पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/६३

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गुलपतोख २३५६ वय मंधन को भय मानि। मनों बगीचा बीच गृह बस्यो शीरनिधि बधनहीं ] (1) एक प्रकार का हथियार जिसमें बाघ के महें आनि ।-गुमान । (ख) शिरोमणि बागन बगीचन बनन के समान चिपटे टेटे काटे निकले रहते हैं। यह उँगलियों में बीच हुते रविवारे सहाँ पंछी की मगति है।-मुमान । पहना जाता है और इससे हाथापाई होने पर शत्रु को नोच्च अगुलपाखा-संज्ञा पुं० [हिं० वगला+पताख ] एक प्रकार की लेते है। शेरपंजा । (२) एक आभूषण जिसमें बाघ के पानी की चिरिया। यह मुरगानी से छोटी होती है। नाखन चाँदी वा सोने में मढ़े होते हैं। यह गले में तागे इसका रंग सफेद होता है और इसके पैर और पांच काली में गुज कर पहना जाता है। उ.-ठुला कंठ बधनहाँ होती है। नीके । नयन सरोज अयन सरसी के।--तुलसी । बगुला-संज्ञा पुं० दे. "बगला"। बधनहियाँ*-संशा स्त्री० [हिं० बाध+नह ] दे. "धनहीं श्गूला-संशा पु० [हिं० वाउगोला ) वह वायु जो गरमी के दिनों (२)"। उ.-बड़े बड़े मोतिन की गला बड़े बड़े नन नान्ही में कभी कमी एक ही स्थान पर मैंवर सी घूमती हुई दिखाई नान्ही भृकुटी कुटिल धमाहियाँ।-केशव। देती है और जिससे गई का एक खंभा सा बन जाता है। बघना*-संज्ञा पुं.दे."बघनहीं (२)"। उ0--आजु गई हौं यह वायुस्तंभ आगे को बढ़सा जाता है। इसका म्याय नंद भवन में कहा कहीं गृह चैनुरी। .."सीप जैमाल और उंचाई कभी कम और कभी अधिक होती है। इसे श्याम उर सोहै विच बघना छत्रि पार्वरी। मानो द्विज गवार लोग भवानी का रथ कहते हैं। कभी कभी बड़े शशि नग्धत महित है उपमा कहत न आवै री।—सूर । प्यास्थाले बगूले में पड़कर बड़े बड़े पेड़ और मकान तक बघरा-संज्ञा पुं० [हिं० वायु+गहरा ] बगूला । चक्रवात । उखड़कर उपजाते हैं। यह बगुला जब समुद्र या नदियों यघंटर उ०—चित्र की सी पुत्रिका की रूरे बघरूरे माह में होता है तो उसे 'सर्व' कहते है और इससे पानी नल शेयर छोडाय लई कामिनी की काम की। केशव। की भांति ऊपर खिंच जाता है। बहर । वातचक्र । बधार-संज्ञा पुं० [हिं० बघारना] () यह मसाला जो बधारने बगेड़ी-संज्ञा स्त्री. दे. "बगेरी"।उ.---धरी परेवापांडुक होंगे। समय घी में डाला जाय । तबका । छौंक 1 केहा कदरौ अउर अंगरी-जायसी। क्रि०प्र०-देना। बगे-संज्ञा स्त्री० [ देश ] मारे भारत में पाई जानेवाली खाकी (२) बघराने की महक । रंग की एक छोटी चिड़िया जो डील ौल में गौरैया के क्रि० प्र०--आना।-उठना । 'समान होती और मैदानों में जलाशयों के पास पाई जाती बधारना-क्रि० स० [सं० अवधारण-वधारण (१) कलछी या है। यह ज़मीन के साथ इस तरह चिमट जाती है कि चम्मच में घी को आग पर तपाकर और उसमें हींग, जीरा सहज में दिखाई नहीं देती। यह मुंडों में रहती है। इसे भादि सुगंधित मसाले छोड़कर उसे दाल आदि की संस्कृत में भरद्वाज कहते है। बगौधा । बघेरी । भरुही। बटलाई में मुंह ढककर छोड़ना जिसमें वह दाल आदि भी बगैचा-मंझा पुं० दे."बगीचा"। सुगंधित हो जाय । छौंकना । दागना । तड़का देना । (२) बगैर-अध्य० [ 10 ] बिना। अपनी योग्यता से अधिक, बिना मौके या आवश्यकता से बगौधा-संशा पं० [देश॰] [ स्त्री० अगाधी ] धगेरी नाम की अधिक चर्चा करना । जैसे, वेदांत बधारना, अंगरेज़ी बधारना। चिदिया। मुहा०-चोली चारना बहुत बढ़ गढ़ कर बातें करना । शेरवा अम्गी, सम्धी-संज्ञा स्त्री० [अ० बोगी ] चार पहिये की पाटनदार हॉकना। गादी जिसे एक वा दो मोरे खींचते हैं। बघेरा-संज्ञा पुं० [हिं० बाघ ] लकड़बग्धा। बघंबर-संशा पुं० [सं० व्याघ्रांबर ] (1) बाघ की खाल जिसपर बघेलखंड-सज्ञा पुं० [हिं० बघेल (जाति)+वंड ] मध्य भारत में एक साधू लोग बैठ कर ध्यान लगाते हैं। 30---(क) बरुनी प्रदेश जिसमें किसी समय बघेल राजपूतों का राज्य था। बचंबर में गुदरी पलक दोऊ कोए बसन भगाई वेष यह प्रदेश मध्य भारत की एजेंसी के अंतर्गत है और इसमें रवियाँ।-देव । (ख) सार की सारी सो भारी लगै धरिवे रीवाँ, नागोर, मैहर इत्यादि राज्य अंतर्भूत हैं। कह सीस पचंबर पैया । हाँसी मो दासी सिखाइ लई हैं वेई बघेली-संज्ञा स्त्री० [हिं० बाध+ऐला (प्रत्य॰)] बरतन खरादनेवालों जो वेई रसखा मि कन्हैया । जोग गयो कुबजा की कलानि का यह वटा जिसका ऊपरी सिरा आगे की ओर कुछ बढ़ा मैं रीकन ऐहै असोमति मैया हाहान उधो कुदायो हमें होता है। इस सिरे को घाई या माक कहते हैं और इसी अब ही कहि दे प्रज बाज बधैया । रसखानि । (२) पर रख कर बरतन खरादा या कुना जाता है। बाध की खाल की तरह बना हुमा कंबल । बधैरा-संशा पुं.दे."वगेरी"। बधनहाँ-संज्ञा पुं० [हिं० राध+न नाम्वून ) [ स्ली. अल्प ० . बच*-सबा पुं० [सं० बचः] वचन । बाक्याबास । उ.-(क) एवं