पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५८७

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रक्त आमातिसार २८७८ रक्तगुल्म म शास्त्र के अनुसार यह शरीर की सात मुख्य धातुओं में से | में कडुआ, तीक्ष्ण विशोधन और व्रण, कंडु, कुष्ट तथा विष एक है और यह स्निग्ध, गुरु, बलनशील और मधुर रस का नाशक माना गया है। कहा गया है। रक्तकांचन-संज्ञा पुं० [सं०] कचनार का वृक्ष । कचनाल । पाक-रूधिर । लोहित । अत्र । क्षतज । शोणित | रोहित।। पा०-विदल । मरिक । कांचनाल । ताम्रपुष्प । कुदार । रंगक । कीलाल । अंगज । स्वज । शोण । लोह। चर्मज । रक्तकांता-संशा स्त्री० [सं० ] लाल पुनर्नवा । लाल गदहपूरना । मुहा०--के लिए दे० "खून" के मुहा०।। रक्तका-संशा स्त्री० [सं० ] पानी आँवला। (२) कुंकुम । केसर । (३) तौया । (४) पुराना और पका रक्तकाश-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का रोग जिसमें फेफड़े से हुआ आँवला । (५) कमल । (६) सिंदूर । (७) हिंगुल । मुँह के रास्ते खून निकलता है । यह रोग प्राय: बहुत ज़ोर शिंगरफ। इंगुर । (6) पतंग की लकड़ी। (९) लाल चंदन । से गाने, अधिक बंसी बजाने या खाँसी आदि रहने की दशा कुचंदन । (१०) लाल रंग। (११) कुसुभ । (१२) नदी में तथा ऊँचे पर्वतों पर चढ़ने आदि से हो जाता है। तट पर होनेवाला एक प्रकार का बेत । हिज्जल । (१३)| रक्तकाष्ठ-संज्ञा पुं० [सं० ] पतंग की लकड़ी। बंधूक । गुलदुपहरिया। (१४) एक प्रकार की मछली।। रक्तकुमुद-संशा पुं० [सं०] .ई। नीलोफर । (१५) एक प्रकार का जहरीला मेंढक । (१६) एक प्रकार रक्तकुरु उक-संशा पुं० [सं०] लाल कटसरैया । का बिच्छू । रक्तकुष्ठ-संज्ञा पुं० [सं०] विसर्प नामक रोग, जिसमें सारे शरीर वि० [सं०] (1) चाह या प्रेम में लीन अनुरक्त। (२) में बहुत जलन होती है, कभी कभी सारा शरीर लाल रंग रंगा हुआ। (३) लाल । सुर्ख । (४) विहार-मन्न । ऐयाश। का हो जाता है और कुष्ट की भाँति गलने भी लगता है। (५) साफ किया हुआ । शोधित । शुद्ध । रक्तकुसुम-संहा पुं० [सं०] (1) कचनार । (२) आक । मवार । रक्त आमातिसार-संज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार का रोग जिसमें | (३) धामिन का पेड़ । (४) पारिभद्र या फरहद का पेड। लहू के दस्त आते हैं। रक्तकुसुमा-संज्ञा स्त्री० [सं०] अनार का पेड़। रक्तकंगु-संशा पुं० [सं० ] साल का वृक्ष जिससे राल निकलती है। रक्तकमिजा-संशा स्त्री० [सं०] लाख । लाह। रक्तकंटा-संचर स्त्री० [सं०] विकत वृक्ष । रक्तकेशर-संज्ञा पुं० [सं०] पारिभद्रक वृक्ष । फरहद का पेड़। रक्तकंठ-संज्ञा पुं० [सं०] (1) कोयल (२) भाँटा । भंटा। रक्तकेशी-वि० [सं० रक्तकोशन ] जिसके बाल लाल रंग के बैंगन । उ.--रक्तकंठ तांबूल निवारे। पदाभ्यांग बसवाहन हों। तामदे रंग के बालोंबाला । द्वारे।-विश्राम। रक्तकैरघ-संज्ञा पुं० [सं०] लाल कुमुद । वि. जिसका कंठ लाल रंग का हो। रक्तकोकनद-संज्ञा पुं॰ [सं० ] लाल कमल । रक्तकंद-संज्ञा पुं० [सं० ] (१) विद्रुम । मूंगा। (२) प्याज । रक्तक्षय-संज्ञा पुं० [सं०] लहू बहना । रक्त-साव । (३) रतालू। रक्तक्षयशोषि-संज्ञा स्त्री० [सं०] वह यक्ष्मा रोग जो किसी रक्तकंदल-संज्ञा पुं० [सं०] मूंगा । विद्रुम । कारणवश शरीर का रक्त कम हो जाने से उत्पन्न हो। रक्तकंबल-संज्ञा पुं० [सं०] नीलोफ़र । कूड़। रक्तखदिर-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का खैर का वृक्ष जिसके रक्तक-संशा पुं० [सं०] (१) गुलदुपहरिया का पौधा या फूल फूल लाल रंग के होते हैं। रक्तसार । बंधूक । (२) लाल सहिंजन का वृक्ष । (३) लाल अंडी रक्तखांडव, रक्तखादव-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का खजूर का वृक्ष । लाल रें। (४) लाल कपड़ा। (५) लाल रंग का वृक्ष । का धोका । (६) केसर । कुंकुम । । रक्तगंधक-संज्ञा पुं० [सं०] बोल नामक गंधद्रव्य । वि० (१) लाल रंग का । (२) प्रेम करनेवाला । अनुरागी। रक्तगंधा-संज्ञा स्त्री० [सं०] अश्वगंधा । असगंध । (३) विनोदी । मसखरा। रक्तगत ज्वर-संज्ञा पुं॰ [सं०] वह उवर जो रोगी के रक्त में समा रक्तकदंब-संज्ञा पुं० [सं० } एक प्रकार का कदंब का वृक्ष जिसके गया हो। इसमें रोगी खून थूकता है, अंडर बकता है, फूल बहुत लाल रंग के होते हैं। छटपटाता है और उसे बहुत अधिक दाह तथा तृष्णा रक्तकदलो-संशा सी० [सं०] चंपा-केला । रक्तकमल-संज्ञा पुं० [सं०] लाल रंग का कमल । वचक में यह रक्तगर्भा-संज्ञा स्त्री० [सं०] मेंहदी का पेद। कटु, तिक्त, मधुर, शीतल, रक्तदोष नाशक, बलकारक और रक्तगुल्म-संज्ञा पुं० [सं०] स्त्रियों का एक रोग जिसमें उनके पित्त, कफ तथा वात को शमन करनेवाला माना गया है। गर्भाशय में रक की एक गांठ बंध जाती है। यह रोग प्रत रक्तकरवीर-संशा पुं० [सं०] लाल रंग का कनेर । यह वैधक काल में भनुचित आहार-विहार करने अथवा समय से पहले