पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५८२

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रंगमंडप २८७३ रंगालय नाव्यशाला रंगस्थल । (४) वह स्थान जहाँ कुश्ती होती | रंगरेली-संशा स्त्री० ० "रंगरली"। उ.-भैंसन देह करन हो । अखाड़ा । (५) रणभूमि । युद्धक्षेत्र । रंगरेली। सींग पवारि कु बिच केली। लक्ष्मणसिंह। रंगमंडप-संज्ञा पुं० [सं०] रंगभूमि । रंगस्थल । रँगरैनी-संशा स्त्री० [हिं० रंग+रैनी जुगनू ] एक प्रकार की रंगमध्य-संशा पुं० [सं०] रंगमंच । रंगस्थल । लाल रंग की चुनरी ।। रंगमल्ली-संज्ञा स्त्री० [सं०] वीणा । बीन । रंगलता-संशा स्त्री० [सं० ] आवर्तकी लता । मरोडफली। रंगमहल-संज्ञा पुं० [हिं० रंग+अ० महल ] भोग-विलास करने | रंगलासिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] शेफालिका । का स्थान । आमोद प्रमोद करने का भवन । उ०-बैठी रंगवल्लिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] रंगवल्ली । नागवल्ली । रंगमहल में राजति । प्यारी फेरि अभूषण साजति ।-सूर। गैंगवा-संशा पुं० [देश॰] चौपायों का एक रोग। रंगमाता-संशा स्त्री० [सं० रंगमात ] (१) कुटनी। (२) लाख । रॅगवाई-संज्ञा स्त्री० दे० "गाई"। लाक्षा। रॅगवाना-क्रि० स० [हिं० रंगना का प्रेर० रूप ] रंगने का काम रंगमातृका-संज्ञा स्त्री० [सं० ] लाक्षा । लाख । दूसरे से कराना । दूसरे को रंगने में प्रवृत्त करना । रंगमार-संशा पुं० [हिं० रंग+मारना ] ताश का एक खेल जो दो, रंगविद्याधर-संशा पुं० [सं०] (1) ताल के साठ मुख्य भेदों में तीन अथवा चार आदमियों में खेला जाता है। इसमें एक से एक भेद। इसमें दो खाली और दो प्लुत मात्राएँ होती एक करके सब खेलनेवालों को बराबर बराबर पत्ते बाट है। (२) वह जो अभिनय करता हो । नट। (३) वह जो दिए जाते हैं और तय खेल होता है। इसमें जिस रंग नाचने में कुशाल हो। का जो पत्ता ला जाता है, उसी रंग के उससे बड़े रंगधीज-संशा पुं० [सं०] चाँदी। पसे से वह जीता जाता है। यह ताश का सब से सीधा | रंगशाला-संशा स्त्री० [सं० ] नाटक खेलने का स्थान । नाव्य- शालारंगस्थल । गंगरली-संज्ञा स्त्री० [हिं० रंग। रलना } आमोद-प्रमोद । आनंद।। रंगसाज़-संशा पुं० [फा०] (1) मेज, कुरसी, किवाद, दीवार कीरा। चैन । मौज। उ०—कुढंग कोप तजि रंगरली इत्यादि पर रंग चढ़ानेवाला । वह जो चीज़ों पर रंग करति जुवति जग जोइ । पावस बात न गूद यह बूहनि हुन चढ़ाता हो। (२) उपकरणों से रंग तैयार करनेवाला । रंग रंग होइ।-बिहारी। बनानेवाला । मुहा०—रंगरलियां मचाना या करना आनंद मंगल और आमोद रंगसाज़ी-संज्ञा स्त्री० [फा०] रंगसाज का काम । ३गने का काम । प्रमोद करना। उ०—(क) तुम्हारे यही दिन हंसने बोलने रंगागा-संशा स्त्री० [सं० ] फिटकरी । और रंगरलियाँ करने के हैं। अयोध्या । (ख) तमाम | रँगाई-संशा स्त्री० [हिं० रंग+आई (प्रत्य॰)] (1) रंगने का शहर में हर सू मची है रंग रलियाँ। गुलाल अबीर से काम । रँगने की क्रिया । (२) रँगने का भाव । जैसे,- गुलज़ार हैं सभी गलियाँ ।-नज़ीर । इसकी रँगाई बहुत अपछी हुई है। (३) ₹गने की मजदी। रंगरस-संशा पुं० [हिं० रंग+रस ] आमोद प्रमोद । आनंद रंगांगण-संज्ञा पुं० [सं०] रंगस्थल । नाब्यशाला। मंगल । उ०-सुघराई के गरब भरी जानति सब रंग रस। | रंगाजीव-संज्ञा पुं० [सं० रंगाजीविन् ] वह जिसकी जीविका रंगाई -व्यास से चलती हो। रंगसाज या रंगरेज । रंगरसिया-संज्ञा पुं० [हिं० रंग+रसिया भोग-विलास करनेवाला | रँगाना-क्रि० स० [हिं० रेंगना का प्रेर० रूप ] रंगने का काम व्यक्ति । विलासी पुरुष । दूसरे से कराना । दूसरे को रंगने में प्रवृत्त करना । रंगराज-संज्ञा पुं० [सं०] संगीत दामोदर के अनुसार ताल के | रंगाभरण-संज्ञा पुं० [सं०] ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक साठ मुख्य भेदों में से एक भेद । भेद। गैंगरूट-संज्ञा पुं० [अ० रिक्रूट ] (1) सेना या पुलिस आदि में रंगार-संज्ञा पुं॰ [देश॰] (1) वैश्यों की एक जाति का नाम । नया भर्ती होनेवाला सिपाही। (२) किसी काम में पहले (२) राजपूतों की एक जाति। इस जाति के लोग मेवाब पहल हाथ डालनेवाला आदमी। वह आदमी जो कोई और मालवे में रहते हैं। (३) मध्य तथा दक्षिण भारत में काम सीखने लगा हो। जिसने कोई नया काम करना शुरू रहनेवाली एक जाति । इस जाति के लोग अपने आपको किया हो। वह जिसे कार्य का अनुभव न हो। जैसे,—वह | ब्राह्मणों के अंतर्गत बतलाते और खेती-बारी करते है। अभी व्याक्यान देना क्या जाने, बिलकुल रंगरूट है। रंगारि-संज्ञा पुं० [सं०] करवीर । कनेर । रँगरेज़-संचा पुं० [फा [ सी. रंगरेजिन ] कपड़े रंगनेवाला। रंगालय-संज्ञा पुं० [सं०] वह स्थान जहाँ पर नाटक, कुश्ती या वह जो कपड़े रंगने का काम करता हो। इसी प्रकार का और कोई खेल तमाशा हो।रंगभूमि ।