पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/७६

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बढ़ाली बतबढ़ाव देना । (९)भाव अधिक कर देना। सस्ता बेचना । जैसे,--- बढैया-वि० [हिं० बढ़ाना, बदना ] (१) यदानेवाला। उजति बनिये गेहूं नहीं बढ़ा रहे हैं। (१०) विस्तार करना । : करानेवाला । (२) बढ़नेवाला । फैलाना । जैसे, कारवार बढ़ाना । (11) दूकान आदि । - संज्ञा पुं० दे० "बई"। उ०-अति सुन्दर पालनो गदि समेटना । निस्य का व्यवहार समाप्त करना । कार्यालय ल्याव, रे बढ़या ।-सूर । बंद करना । जैसे, दूकान बढ़ाना, काम बढ़ाना । (१२) बढ़ोतरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बाद+उतर ] (1) उत्तरोत्तर वृद्धि । दीपक निर्वाह करना। चिराग बुझाना । उ०-अंग अंग बढ़ती । (२) उन्नति । नग जगमगत दीपसिखा सी देह । दिया बढ़ाए ह रहे बढ़ो बणिक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वाणिज्य करनेवाला । व्यापार उजेरो गेह।-बिहारी। व्यवसाय करनेवाला । बनियाँ । सौदागर । (२) बेचने- क्रि० अ० चुकना । समाप्त होना । बाकी न रह जाना।: वाला। विक्रेता । उ.-शाकणिक मणिगुण गण जैसे- ख़तम होना । उ०—(क) मेघ सबै जल बरखि बढ़ाने , तुलसी । (३) ज्योतिष में छठा करण । विवि गुन गए सिराई । वैसोई गिरिवर ब्रजवासी दूनो हरख बणिकपथ-संज्ञा पुं० [सं०] वाणिज्य । व्यापार की चीज़ों की बढ़ाई।-सूर । (ख) राम मातु उर लियो लगाई । सो, आमदनी रतनी। सुख के बरनि बढ़ाई ।-रघुराज । (ग) गिन तिन मेरे | यणिबंधु-संज्ञा पुं० [सं०] नील का पौधा । अधन की गिनती नहीं बढ़ाय । असरनसरन कहाय प्रभु बणिग्वह-संज्ञा पुं० [सं.] ऊँट । मत मोहिं सरन छुड़ाय ।--रसनिधि । बणिज-संज्ञा पुं० दे. "बणिक" ! बढ़ाली-संशा स्त्री० [ देश० ] कटारी । कटार । । बत-संज्ञा स्त्री० [हिं , 'बात' का संक्षिप्त रूप] बात । बढ़ाव-संज्ञा पुं० [हिं० बढ़ गा+आव (प्रत्य॰) । (१) बढ़ने की . विशेष-सका प्रयोग यौगिक शब्दों में ही होता है । जैसे क्रिया या भाव । (२) फैलाव । विस्तार । आधिक्य । यतकही, बतबढ़ाव, बतरस । अधिकता । ज्यादती । (३) उन्नति । वृद्धि । तरक्की। संज्ञा स्त्री० [अ०] बतख । बढ़ावन-संज्ञा स्त्री० [हिं० बढ़ावना ) गोबर की टिकिया जो बच्चों | यतक-संज्ञा स्त्री० दे० “बतख" । की नज़र झाड़ने में काम आती है। बतकहाव-संशा पुं० [हिं० बात+कहाव ] (१) बातचीत । (२) बढ़ावना -क्रि० स० दे० "बढ़ाना"। कहा सुनी। विवाद । बातों का झगड़ा। बढ़ावा-संज्ञा पुं० [हिं० बढ़ाव (१) किसी काम की ओर मन बढ़ाने बतकही-संज्ञा स्त्री० [हिं० वात+कहना ] बातचीत । वार्तालाप । वाली बात । हौसला पैदा करनेवाली बास जिसे सुनकर , उ.--(क) करत बतकही अनुज सन मन सिय रूप लुभान । किसी को कोई काम करने की प्रबल इच्छा हो । प्रोत्साहन । मुखसरोज-मकरंद छबि करत मधुप इव पान । -तुलसी। उत्तेजना । जैसे, पहले तो लोगों ने बढ़ावा देकर उन्हें इस (ख) मनहु हर उर जुगल मारध्वज के मकर लागि स्रवननि काम में आगे कर दिया, पर पीछे सब किनारे हो गए। करत मेरु की बतकही। तुलसी। क्रि० प्र०-देना। बतख-संशा श्री० [अ० बत ] हंस को जाति की पानी को एक महा०-बढ़ावे में आना-उत्साह देने से किसी टेढ़े काम में प्रवृत्त । चिड़िया जिसका रंग साकेद, पंजे झिल्लीदार और चोंच हो जाना। आगे की ओर चिपटी होती है । चोंच और पंजे का रंग (२) साहस या हिम्मत दिलानेवाली बात । ऐसे शब्द पीलापन लिए लाल होता है। यह चिड़िया पानी में जिनमे कोई कठिन काम करने में प्रवृत्त हो । जैसे,—तुम तैरती है और ज़मीन पर भी अच्छी तरह चलती है। इसका उनके बहाने में मत आना। डीलडौल भारी होता है, इससे यह न तेज़ दौर सकती है बढ़िया-वि० [हिं० बढ़ना ] उत्तम । अरछा । उम्दा । न उड़ सकती है। तालों और जलाशयों में यह मछली आदि संज्ञा पुं० (१) एक प्रकार का कोल्हू। (२) एक तौल जो पकड़कर खाती है। शहरों में भी इसे लोग पालते हैं। वहाँ डेढ़ सेर की होती है। (३) गन्ने, अनाज आदि की फसल . नालियों के कीड़े आदि चुगती यह प्राय: दिखाई पड़ती है। का एक रोग जिससे कनखे नहीं निकलते और दाब बंद हो बतचल-वि० [हिं० वात+चलाना] बकवादी । बक्की। उ०-जानी जाती है। जात सूर हम इनको बतचल चंचल लोल !-सूर। संशा स्त्री० एक प्रकार की दाल । बतबढ़ाव-संज्ञा पुं० [हिं० वात+बढ़ाव ] बात का विस्तार । व्यर्थ बढेल-संशा स्त्री० [देश॰] हिमालय पर की एक भेष जिससे ऊन । बात बढ़ाना । झगड़ा बखेडा यढ़ाना । विवाद। 30-अब निकलता है। जनि बतबहाव खल करई । सुनि मम बचन मान बढ़ेला-संशा पुं० [सं० बराह ] बनेला सूअर । जंगली सूअर।। परिहरई। तुलसी।