पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५९

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बखार २३५२ बगछुट A गलौज देना । बुरा भला कहना। जैसे,-यात छिपते ही सीस भुज बीसम बखेरी मागे कहो जाय धेरों गद बिनती उसने उसके मात पुरग्बा बखान कर रख दिये। पतीजिये। हनुमबाटक । (ग) तमाशा है मजा है सैर है बस्वार-संज्ञा पुं० [सं० प्राकार ] [स्त्री अस्प० वखारी | दीवार क्या क्या अहा ! हा!! हा!!! मसब्धिर ने अजब कुछ या टट्टी आदि मे घेर कर बनाया हुभा गोल और विस्तृत रंग कुदरत का बखेरा है।-नज़ीर । घेरा जिसमें गाँवों में अन्न रखा जाता है। यह कोठिले के बखेरी-संज्ञा स्त्री० [देश॰] छोटे कद का एक प्रकार का कँटीला आफार का होता है। पर इसके ऊपर पाद नहीं होता और । वृक्ष जिसके फल रंगने और चमड़ा सिझाने के काम में यह बिलकुल खुले मुँह का होता है। । आते हैं। यह पूर्वीय बंगाल, आसाम और बर्मा आदि में बखारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बग्वार ] छोटा थरवार । होता है। इसे कुती भी कहते हैं। बखिया संज्ञा पुं० । फा. एक प्रकार की महान और मजबूत | बखोरना:-क्रि० स० [हिं० बक्कुर ] टोकना । छेदना !-3. सिलाई। इसमें सूई को पहले कपड़े में से टाँका लगाकर साँफरी खोरि बखोरि हम किन खोरि लगाय खिसैबो करो आगे निकालते हैं। फिर पीछे लौटाकर आगे की ओर कोई।-देव । टोफ मारते है जिसमे सूई पहले स्थान से कुछ आगे बढ़ | बस्त-संज्ञा पुं० [फा० ] भाग्य । किसमत । तकदीर । कर निकलती है। इसी प्रकार बार बार पीते हैं। बखिया यौल-बदबख्त । कंबख्त । दो प्रकार का होता है-(1) उम्नादाना या गाँठी जिसमें : बस्तर-संशा पुं० [फा० बक्तर ] लोहे के जाल का बना हुआ ऊपर की लौट मिलाई के टाँके एक दूसरे से मिले हुए ! कवच । समाह। बफतर। उ०-चारि मास धन बरसिया, दानेदार होते है और (२) दौड़ या यया जिसमें दो चार । अति अपूर्व शर नीर। पहिरे जब्तर बख्तर दुर्भ न एको दानेदार उस्तादी बखिया के अनंतर कुछ थोडा अवकाश तीर-कबीर। रहता है। बख्शना-क्रि० स० [फा० बख्श ] (1) देना। प्रदान करना। महा-खिया उधेड़ना-भेद खोलन। । कलई खोलना। भंडा (२) स्यागना । छोदना । जाने देना। क्षमा करना । माफ़ फोड़ना। करना । उ.-कामी कबहु न हरि भजै मिटै न संशय मूल । बखियाना-क्रि० स० [हिं० बरिखया | किसी चीज़ पर बखिया की और गुनह सब बस्खशिहै कामी बाल न भूल ।---कबीर । सिलाई करना । बखिया करना। बाघाना, बशाना-क्रि० स० [हिं० बरूशना का प्रेर० पाने बखीर-संज्ञा स्त्री० [हिं० खीर का अनु० ] वह खीर जिसमें दूध का प्रेरणार्थक रूप । किसी को बसाने में प्रवृत्त करना । के स्थान में गुरु, 'चीनी या ईख का रस डाला गया हो। बशिश-संशा स्त्री० [फा०] (१) उदारता । दानशीलता। मीठे रस में उबाला हुआ चावल । (२) दान । (३) क्षमा । बखील-वि० [अ० ] कृपण । सूम । कंजूस । बख्शीश-संज्ञा पुं० दे० "बखिशश"। बखूबी-क्रि० वि० [फा० ] (१) अच्छे प्रकार से । भली भाँति । बग-संशा पुं० [सं० बक ] बगुला । उ.-(क) उज्वल देखि न अच्छी तरह से । जैसे, कागज़ भेजने के पहले आप उसे धीजिये, बग ज्यों माँड़े ध्यान । धौरे बैठि चपेटसी, यों बस्वती देख लिया करें। (२) पूर्णरूप से। पूर्णतया। पूरी . लै दुई ज्ञान । कबीर । (ख) बग उलूक अगरत गये सरह से । जैसे,-~~यह दावात अखबी भरी हुई है। अषध जहाँ रघुराउ । नीक सगुन निवरहि सगर होइहि धरम बखेड़ा-संशा पुं० [हिं० बखेरना । (१) उलझाव । संझट । निआउ ।-तुलसी। उलझन । जैसे,—इस काम में बहुत बखेवा होगा। (२) : बगई:-संज्ञा स्त्री० [देश॰] (9) एक प्रकार की मक्खी को कुत्तों भगवा । या । विवाद । जैसे,—अब उन लोगों में भारी पर बहुत बैठती है। कुकुरमाछी। (२) एक प्रकार की बखेडा खदा होगा। (३) कठिनता । मुश्किल । (४) व्यर्थ चास जिसकी पत्तियाँ बहुत पतली और लंबी होती हैं। विस्तार । आउंबर । भारी आयोजन । यह सूखने पर सारियों की पुलियाँ आदि बाँधने के काम क्रि० प्र०---करना।-फैलाना।-मचाना।-होना। . भाती है। कहीं कहीं लोग इसे भांग के साथ पीस कर बखेडिया-वि० [हिं० बखेड़ा+इया (प्रत्य॰)] बखेड़ा करने पीते भी है, जिससे उसका नशा बहुत बढ़ जाता है। वाला । जो बखेवा या झगडा खड़ा करे । मगबालू । बगछुट, बगटुट-क्रि० वि० [हिं० बाग+धुटना वा टूटना ] सरपट । बखेरना-क्रि० स० [सं० विकिरण चीज़ों को इधर उधर या दूर दूर बेतहाशा । बड़े बेग से । जैसे, बगर भागना वा भगाना। रखना । फैलाना । छितराना । जैसे, खेत में बीज बखेरना। उ.---वहाँ जो मेरे सामने एक हिरनो कनौतियाँ उठाये उ०—(क) काटि दससीस भुज बीस सीस धरि राम यश : गई थी, उसके पीछे मैंने मोबा बगट फेंका था। सा सो दिसि सौगुनों बस्वेरि हैं।-हनुमन्नाटक । (ख) कहो दस बल्लाह स्वाँ।