पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/६५

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बचाना २३५८ छनाग बचाना-क्रि० स० [हिं० बचना ] (1) आपत्ति या कष्ट आदि में ! बधाकश-वि० [फा०] बहुत बच्चे जननेवाली (स्त्री०)। न पड़ने देना। रक्षा करना। उ०-(क) विनु गुरु अक्षर (विनोद) कौन छुबा । अक्षर जाल ते कौन बचावै। कबीर । (ख) बन्यादान-संज्ञा पुं० [फा०] गर्भाशय । कोख । लाठी में गुण बहुत हैं सदा राखिये संग। गहिरी नदि बधी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बच्चा+ई (प्रत्य॰) ] (१) वह छोटी नारा जहाँ तहाँ बचावं अंग-गिरधर । (ग) बहूँ ओर घोडिया जो छत वा छाजन में बड़ी घोहिया के नीचे लगाई अवनीस पने घेरे छबि छावै । महाराज को शत्र घात सों . जाती है। (२) वह बाल जो होंठ के नीचे बीच में जमता सजग बचावै ।-गोपाल । (२) प्रभावित न होने देना।। है। (३) दे. "पश्चा"। अलग रखना । (३) व्यय न होने देना । स्वर्च न होने देना। बच्छ-संज्ञा पुं० [सं० वत्स, प्रा० बच्छ ] (१) बच्चा। बेटा । उ०- खर्च करके कुछ रख छोड़ना । (४) छिपाना । चुराना। बहुरि बन्छ कहि लाल कहि रघुपति रघुबर तात । कबाहिं जैसे, आँख बचाना। उ.-पीठि दै लुगाइन की डीहि बोलाइ लगाइ हिय हरषि निरखिहउँ गात ।--तुलसी। बचाय, ठकुराइन सुमाइन के पायन परति है।-प्रताप । (२) गाय का बच्चा। बछड़ा । उ०—(क) राम जननि (५) किसी बुरी बात से अलग रखना। तूर रखना । जैसे, जब आइहि धाई । सुमिरि बरछ जिमि धेनु लवाई।- बच्चों को सिगरेट तमाकू आदि से बचाना चाहिए । (६) तुलसी । (ख) बग्छ पुच्छ लै दियो हाथ पर मंगल गीत ऐसे रोग से मुक्त करना जिसमें मरने की आशंका हो।। गवायो । जसुमति रानी कोख सिरानी मोहन गोद (७) पीछे करना । हटाना । खेलायो ।—सूर । बचाव-संज्ञा पुं० [हिं० बचाना ] बचने का भाव । रक्षा प्राण । : बच्छनाग-संज्ञा पुं० दे० "बरनाग"। उ.-कहा कहति तू भई बावरी । ऐसो कैपे होय सखी री वच्छल*-वि० [सं० वत्सल, प्रा. वच्छल ] माता पिता के घर पुनि मेरो है बचावरी । सूर कहति राधा सखि आगे समान प्यार करनेवाला । वत्सल । उ०—सुनि प्रभुवचन चकित भई सुनि कथा रावरी।-सूर । हरखि हनुमाना। सरनागत बच्छल भगवाना ।-तुलसी। बचिया-संज्ञा स्त्री० [हि बच्चा-छोटा ] कसीदे के काम में छोटी बच्छस-*संज्ञा पुं० [सं० वक्षस ] छाती। वक्षस्थल । उ०---- छोटी बूटियाँ। जानत सुभाव मा प्रभाव भुजदंडन को, खंडन को छत्रिन बथुआ-संमा पुं० [देश० ] एक प्रकार की मछली जो सिंध, के बच्छस कपाट को। तुलसी । उड़ीसा, बंगाल और आसाम की नदियों में होती है। बच्छा-संज्ञा पुं० [सं० वत्स, प्रा० वच्छ ] [स्त्री० बछिया ] (1) साधारणतः वह पालिश्त भर लंबी होती है । पर इस जाति गाय का बचा। बछड़ा। बछवा । (२) किसी जानवर की कोई कोई बड़ी मरली हाथ डेढ़ हाथ तक भी लंबी का बचा। (क.) होती है। बछ -संज्ञा पुं० [सं० वत्स प्रा. वच्छ ] गाय का बच्चा । बछड़ा। बच्चूना-संज्ञा पुं॰ [ हिं ० बच्चा ] भालू का बचा । (कलंदर ) उ.--हरि जू सों कहियो हो जैसे गोकुल आवै।...... बचो-संज्ञा पुं० [ देश. ] एक बारहमासी लता जी काश्मीर, सिंध : ................."बाल बिलख मुख गौ न चरति मृण बछ और काबुल में होती है। इसकी जब से मजीठ की तरह । पय पियन न धावै । देखत अपनी अखियन उधो हम का रंग निकलता है। यह बीज और जब दोनों से उत्पन्न । कहि कहा जनावै । सूर श्याम बिनु तपत रैनि दिन होती है। तीन वर्ष से लेकर पाँच वर्ष तक में इसकी जब मिले भलेहि सचुपावै ।-सूर । पककर तैयार होती है। इसकी पत्तियाँ पशु और विशेषत: संज्ञा स्त्री.दे. "ब"। ऊँट बड़े चाव से खाते हैं। बछड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० बच्छ+ड़ा (प्रत्य॰)] [ खी० बछड़ी, मधा-संज्ञा पुं० [फा० । सं० वत्स, प्रा. वच्छ] [स्त्री० बच्ची] बछिया ] गाय का बच्चा । उ०—(क) माँ ! मैं बछने घराने (1) किसी प्राणी का नवजात और असहाय शिशु । जैसे, आऊँगा। लल्लू । (ख) कब की हौं हेरति, न हेरे हरि गाय का बचा, हाथी का बच्चा, कुत्ते का बच्चा, मुर्गी का पावत है, बछवा हेरानो सो हेराय नैक दीजिये।-मति- बच्चा इत्यादि। राम । (ग) करि विचार छिन में हरि मारो सो बछरा बन मुहा०-बचा देना-प्रसव करना। गर्भ से उत्पन्न करना । आज । ता पाछे जो बकासुर आयो घात कियो ब्रजराज । (२) लड़का । बालक। -सूर। मुहा०-बच्चों का खेल बहुत सुगम कार्य । सहज काम । बछनाग-संधा पुं० [सं० वत्सनाभ ] एक स्थावर विष । यह वि० अज्ञान । अनजान । जैसे,-अभी तुम इस काम में | नेपाल के पहागों में होनेवाले पौधे की जद है। इसे सींगिया, सेलिया और मीठा विष भी कहते हैं। यह देखने तुलसा।