पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/७८

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बत्तीस २३७१ बदलत में डालकर दी। जलाते हैं। चिरा जलाने के लिये रुई साग बनाकर खाते हैं। इसकी पत्तयिाँ छोटी छोटी और या सूत का बटा हुआ लच्छा। फूल बुडी के आकार के होते हैं जिनमें काले दाने के यौ०-मोमबत्ती। धूपबत्ती । अगरबत्ती। समान बीज पड़ते हैं। वैद्यक में बथुआ जठराग्निजनक, मुहा०-बत्ती लगाना जलतो हुई वत्ती गुला देना। जलाना ।। मधुर, पित्तनाशक, क्षार, अर्श और कृमिनाशक, नेत्रहित- आग लगाना । भस्म करना । संझा यत्ती-संध्या के समय । कारी, स्निग्ध मलमूत्रशोधक और कफ के रोगियों को दीपक जलाना। हितकारी माना गया है। (२) मोमबत्ती। बद-संशा स्त्री० [सं० वर्म-गिलटी 7 (१) गरमी की बीमारी के मुहा०-बत्ती चढ़ाना शमादान में मोमबत्ता लगाना । | कारण या योंही सूजी हुई जांघ पर की गिलटी। गोहिया । (३) दीपक । चिराग । रोशनी । प्रकाश । बाधी। मुहा०-बत्ती दिखाना-उजाला करना । सामने प्रकाश क्रि० प्र०-निकलना। दिखाना। (२) चौपायों का एक छूत का रोग जिसमें उनके मुँह से यौ०-दीया बत्ती। लार बहती है, उनके खुर और मुंह में दाने पड़ जाते हैं। (५) लपेटा हुआ चीयदा जो किसी वस्तु में आग लगाने के ! सींग से लेकर सारा शरीर गरम हो जाता है। लिये काम में लाया जाय । फलीता। पलीता। (५) । वि० [फा०] (१) बुरा । खराव । अधम । निकृष्ट । पतली छद या सलाई के आकार में लाई हुई कोई वस्तु। यौ०-बदअमली। बदइंतजामी। बदकार । बदकिस्मत । बत्ती की शकल की कोई चीज़ । जैसे, लाह की बत्ती, मुलेठी बदस्त । बदख्वाह । बदगुमान । यदगोई । बदचलन । के सत की बत्ती, लपेटे हुए कागज़ की बत्ती । (६) फूख बदज़यान । बदज़ात । बदतमीज़ । बददुआ। यदनमीत्र । का पूला जिसे मोटी बत्ती के आकार में बांधकर छाजन में बदनाम । बदनीयत । बदनुमा । बदपरहेज़ । बदबख्त । लगाते हैं। मूठा । उ०-अचरज बैंगला एक बनाया।। बदबू। बदमज़ा । बदमरत । बदमाश । बदमिज़ाज । ऊपर नी, तले घर छाया । बाँस न बत्ती बंधन घने। बदरंग । बदलगाम । बदशकल । बदसलूकी । बदसूरत । कहो सखी ! घर कैसे बने ! (७) कपड़े की वह लंबी धजी । बदहज़मी । बदहवास । जो धाव में मवाद साफ करने के लिये भरते हैं। (३) बुरे आचरण का मनुष्य । दुष्ट । खल । नीच । जैसे, क्रि०प्र०—देना । बद अच्छा, बदनाम खुरा। (८) पगड़ी या धीरे का ऐंठा हुआ कपड़ा । () कपड़े के संज्ञा स्त्री० [सं० वर्त-पलटा, बदला ] पलटा । बदला । किनारे का वह भाग जो सीने के लिये मरोड़कर पकड़ा एवज़ । उ०—तब इक मित्रहि कह्यो बुझाई । तुम हमरी जाता है। बद पहरे जाई । -रघुराज । बत्तीस-वि० [सं० द्वात्रिशत, प्रा० बत्तीसा ] तीस से दो अधिक । जो महा०-बद में एवज में 1 बदले मे । स्थान पर ! उ.--गुरुगृह गिनती में तीस से दो ज़्यादा हो। जब हम बन को जात । तुरत हमारे बद में लकरी लावत संज्ञा पुं० (3) तीस से दो अधिक की संख्या । (२) उक्त । सहि दुख गात । सूर। संख्या का अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-३२। बदअमली-संशा स्त्री० फा० बद+अ० अमल] राज्य का कुप्रबंध । बत्तीसा-संशा पुं० [हिं० बत्तीस ] एक प्रकार का लड्डू जिसमें अशांति । हलचल। पुष्टई के बत्तीस मसाले पड़ते हैं। ! क्रि० प्र०-फैलाना। मचना। बत्तीसी-संशा स्त्री० [हिं० बत्तीस ] (1) बत्तीस का समूह । (२) बदइंतजामी-संज्ञा स्त्री० [फा० ] कुप्रबंध । अव्यवस्था। मनुष्य के नीचे अपर के दांतों की पंक्ति (जिनकी पूरी बदकार-वि० [फा०] (1) पुरे काम करनेवाला । कुकर्मी। संक्या बसीस होती है।) (२) व्यभिचारी । पर स्त्री या परपुरुष में रत । जैसे, बदकार मुहा०-बत्तीसी सब पढ़ना-दॉत गिर पड़ना । बत्तीसी आदमी, बदकार औरत। दिखाना-दाँत दिखाना। हँसना । बत्तीसी बजना=जाड़े | बदकारी-संशा स्त्री० [फा०] (१) कुकर्म । (२) व्यभिचार । के कारण दादों का कॅपना । गहरा जाड़ा लगना । बदकिस्मत-वि० [फा० बद+अ० किरमत ] खुरी किस्मत का। बथाना-संज्ञा पुं० [सं० वत्स+स्थान, हिं . बच्छथान ] गोगृह मंदभाग्य । अभागा । गायों के रहने की जगह । बदखत-वि० पुं० [फा०] बुरा लेख । युरी लिपि । खुरे अक्षर । बथुप्रा-संज्ञा पुं० [सं० वास्तुक, पा० वात्थु] एक छोटा पौधा जो वि० खुरा लिखनेवाला । वह जिसका लिखने में हाथ न जौ, गेहूं आदि के खेतों में उपजता है और जिसका लोग बैठा हो।