पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५८०

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२८७१ रंग प्रभाव नष्ट करना । महत्त्व घटाना। (२) शेव किरकिरी करना। रंग लाना-अपना प्रभाव या गुण दिखलाना । (१३) क्रीवा । कौतुक । खेल । आनंद उत्सव । उ०—(क) दिन में सब लोग राग, रंग, नृत्य, दान, भोजन, पान इत्यादि में नियुक्त थे। (ग्य) बर जंग रंग करिबे वह्यो मनहि सुढंग उमंग में। -गोपाल। यौ०-रंग-रलियाँ आमोद-प्रमोद । मौज । चैन । क्रि०प्र०--करना।-मनाना। मुहा०—गरलना--आमोद-प्रमोद करना । क्रीडा या भाग-विलास करना । उ०-भाव ही कहो मन भाव १६ राखिबो दे सुख तुमहिं सँग रंग रलि हैं। -सूर । रंग में भंग पढ़ना आमोद-प्रमोद के बीच कोई दुःख की बात आ पड़ना। हमा और आनंद ग विघ्न पड़ना। (१४) युद्ध । लड़ाई । समर । मुहा० रंग मचाना .रण में लब युद्ध करना । उ०-धदि देहि समर उत्तर परन उत्तरद्वार मचाय रंग-गोपाल। (१५) मन की उमंग वा तरंग । मन का वेग या स्वच्छंद प्रवृत्ति । मौज । उ०--(क) रत्नजटित किंकिणि पग नूपुर अपने रंग बजावहु ।-सूर । (ग्व) अपने अपने रंग में सब रंगे है, जिसने जो मिन्द्धति कर लिया है, वही उसके जी में गह रहा है।-हरिश्चंद्र । (ग) चढ़े रंग सफजंग के हिद तुरुक अमान । उड़ि उमदि दुहँ दिस लगे कौरन लोहो । वान।-लाल। मुहा०—(किसी के) रंग में ढलना=किसी के कारने या विचार के अनुसार कार्य करने लगना। किसी के प्रभाव में आन।। उ.--- तुरत मन सुख मानि लीन्हो नारि तेहि रंग ढरी।---सूर । (१६) आनंद। मजा । उ०-(क) बहुत झरिया लागे संग । दाम न खरचे लूटै रंग।-देवस्वामी । (ख) खान पान सनमान राग रंग मनहिन भावै।-गिरिधर । (ग) मोकों भ्याकुल छाँडिक आपुन करें जु रंग।—सूर । विशेष—इस अर्थ में इस शब्द का और इसके मुहावरों का प्रयोग प्रायः नशे के संबंध में भी होता है। मुहा०-ग आना-मजा मिलना । आनंद मिलना । रंग उख- बना..बने हुए आनंद का अचानक घटना या नट हो जाना। रंग जमना-आनंद का पूर्णता पर आना । खब मजा होना । रंग मचाना धूम मचाना । उ.--असवारी में रंग मचावै । मन के संग तुरंग नचावै। लाल रंग में भंग करना- पूर्ण आनंद के समय उसमें विघ्न उपस्थित करना । बना बनाया मता बिगाड़ना । रंग रचाना-उत्सव करना । जलसा करना । (२७) दशा । हालत । उ०—कबहुँ नहि' यहि भाँति देख्यो, आज को सो रंग।—सूर । मुहा०रंग लाना-दशा उपस्थित करना। हालत करना । जैसे,--- तुम्हारी ही शरारत यह सय रंग लाई है । (14) अद्भुत व्यापार । कांदा दृश्य । जैसे,--यह सब रंग उन्हीं की कृपा का फल है। (११) प्रमलता। कृपा । दया। मेहरवानी । उ.-हम चाकर कलिराज के वृथा करत ही शेष । ताकी मरजी को तक करत रंग औ शेष।- गुमान । (२०) प्रेम । अनुराग । उ.-(क) जब हम रंगी श्याम के रंगातय लिग्वि पठवा झान प्रसंगा।-रधुनाथ- दास । (ख) देम्बु जरनि जा नारि की जरत प्रेत के संग । चिता न चित फीको भयो रची जु पिय के रंग।-सूर । (ग) ऐग्ने भये तो कहा तुलसी जो पै जानकी नाथ के रंग न राते ।-तुलप्पी । (ख) गोरिन के रंग भीजिगो सायरो साँवरे के रंग भीजी सु गोरी ।—पनाकर । मुहा० रंग देना किसी को अपने प्रेम-पाश में फैमान कलि उनके प्रति प्रेम प्रकट करना । ( बानारू ) (२१) ढंग । ढब । चाल. तर्ज उ०—(क) राजभवना- मंतर तो यह उपकरण था और बाहर नभ-मंडल का और ही रंग दिग्वलाई देता था।-अयोध्यासिंह। (ख) जो तुम राजी हो इस रंग। नो मेलो फाग हमारे संग। लल्लू. लाल। (ग) व्यों पदमाकर यो मग में रंग देग्वत हो कर की रुग्व राग्ये। —माकर। (घ) हमारा प्रधान शासक न विक्रम के रंग ढंग का है, न हारूँ या अकबर के । उसका रंग ही निराला है। -बालमुकुंद। (ङ) सुनु जानकी कुरंगननी होय न कुरंग यह बड़ोई कुरंग है। हृदयराम । यौ०-रंग-ढंग-(१) दशा। हालत । (२) पाल-ढाल । तौर- तरीका । (३) व्यवहार । बरताव । जैसे,—आजकल उसके रंग-ढंग अच्छे नहीं दिखाई देते । (६) एमी बात जिसमें किया दूसग बाल का अनुमान है। । लाग। जैग,-आसमान के रंग-ढंग से तो मालूम होता है कि आज पानी बरसेगा। मुहा०-*रंग काछना-याल, लना । ढग अन्तियार करन।। उ.-सूर श्याम जितने रँग काछत युवती जन मन के गोऊ है।-सूर । (किसी को अपने) रंग में रंगना किसी को अपने ही विचारा का बना लेना । अपना मा कर लेना। (२२) भाँति । प्रकार ! तरह । उ०-दृरि भजत प्रभु पीलि दै गुन बिस्तारन काल । प्रगटत निरगुन निकट रहि चंगरंग भूपाल।-बिहारी । (२३) चौपद की गोटियों के, खेल के काम के लिए किए हुए, दो कृत्रिम विभागों में से एक । विशंप-चौपड़ की कुल गोटियाँ १६ होती है, जो चार रंगों में विभक्त होती हैं। इनमें से विशिष्ट दो रंग को आठ गोटियां "रंग" और शेष दो रंगों की आठ गोटियाँ "बद रद" कहलाती है। मुहा०-रंग जमना-चौपड़ में रंग की गाटा का किसी अच्छे और उपयुक्त घर में जा बैठना, जिसके कारण खेलाड़ी का जीत