पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८७० रंग कहेंगे। अर्थात् प्रत्येक वस्तु हमें उसी रंग की देख पड़ती यौ०-रंगदार । है, जिस रंग को वह न तो सोख सकती है और न वर्तित (ब) शरीर का ऊपरी वर्ण। बदन और चेहरे की रंगत । वर्ण। करती है. यल्कि जिसे वह परावर्तित करती है। कुछ रंग मुहा०—(चेहरे का ) रंग उड़ना या उतरना भय या लज्जा ऐसे भी होते हैं, जिनके मिलने से सफेद रंग बनता है। से चेहरे की रौनक का जाता रहना । चेहरा पीला पड़ना । ऐसे रंग एक दूसरे के परिपूरक कहलाते हैं। जैसे, यदि कांतिहीन होना। रंग निकलना-दे० "रंग निखरना"। रंग हरित-पात रंग के प्रकाश के साथ ही लाल रंग का प्रकाश निखरना-चेहरे के रंग का साफ़ होना। चेहरा साफ और भी पहुँचने लगे, तो उस दशा में हमें सफेद रंग दिम्बाई चमकदार होना। चेहरे पर रौनक आना । रंग फल होना पड़ेगा। इसलिए लाल और हरित-पीत दोनों एक दूसरे के दे० “रंग उड़ना"। रंग बदलनालाल पीला होना। खफा परिपूरक रंग है । प्राय: दो रंगों के मिलने से एक नया होना । क्रुद्ध होना । नाराज होना । जैसे,-आप तो नाहक तीसरा रंग भी पैदा हो जाता है; जैसे, लाल और पीले हम पर रंग बदल रहे हैं। के मिलने से नारंगी रंग बनता है। परंतु ये सब बातें (१) यौवन । जवानी । युरावस्था। केवल प्रकाश की किरणों के संबंध में हैं; बाजार में मिलने- . क्रि० प्र०—आना।-चढ़ना ।—होना । वाली बुकनियों के संबंध में नहीं हैं। दो प्रकार की बुक मुहाग चूना-युवावस्था का पूर्ण विकास होना। यौवन नियों को एक साथ मिलाने मे जो परिणाम होगा, वह दो उमड़ना । रंग टपकना-दे. "रंग चूना" । रंगों की प्रकाश-किरणों को मिलाने के परिणाम मे कभी कभी (10)शोभा । सौंदर्य । रौनक । छवि । बिलकल भित होगा। इसका कारण यह है कि जब हम दो कि०प्र०-आना-उतरना ।-चढ़ना ।—दिखाना ।- प्रकार की बुकनियों को एक में मिलाते है, उस समय हम . होना। वास्तव में एक रंग में उमरा रंग जोड़ते नहीं है, बल्कि एक मुहा०-ग पकड़ना-रौनक था बहार पर आना। रंग पर रंग में मेहमरा रंग घटाते है। जिस रंग की किरण को आना-दे० "रंग पकड़ना" । रंन फीका पड़ना या होना- एक चुकनी परावर्तित करती है, उसे दूसरी बुकनी सोख रौनक कम हो जाना। शोभा का घट जाना। रंग बरसना लेती है। इसीलिए बुकनियों के संबंध में जो नियम है. अत्यंत शोभा होना । खबरौनक होना । उ०-सखी, सचमुच वे प्रकाश की किरणों के संबंध के नियमों से भिन्न है। आज तो इस कदंब के नीचे रंग बरम्प रहा है।-हरिश्चंद्र । (७) कुछ विशिष्ट रासायनिक क्रियाओं से बनाया रंग है-शाबाश । वाह वा । क्या बात है। हुआ वह पदार्थ जिसका व्यवहार किसी चीज को रेंगने या (१)प्रभाव । असर । रंगीन बनाने के लिए होता है। वह चीज जिसके द्वारा मुहा०-रंग चढ़ना-प्रभाव पड़ना । असर पडना । जैसे, इस कोई चीज रेंगी जाय या जिससे किसी चीज पर रंग चढ़ाया लड़के पर भी अब नया रंग चढ़ रहा है। रंग जमना. जाय। प्रभाव पड़ना । असर पड़ना । विशेष-बाजारों में प्रायः अनेक प्रकार के कार्यों के लिए (१२) दूसरे के हृदय पर पदनेवाली शक्ति, गुण या महत्व अनेक रूपों में बने बनाए रंग मिलते हैं, जिनका व्यवहार का प्रभाव । धाक । रोब । चीजों को रंगने या चित्रित करने के लिए होता है। जैसे, महा०-ग जमना-धाक जमना । अनुकूल स्थिति उत्पन्न होना। कपड़े रंगने का रंग, लकड़ी पर चढ़ाने का रंग, तसवीर उ०-दोनों ने समझा कि रंग जैसा चाहिए, वैसा जम बनाने का रंग आदि। गया।-अयोध्या। रंग उखड़ना-धाक न रहना । स्थिति क्रि०प्र०—करना।-चढ़ना।-चढ़ाना-पोतना।-होना। प्रतिकूल होना । दूसरों पर महत्त्व आदि का प्रभाव न रह जाना। यौ०-रंग-बिरंगा जिसंग अनेक प्रकार के रंग हो । तरह तरह के जैसे,—पहले यहाँ उसे बहुत आमदनी थी; पर अब रंग गाँवाला। उ०-ग-बिरंग एक पक्षी वना। छोटी चोंच उखड़ गया । रंग जमाना प्रभाव डालना । धाक् बाँधना । और काटे घना । (पहेली) रंग फीका रहना पूरा पूरा प्रभाव न पड़ना । रंग बंधना- मुहाग आना या चढ़ना:-रंग अच्छी तरह लग जाना या रोब जमना। धान बँधना । रंग बाँधना=(१) अपना महत्त्व प्रकार होना। रंग उड़ना या उतरना धूप या जल आदि के संसर्ग दूसरे के हृदय में स्थापित करना । रोब गाँठना । धाक जमाना । स रंग का विगमनाना या फीका पड़ जाना। रंग खेलना-होली के उ.-भाई मुझे तो एक दिन के लिए भी कहीं तख़्त मिल दिनों में पानी में रंग घोलकर एक दूसरे पर डालना । रंग डालना । जाय, तो रंग बाँध हूँ ।-राधाकृष्णदास । (२) झूठा गा फेंकना (होली में) पानी में रंग घोलकर किसी पर डालना । आडंबर रचना । ढोंग रचना । रंग बिगदना रोब जाता रंग निम्बरनारंग का शोग्य या चटकीला होना। रहना । प्रभाव नष्ट या कम हो जाना । रंग बिगाड़ना=(१)