पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५८

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बक्कम २३५१ बखानना दोनों ओर पहिये के ऊपर लगाई जाती है। इसी के बीच यखरा-संशा पुं० [फा० बखरः ] (1) भाग। हिस्सा । बाँट । में छेद करके धुरी लगाई जाती है और दोनों छोर पहिये (२) दे० "बाखर"। के दोनों ओर की पटरी में साले या बैठाये हुए होते हैं। संज्ञा पुं॰ [ देश० ] घोदे की पीठ पर पलान आदि के नीचे पैगनी । पैंजनी। रखने के लिए फाल या सूखी घास आदि का दोहरा किया बक्कम-संशा पुं० [अ० बकम ] एक वृक्ष जो भारतवर्ष में मद्रास, हुआ वह मुट्ठा जिस पर टाट आदि लपेटा रहता है। यह मध्य प्रदेश तथा धर्मा में उत्पन्न होता है। इसका पेड़ छोटा घोड़े की पीठ पर इसलिए रखा जाता है जिसमें धाव न हो और कँटीला होता है। लकड़ी काले रंग की तथा ल और जाय । बाखर । सुड़की । टिकाऊ होती है। फटती या टेढ़ी नहीं होती। इससे मेज़ बखरी-संशा मी० [हिं० बम्बार का स्त्री. अल्प० ] एक कुटुंब के कुर्सी आदि बन सकती है और रंग और रोग़न से इसपर रहने के योग्य बना हुआ मिट्टी, ईंटों आदि का अच्छा अच्छी चमक आती है। इसकी लकड़ी, छिलके और फलों मकान । (गाँव) से लाल रंग निकलता है जिससे सूत और ऊन के कपड़े रंगे बखरैता-वि० [हिं० बखरा+प्त (प्रत्य०)] हिस्सेदार । जाते हैं और जो छीट की छपाई में भी काम आता है। साझीदार। इसके बीज बरसात में बोए जाते हैं। पतंग। यखसीस*+-संशा स्त्री० दे० “दकसीस" । उ०-प्रफुलित है के बक्कल-संज्ञा पुं० [सं० वल्कल, पा० बक्कल ] (1) छिलका । (२) आनि दीन्हे जसोदा रानी झीनिए शगुली तामें कंचन को छाल। तगा। नाचै फूल्यो अँगनाई सूर यखसीस पाई माथे को बक्का-संशा पुं० [देश॰] सफेद या खाकी रंग के एक प्रकार चढाइ लीनो लाल को बगा।-सूर । के छोटे छोटे कीटे जो धान की फसल में लगते हैं और | बखसीसना-क्रि० स० [फा० बखशिश ] देना । बराशना । उसके पसे और बालों को खाकर उसे निर्जीव कर देते हैं। उ.-यौं वे सब बेदना खेद पीया दुखदाई। जिन ये कीड़े जहाँ चाटते हैं वहाँ साकेव हो जाता है। बखसीसति सदा घमंडहि मूरखताई --श्रीधर वकाल-संशा पुं० [अ० ] वह जो आटा, दाल, चावल या और | पाठक । चीजें बेचता हो । वणिक । बनिया। | बखान-संज्ञा पुं० [सं० व्याख्यान पा० बक्बान ] (१) वर्णन । कथन । यौ०-बनिया बकाल । उ.-(क) कबिरा संस्कृत संसार में पंडित करै बखान । बक्की-वि० [हिं० बकना ] बकवाद करनेवाला । बहुत बोलने या भाषा भगति ढ़ावही न्यारा पद निर्बान ।-कवीर । (ख) बकबक करनेवाला। बपु जगत काको नाउँ लीजै हो जदु जाति गोत न जानिये। संज्ञा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार का धान जो भादों के गुणरूप कछु अनुहार नहिँ कहि का बखान बखानिये। महीने के अंत में पकता है। इसके धान की भूसी काले रंग -सूर । (३) प्रशंसा । गुणकोर्तन । स्तुति । बढ़ाई। की होती है और चावल लाल होता है। यह मोटा धान उ०—(क) तेहि रावन कहँ लघु कहसि, नर कर करसि माना जाता है। बखान। रे कपि बर्बर खर्यबल अब जाना तव ज्ञान ।- बक्कुर-सिंज्ञा पुं० [सं० वाकय ] मुंह से निकला हुआ शब्द । तुलसी । (ख) दिन दस आदर पायकै करिले आपु बखान । बोल । वचन । जौ लगि काग सराध-पख तब लगि तव सनमान ।-बिहारी। क्रि० प्र०-फूटना ।—निकलना। (ग) आवत गलानि जो बखान करो ज्यादा, यह मादा वक्खर-संज्ञा पुं० दे० 'बाखर'। मलमूत और मजा की सलीता है। --पद्माकर । संज्ञा पुं० [देश॰] कई प्रकार के पौधों की पत्तियों और बखानना-क्रि० स० [हिं० बखान+ना] (1) वर्णन करना । जड़ों आदि को कूटकर तैयार किया हुआ वह खमीर जो कहना । उ०-(क) ताते में अति अल्प वखाने । थारहि महँ दूसरे पदार्थों में खमीर उठाने के लिए सला जाता है। जानि हैं सयाने ।-तुलसी। (ख) तुम्हें वेद ब्रह्मण्य बखा- यह प्रायः खोए आदि में गला जाता है। बंगाल में इसका नत। ताते तुमरी अस्तुति ठानत।—सूर । (ग) वे चलि ह्याँ व्यवहार अधिक होता है। ते गए अनत, हम का अब अपनी बात बखान । -पनाकर । बक्स-संश्था पुं० दे० "बकस"। (च) यहि प्रकार सुक कथा बखानी । राजा सों बोले मृदु- बखता-संवा पुं० दे० "क"। बानी । (२) प्रशंसा करना । सराहना । तारीफ करना । ___ संज्ञा पुं० दे० "वस्त"। उ०-(क) नागमती पद्मावति रानी। दोऊ महा सत- बखतर-संज्ञा पुं० दे० "बकतर"। सती बखानी।-जायसी । (ख) से भरतहि भेंटत सन- बखर-संक्षा पुं० (१) दे. "बाखर"। (२) दे. "बक्सर"। माने । राज सभा रघुबीर बखाने ।—तुलसी। (३) गाली-