पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/७५

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बढ़दार २३६८ बढ़ाना में अधिकता । मान या संख्या में वृद्धि । मात्राका आधिक्य ।। यौ०-बढ़ चढ़ कर, या बढ़ा चढ़ा अधिक उन्नत । विशेषतर । जैसे, अनाज की बढ़ती, रुपये पैसे की बढ़ती। (0) भाव का बढ़ना । खरीदने में ज्यादा मिलना । विशेष-विस्तार की वृद्धि के लिए अधिकतर "बाद" शब्द सस्ता होना । जैसे, आजकल अनाज बढ़ गया है। का प्रयोग होता है। जैसे, पौधे की बाद, आदमी की याद, संयोग क्रि०-जाना। नदी की बात (९) लाभ होना । मुनाफे में मिलमा । जैसे, कहो, क्या (२) धन धान्य की वृद्धि । धन संपत्ति आदि का बढ़ना। बदा १ (१०) दुकान आदि का समेटा जाना । यंद होना । उन्नति । जैसे, दाता, तुम्हारी बढ़ती हो। जैमे, पुजापा बढ़ना, दुकान बढ़ना । चढ़दार-संज्ञा स्त्री० । देश.] टाँकी । पत्थर काटने का औज़ार । विशेष-"बंद होना" अमंगलसूचक समझकर लोग इस बढ़न/-संशा श्री. | हिं.. बढ़ना ) वृद्धि । बादआधिक्य। किया का व्यवहार करने लगे हैं। बढ़ना-कि. अ० [सं० वर्द्धन, प्रा० बढन ] (१) विस्तार या परि . (११) दीपक का निर्याप्त होना। चिराग़ का बुझना । माण में अधिक होना। डील डौल या लबाई चौड़ाई आदि । उ.--ज्यों रहीम गति दीप की कुल कुपूत गति सोय । बारे में ज्यादा होना । वर्छित होना । वृद्धि को प्राप्त होना। उजियारो लगै, बढ़े अँधेरो होय ।-रहीम । जैसे, पौधे का बढ़ना, बच्चे का बढ़ना, दीवार का बढ़ना, . बढ़नी-संशा स्त्री० [सं० वर्द्धना, प्रा. बढ़नी ] (१) झाद। खेत का बढ़ना, नदी बढ़ना। बुहारी । कूचा । मार्जनी । (२) पेशगी अनाज या रुपया जो संयोगक्रि०-जाना। खेती या और किसी काम के लिए दिया जाता है। महा०-बात बढ़ना=(१) विवाद होना । अगा होना । (२) बढ़वारि-संज्ञा स्त्री० दे. "बढ़ती"। मामला टेढ़ा होना। बढ़ाना-क्रि० स० [हिं० बढ़ना ] (1) विस्तार या परिमाण में (२) परिमाण या संख्या में अधिक होना। गिनती या नाप अधिक करना । विस्तृत करना । डील डौल, आकार, या तौल में ज़्यादा होना । जैसे, धन धान्य का बढ़ना, रुपये, लंबाई चौड़ाई में ज्यादा करना । वहित करना । जैसे, पैसे का बढ़ना, आमदनी बढ़ना, खर्च बढ़ना। दीवार बढ़ाना, मकान बढ़ाना । संयोकि०-जाना। संयोक्रि०—देना ।लेना। (३) अधिक व्यापक, प्रबल या तीव्र होना । बल, प्रभाव, मुहा०---यात बढ़ाना-झगड़ा करना । वात बढ़ाकर गुण आदि में अधिक होमा । असर या स्वासियत वगैरह में कहना=अत्युक्ति करना। ज्यादा होना । जैसे, रोग बढ़ना, पीड़ा बढ़ना, प्रताप (२) परिमाण, संख्या या मात्रा में अधिक करना । गिनती बदना, यश बढ़ना, कीर्ति बढ़ना, लालच बढ़ना । (४) या नाप तोल आदि में ज़्यादा करना । जैसे, आमदनी पद, मर्यादा, अधिकार, विद्या बुद्धि, सुख संपति आदि में बढ़ाना, ख़र्च बढ़ाना, खुराक बढ़ाना । अधिक होन। । दौलत, रुतबे या इस्तियार में ज्यादा होना।। संयोगक्रि०-देना ।-लेना। उन्नति करना । तरमकी करना । जैसे, (क) पहले उन्होंने (३) फैलाना । लंबा करना । जैसे, तार बढ़ाना । (४) २०) की नौकरी की थी, धीरे धीरे इतने बढ़ गए। (ख) बल, प्रभाव, गुण आदि में अधिक करना । असर या आजकल सब देश भारतवर्ष मे बढ़े हुए हैं। खासियत वगैरह में ज्यादा करना । अधिक व्यापक, प्रबल संयोकि०-जाना । या तीव करना । जैसे, दुःख बढ़ाना, क्लेश बढ़ाना, यश महा -बढ़कर चलना-इतराना 1 घमंट करना। बढ़ाना, लालच बढ़ाना । (1) किपी स्थान से आगे जाना । स्थान छोड़कर आगे संयो० क्रि०-देना।-लेना। गमन करना । अग्रसर होना । चलना । जैसे, (क) सुम बढ़ो ' (५) पद, मर्यादा, अधिकार, विद्या बुद्धि, सुख संपत्ति आदि तब तो पीछे के लोग चलें । (ख) बढ़े आओ, बढ़े आओ। . में अधिक करना। दौलत या रुतबे वगैरह का ज़्यादा संयोकि-आना-जाना। करना । उन्नत करना। तमकी देना । जैसे, राजा साहब महा-पतंग बढ़ना--पतंग का और ऊँचाई पर जाना। ने उन्हें खून बढ़ाया। (६) किसी स्थान से आगे ले जाना। (६) चलने में किसी से आगे निकल जाना। जैसे, दीदने । आगे गमन कराना । अप्रसर करना । चलाना । जैसे, में वह तुमसे बढ़ जायगा। घोड़ा बढ़ाना, भीड़ बदाना। संयोगक्रि०-जाना। मुहा०-पतंग बढ़ाना-पतंग और ऊँचे उड़ाना । (७) किपी से किसी बात में अधिक हो जाना । जैसे, पढ़ने ! (७) चलने में किसी से आगे निकाल देना । (6) किसी में वह तुमसे बढ़ जायगा। बात में किसी से अधिक कर देना । ऊँचा या उनत कर