पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रँगापट रंजना रँगावट-संशा स्त्री० [हिं० रंग+आवट (प्रत्य॰)] रँगने का भाव । केशव । (ङ) संग लिए विधु बैनी बधू रति हूँ जेहि रंगाई। रचक रूप दिया है।-तुलसीदास । रंगावतारक-संशा पुं० [सं०] (1) रंगरेज़। (२) अभिनय रंज-संज्ञा पुं० [फा०] [वि. रंजीदा ] (1) दु:ख । खेद । (२) करनेवाला । नट। शोक। रंगावतारी-संज्ञा पुं० [सं० रंगावतारिन् ] अभिनय करनेवाला । | क्रि०प्र०-उठाना ।—करना ।-मेलना।—देना ।-पहुँ. नट। चना ।-पहुँचाना ।-सहना। रगिया-संज्ञा पुं० [हिं० रंग+इया (प्रत्य०)] (१) कपडे रैंगने-रंजक-संज्ञा पुं० [सं०] (9) रंगसाज । (२) रंगरेज । (३) वाला । रंगरेज़ । (२) रंगसाज़। हिंगुल । ईगुर । () सुश्रुत के अनुसार पेट की एक अनि रंगी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) शतमूली। (२) कैवर्सिका नाम की जो वित्त के अंतर्गत मानी जाती है। कहते हैं कि यह यकृत लता । विशेष । दे. "कैवर्तिका"। और प्लीहा के बीच में रहती है; और भोजन से जो रस वि० [हिं० रंग+ई (प्रत्य०) ] आनंदी। मौजी । उत्पन्न होता है, उसे रंजित करती है। (५) भिलावा। विनोदशील। (६) मेंहदी। रंगीन-वि० [फा०] (1) जिस पर कोई रंग चढ़ा हो। रंगा वि० [सं०] (१) रंगनेवाला । जो रंगे । (२) आनंदकारक । हुआ। रंगदार। (२) विलास-प्रिय । आमोद-प्रिय । प्रसन्न करनेवाला । जैसे, मनोरंजक। जैसे, रंगीन तबीयत, रंगीन आदमी। (३) जिसमें कुछ संज्ञा स्त्री० [हिं० रंच अल्प (१) वह थोड़ी सी बारूद अनोखापन हो। चमत्कारपूर्ण । मज़ेदार । जैसे, रंगीन जो बत्ती लगाने के वास्ते बंदूक की प्याली पर रखी जाती इबारत, रंगीन पातचीत। है। उ०—कैयक हजार एक बार बैरी मारि डारे रंजक रंगीनी-संशा स्त्री० [फा०] (1) रंगीन होने का भाव । (२) दगनि मानो अगिनि रिसाने की।-भूषण । सजावट । बनाव सिंगार । (३) बांकापन । (४) रसिकता।। क्रि०प्र०-देना-भरना। रंगीलापन। मुहा०—जक उडाना=(१) बंदूक या तोप की प्याली में बत्ती रंगीरेटा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक जंगली वृक्ष जो दारजिलिंग में लगाने के लिए बारूद रखकर जलाना । (२) पादना । (बाजारू) अधिकता से होता है। इसकी लकबी बहुत मजबूत होती रंजक चार जाना तोप या बंदूक की प्याली में रखी हुई वारूद है और इमारत बनाने के काम में आती है। इससे मेज, का योही जलकर रह जाना और उससे गोला या गोलो न छूटना । कुरसी आदि भी बनाई जाती है। रंजक पिलाना-तोप या बंदूक की प्याली में रंजक रखना। रंगीला-वि० [हिं० रंग+ईला (प्रत्य॰)] [स्त्री. रंगीली ] (७) (२) गाँजे, तमाखू या सुलफे का दम । (बाज़ारू) आनंदी। मौजी । रसिया । रसिक । उ०-श्याम रंग रंगे | मुहा०—जक देना=गाँजे आदि का दम लगाना। रँगीले नैन ।-सूर । (२) सुदर । खूबसूरत । जैसे, (३) वह बात जो किसी को भड़काने या उत्तेजित करने के रंगीला जवान । उ०—कहे पदमाकर एते पैयो रंगीली लिए कही जाय । (५) कोई तीखा या घटपटा चूर्ण । रूप देखे दिन देखे कहो कैसे धीर धारिये।-पनाकर। रंजन-संशा गुं० [सं०] (1) रंगने की क्रिया। (२) चिप्स को (३) प्रेमी । अनुरागी। प्रसन्न करने की क्रिया । (३) पित्त । सफरा । (४) रक रँगीली टोड़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० रेंगीला+टोकी (रागिनी) ] संपूर्ण चंदन । लाल चंदन । (५) छप्पय छंद के पचासर्वे भेद का जाति की एक रागिनी जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं। नाम । (६) वे पदार्थ जिनसे रंग बनते हैं। जैसे,—हल्दी, यह टोड़ी रागिनी का एक भेद है। नील, लाल चंदन, कुसुम, मजीठ इत्यादि। (७) मूंज। रँगैया-संज्ञा पुं० [हिं० रंग+ऐया (प्रत्य॰)] रंगनेवाला । (८) सोना । (९) जायफल । (20) कमीला वृक्ष । रंगोपजीधी-संज्ञा पुं० [सं० रंगोपजीविन् ] वह जो रंगशाला में रंजनक-संज्ञा पुं० [सं०] कटहल । अभिनय करके अपनी जीविका का निर्वाह करता हो । नटरंजनकेशी-संज्ञा स्त्री० [सं०] नीली वृक्ष । रंच, रंचक*-वि० [सं० न्यंच, प्र० णच ] थोड़ा। अल्प। रंजना*-क्रि० स० [सं० रंजन ] (१) प्रसन्न करना । आनंदित तनिक।उ.-(क)बंचन मेरो कियोसजनीयहरंचन न प्यारे करना । (२) भजना । स्मरण करना। उ.-आदि निर• दया मन कीन्ही।-सुदर । (ख) प्रदुमन लरे ससदस दो जन नाम ताहि रजै सब कोऊ।-सुर । (३) रंगना । दिन रच हार नहि माने ।—सूर (ग) रच न साथ सुधै उ.-यों सब के तन बानन में भलफी अरुणोदय की अरू- सुख की बिन राधिकै आधिक लाच न अटे। केशव । (ब) नाई । अंतरते जनु र जन को रजपूतन की रज ऊपर भाई। हिय अंचकरीति रची जबरंचक लाइ लई उर नाह तहीं।-- | --केशव।