२३५९ बजना में हिरन के सींग के भाकार का होता है। इसका रंग | बछौटा-संशा पुं० [हिं० बाछ+औटा (प्रत्य॰)] वह चंदा जो कढए तेल की तरह कालापन लिए पीला होता है और हिस्से के मुताबिक लगाया या लिया जाय । स्वाद मीठा होता है। इसकी जद के रेशों के बीच में | वजंत्री-संज्ञा पुं० [हिं० वाजा ] बाजा बजानेवाला । पजनियाँ । गोंद की तरह गूदा होता है जो गीले रहने पर तो नरम | उ.--यजंत्री बजाने लगे।- लल्लू । रहता है पर सूखने पर बहुत कड़ा हो जाता है। इसके । बजकंद-संज्ञा पुं० [सं० वजकंद ] एक बड़ी लता जो भारत के अतिरिक्त एक प्रकार का और बछनाग होता है जो जंगलों में पैदा होती है। इसकी जद विषैली और मादक काला और इससे बड़ा होता है और जिसके ऊपर छोटे होती है परंतु उबालने से खाने योग्य हो सकती है। छोटे दाग होते हैं जो गाँठ की सरह मालूम पड़ते हैं। इसे बजकना-क्रि० अ० [ अनु० ] किसी तरल पदार्थ का सबकर काला बछनाग वा कालकूट कहते हैं। यह शिकम की. या बहुत गंदा होकर खुलबुले फेंकना । बजबजाना। पहाड़ियों में होता है। ये दोनों ही विष है और दोनों के ; बजका-संशा पुं० [हिं० वजकना ] चने की दाल या बेसन की खाने से प्राणियों की मृत्यु होती है । धैथक में बछनाग का बनी हुई बड़ी बड़ी पकौड़ियाँ जो पानी में भिगोकर दही स्वाद मीठा, प्रकृति गरम और गुण वात, कफनाशक और में चली जाती है। कठ रोग और सन्निपात को दूर करनेवाला बतलाया गया | बजट-संज्ञा स्त्री० [अ० ] आगामी वर्ष या मास आदि के लिए है। इसका प्रयोग अनेक औषधों में होता है। निघंटु भित्र भिन्न विभागों में होनेवाले आय और व्यय का लेखा में वत्सनाभ, हारिद्र, सक्तुक, प्रदीपन, सौराष्ट्रक, श्रृंगक, जो पहले से तैयार करके मंजूर कराया जाता है। भविष्य कालकूट और ब्रह्मपुत्र, ये इसके नौ भेद बतलाए | में होनेवाली आय और व्यय का अनुमित लेखा। बजड़ना-क्रि० स० [१] (1) टकराना । (२) पहुँचना । पा -काकोल । गरल । विष । दारद । बजड़ा-संज्ञा पुं० दे० "बजरा"। बछरा-संज्ञा पुं० दे० "बया"। बजनक-संशा पुं० [ पश्तो ] पिस्ते का फूल जो रेशम रंगने बछरू-संक्षा पुं० [सं० वत्स, प्रा. वच्छ ] बछया। गाय का बच्चा।। के काम में आता है। उ.-(क) कयो गोपाल चरत है गोसुत बैठि कलेज, बजना-क्रि० अ० [हिं० बाजा] (1) किसी प्रकार के आधात कीजै । शीतल छाँह वृक्ष की सुंदर निर्मल जमुना को जल या हवा के ज़ोर से बाजे आदि में से शब्द उत्पन्न होना। पीजै । भोजन करत सखा इक बोल्यो बछरू कसहूँ दुरि बोलना । जैसे, डंका बजना, बाँसुरी बजना । उ०-(क) गये । यदुपति कह्यो घेरि हौं आनौं तुम जेवहु निश्चिंत एरी मेरी बजरानी तेरी वर वानी किधौंबानी ही की वीणा भये ।-सूर । (ख) हंसा संशय छूटी कहिया । गैया पिय सुख मुख में बजत है।--केशव । (ख) में न मनोहर बैन बजे बछरू को दुहिया । कबीर । (ग) जियबो मरिबो उभौ सुसजै तन सोहत पीत पटा है। यों दमकै धमकै झमके यह नाहिं आपने हाथ । जानत हैं वे नंदसुत बिहँसत बछ दुति दामिनि की मनो स्याम छटा है। रसखानि । (ग) रुन साथ ।-गिरिधर । मोहन तू या बात को अपने हिये विचार । बजत तैयूरा बछल*+-वि० दे० "वस्सल"। कहुँ सुने गाँठ गडीले तार ।-सनिधि। (२) किसी बछ्या -संज्ञा पुं० [हिं० वच्छ ] [ स्त्री० बछिया ] बछेड़ा । गाय वस्तु का दूसरी वस्तु पर इस प्रकार पड़ना कि शम्द उत्पन्न का बच्चा । उ०—(क) बैल षियाय गाय भइ बाँझा। हो। आचात परना । प्रहार होना । जैसे, सिर पर देखा या बछवै दुहिया तिन तिन साँझा।-कबीर । (ख) जय ! जूता बजाना । उ०-लोलुप भ्रमस गृहप ज्यों जहँ तह सिर छोटे छोटे बछड़ों और बछियाओं की पूठे पकड़कर उठे पदत्राण बजै । तदपि अधम विचरत तेहि मारण कबहुँ और गिर पड़े। लल्लू। न मूढ़ लजै । तुलसी । (३) बालों का चलना । जैसे, मुहा०--बछिया का बाबा या ताऊ=मूर्ख । अशान । निर्बुद्धि । लाठी बजना, तलवार बजना । (४) अबना । इट करना। बेवकूफ । जिद करना। उ०—(क) प्रीति करी तुमसों घजिकै सुविसारि बछा -संज्ञा पुं० दे० "बच्छा। करी तुम प्रीति घने की।-पमाकर । (ख) परी बजी बछेड़ा-संज्ञा पुं० [सं० वत्स, प्रा० वच्छ, पु. हिं. बच्छ ] ! घरियार सुनि बजि के कहत बजाइ । बहुरिन पैहै यह घरी घोड़े का बना । 30-सुरंग बछेरे नैन तुब जद्यपि हरि चरनन चित लाइ।-रसनिधि । (५) प्रत्याति पाना । हैं नाकंद । मन सौदागर ने कसो है बहुतहि परसद । प्रसिद्ध होना । कहलाना । उ०-गुन प्रभुता पदवी जहां -सनिधि। तहाँ बने सबकार । मिले न का फल आक ते बजै माम बछेरू*-संज्ञा पुं० दे० "बछा" मंदार । दीनदयाल गिरि ।