [सं० ] किसी का वह नाम जो उसे किसी योगात्मा-संज्ञा पुं० [सं० योगात्मन् । योगी । प्रकार के योग के कारण प्राप्त हो । जैसे,--दंड के योग से योगानुशासन-संशा पुं० [सं०] योग शास्त्र । प्राप्त होनेवाला नाम "दंडी"। योगपत्ति-संक्षा ना. [ सं . ] वह संस्कार जो प्रचलित प्रथाओं योगसार-संज्ञा पुं० [सं०] वह उपाय या साधन जिससे मनुष्य अथवा आचार-व्यवहार आदि के कारण उत्पन्न हो । सदा के लिए रोग से मुक्त हो जाय । वैद्यक में ऋतुचा योगाभ्यास-संशा पु० [सं०] योग शास्त्र के अनुसार योग के के अंतर्गत ऐसे उपायों का वर्णन है। भिन्न भिन्न ऋतुओं में आठ अंगों का अनुष्टान । योग का साधन । उ०- भिन्न भिन्न निषिद्ध पदार्थो का त्याग और संयम आदि बदरिकाश्रम रहे पुनि जाई। योग अभ्याय समाधि इसके अंतर्गत हैं। लगाई।-सूर। योगसिद्ध-संशा पुं० [सं०] वह जिसने योग की सिद्धि प्राप्त कर योगाभ्यासी-संशा पु० [सं० योगाभ्यामिन् ] योग की साधना ली हो। योगी। करनेवाला, योगी। योगमूत्र-संज्ञा पुं० [सं०] महर्षि पतंजलि के बनाए हुए योग- योगारंग-संशा पु० [सं० | नारंगी ।. संबंधी सूत्रों का संग्रह । वि० दे. “योग"। योगाराधन-संज्ञा पुं० [सं०] योग का अभ्यास करना । योग- योगांग-संज्ञा पु० [सं० ) पतंजलि के अनुसार योग के आठ अंग साधन । जो इस प्रकार है-यम, नियम, आसन, प्राणायाम यांगारुढ़-संशा पु० सं० ] यह योगी जिसने इंद्रिय-सुम्ब आदि प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । इन्हीं के पूर्ण साधन की ओर से अपना चित्त हटा लिया हो । वह जिसने चित्त- से मनुष्य योगी होता है। वृत्तियों का निरोध कर लिया हो। योगी। योगांजन-संज्ञा पुं० [सं०1 (1) आँखों का एक प्रकार का अंजन योगासन-संह पुं० [सं०] योग-साधन के आपन, अर्थात् बैठने या प्रलेप जिपके लगाने से आँखों का रोग दर होता है। के बंग। (२) वह अंजन जिसे लगाने से पृथ्वी के अंदर की छिपी यांगित-वि० [सं०] (१) जो इंद्रजाल, या मंत्र आदि की हुई वस्तुएँ भी दिग्वाई परें । सिद्धांजन । सहायता से अपने अधीन कर लिया गया हो अथवा पागल योगांत-संज्ञा पुं० [सं० ] मंगल ग्रह की कक्षा के सात भाग बना दिया गया हो। (२) जिस पर इंद्रजाल या मंत्र आदि ___ का एक अंश । (ज्योतिष) का प्रयोग किया गया हो। योग.तगय-संशा पु० [सं.] योग में विघ्न डालनेवाली आलस्य यांगिता-संज्ञा स्त्री० [सं० ] योगी का भाव या धर्म । आदि दस बात। योगिन्च-संज्ञा पुं० [सं०] योगी का भाव या धर्म । योगांता-संज्ञा स्त्री० [सं०] मूल, पूर्वापाड़ा और उत्तराषाढ़ा यांगिदंड-संभा पु० [सं०] बैत । नक्षत्रों में होती हुई बुध की गति, जो आठ दिन तक योगिनिद्रा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] थोड़ी सी नींद । अपकी। रहती है। योगिनी-संशा स्त्री० [सं०] (१) रण-पिशाचिनी (२) एक लोक योगांवर--संज्ञा पुं० [स० ] बौद्धों के एक देवता का नाम । का नाम । (३) आषाढ कृष्णा एकादशी । (४) योगयुक्ता योगा-संज्ञा स्त्री० [सं०] सीता की एक सखी का नाम । भारी । योगाभ्यामिनी । तपस्विनी । (५) आवर्ण देवता । योगाकर्षण-संशा पुं० [सं०] वह आकर्षण शक्ति जिसके कारण ये असंख्य है जिनमें से चौमठ मुख्य है। (६) आठ विशिष्ट परमाणु मिले रहते हैं और अलग नहीं होते । देवियाँ जिनके नाम इस प्रकार है-(1) शैलपुत्री, (२) योगागम-संशा पुं० [सं०] योग शास्त्र । चंद्रघंटा, १३) म्कंदमाता, (५) कालरात्रि, (५) चंडिका, योगाचार-संशा पुं० [सं०] (१) योग का आचरण । (२) बौद्धों (६) कृष्मांडी, (७) कात्यायनी, और (4) महागौरी । (७) का एक संप्रदाय, जिसका मत है कि पदार्थ ( बाह्य ) जो ज्योतिप-शाजानुसार ये आठ देवियाँ--ब्रह्माणी, माहेश्वरी, दिखाई पड़ते हैं, वे शून्य है। केवल अंदर ज्ञान में भासते कौमारी, नारायणी, वाराही, इंद्राणी, चामुंग, और महा- है, बाहर कुछ नहीं हैं। जैसे,—'घट' का ज्ञान भीतर आत्मा लक्ष्मी। (८) तिथि विशेष में दिविशेषावस्थित योगिनी । में है, तभी बाहर भासता है और लोग कहते हैं कि यह घट (९) तत्काल योगिनी । (१०) काली की एक सहचरी का है । यदि यह शान अंदर न हो, तो बाहर किसी वस्तु का नाम । (11) देवी । योगमाया । बोध न हो। अतः सय पदार्थ अंदर शान में भासते हैं । योगिनी चक्र-संञ्चा पुं० [सं०] (1) तांत्रिकों का वह चक जिससे और बाह्य शून्य है। इनका यह भी मत है कि जो कुछ है, वे योगिनियों का साधन करते हैं । (२) ज्योतिषी का वह ७१७