पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यागिया योजन चक्र जिससे वह इस बात का पता लगाता है कि योगिनी विशेष-पुराणों में नौ बहुत बड़े योगी अथवा योगेश्वर माने किस दिशा में है। गए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं-(1) कवि (शुक्राचार्य), योगिया-संज्ञा पुं० [सं० योगा+इया (प्रत्य॰) । (१) संपूर्ण जाति (२) हरि ( नारायण ऋपि), (३) अंतरिक्ष, (५) प्रबुद्ध, का एक राग जिसमें गांधार के अतिरिन. सब कोमल स्वर (५) पिप्पलायन, (६) आविहोत्र, (७) द्रुमिल (दुरमिल), लगते है। इसके गाने का समय प्रातःकाल १ दंड मे ५ दंड (4) चमस और (९) कर भाजन । तक है। यह करुण रस का राग है। कुछ लोग इसे भैरव राम (५) एक तीर्थ का नाम । की रागिनी भी मानते हैं। (२) दे. "योगी"। योगेश्वरत्व-संज्ञा पुं० [सं०] योगेश्वर का भाव या धर्म । योगिराज-संज्ञा पुं० [सं०] योगियों में श्रेष्ठ । बहुत बड़ा योगी। योगेश्वरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) दुर्गा । (२) शाक्तों की एक योगोंद्र-संज्ञा पुं० [सं० ) बहुत बड़ा योगी। देवी का नाम जो दुर्गा का एक विशेष रूप है । (३) कर्को- योगी-संभा पुं० [सं० योगिन् ] (१) वह जो भले-बुरे और सुख- दी। ककोड़ा । दुःख आदि सब को समान समक्षता हो। वह जिसमें न नो योगोपनिषद्-संज्ञा पुं० [सं० ] एक उपनिषद् का नाम । किसी के प्रति अनुराग हो और न विराग। आत्मज्ञानी। योग्य-वि० [सं०] (१) किनी काम में लगाए जाने के उपयुक्त। (२) वह व्यक्ति जिसने योग सिद्ध कर लिया हो । वह ठीक (पात्र) काबिल । लाया। अधिकारी । जैसे,—वह जिसने योगाभ्यास करके सिद्धि प्राप्त कर ली हो। इस काम के योग्य नहीं है । (२) शील, गुण, शक्ति, विद्या विशेष-योग दर्शन में अवस्था के भेद में योगी चार प्रकार आदि से युक्त । श्रेष्ठ । अच्छा । जैसे,—ये बड़े योग्य आदमी के कहे गए हैं--(१) प्रथम कल्पिक, जिन्होंने अभी योगा है। (३) युक्ति भिदानेवाला । उपाय लगानेवाला । उपायी। भ्यास का केवल आरंभ किया हो और जिनका शान अभी (४) उचित । मुनासिब । ठीक । जैसे,—यह बात उनके योग्य तक दृढ़ न हुआ हो; (२) मधु भूमिक, जो भूतों और इंद्रियों ही है । (५) जोतने लायक । (६) जोड़ने लायक । (७) पर विजय प्राप्त करना चाहते हों: (३) प्रज्ञाज्योति, जिन्होंने दर्शनीय । सुदर । (८) आदरणीय । माननीय । इंद्रियों को भली भाँति अपने वश में कर लिया हो और संज्ञा पुं० (१) पुष्य नक्षत्र । (२) ऋद्धि नामक ओषधि । (४) अतिकांतभावनीय, जिन्होंने सब मिद्धियाँ प्राप्त कर (३) स्थ । शकट । गाड़ी । (४) चंदन । ली हो और जिनका केवल धिसलय बाकी रह गया हो। योग्यता-संशा स्त्री० [सं०] (१) क्षमता । लायकी । (२) बड़ाई। (३) महादेव । शिव । (३) बुद्धिमानी । लियाकत । विद्वत्ता । (५) सामर्थ्य । (५) योगीकंड-संज्ञा पुं० [सं० योगिकुंट ] हिमालय के एक तीर्थ का अनुकूलता । मुनासिबत । मुताबिकत । (६) औकात । (७) नाम। गुण । (6) इज्जत । (९) उपयुक्तता । (१०) स्वाभाविक योगीनाथ-संज्ञा पुं० [सं० योगिनाथ ] महादेव । शंकर । चुनाब । (११) तात्पर्य-बोध के लिए वाक्य के तीन गुणों योगीश-संज्ञा पुं० [सं०1(१) योगियों के स्वामी। (२) बहुत में से एक। शब्दों के अर्थ-संबंध की संगति या संभवनीयता। बड़ा योगी। (३) याज्ञवल्क्य का एक नाम, जिन्हें योगी जैसे,-"वह पानी में जल गया" इस वाक्य में यद्यपि याज्ञवल्क्य भी कहते हैं। अर्थ-सम्बन्ध है, पर वह अर्थ संभव नहीं; इससे यह वाक्य योगीश्वर-संशा ५० [सं०] (१) योगियों में श्रेष्ठ । (२) याज्ञ योग्यता के अभाव से ठीक वाक्य न हुआ। वल्क्य मुनि का एक नाम । (३) महादेव । योग्यत्व-संज्ञा पुं० [सं०] (8) योग्य होने का भाव । योग्यता। योगीश्वरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा। (२) लायक या काबिल होने का भाव । प्रवीणता । यांगंद्र-संशा पुं० [सं० (१) बहुत बड़ा योगी। (२) वैद्यक में योग्या-संशा स्त्री० [सं०] (1) कोई काम करने का अभ्यास । एक प्रकार का रस जो रस-सिंदूर से बनाया जाता है और मश्क । (२) सुश्रुत के अनुसार शस्त्रक्रिया या चीर-फाड़ जिसमें सोना, कांती लोहा, अभ्रक, मोती और बंग आदि करने का अभ्यास । (३) जवान स्त्री। युवती। पड़ते हैं। यह प्रमेह, मूर्छा, यक्ष्मा, पक्षाघात, उन्माद यांजक-वि० [सं०] मिलानेवाला । जोड़नेवाला । और भगंदर आदि के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है। संज्ञा पुं० पृथ्वी का वह पतला भाग जो दो बड़े विभागों योगेश-संशा पुं० [सं०] (१) बहुत बड़ा योगी । (२) योगी को मिलाता हो। भू-डमरूमध्य । ___ याज्ञवल्क्य का एक नाम । योजन-संज्ञा पुं० [सं०] (8) परमात्मा । (२) योग । (३) एक योगेश्वर-संभा पुं० [सं०] (1) श्रीकृष्ण । परमेश्वर । (२) शिव। में मिलाने की क्रिया या भाव । संयोग । मिलान । मेल । (३) देवहोत्र के एक पुत्र का नाम । (४) बहुत बड़ा योग । (४) दूरी की एक नाप जो किसी के मत से दो कोस योगी। योगीश्वर । सिद्ध । की, किसी के मत से चार कोस की और किसी के मत से