पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/८०

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बदनीयत २३७३ बदरीफला क्रि० प्र०-करना ।होना । क्रि० वि० [फा०] बाहर । जैसे, शहर बदर करमा । बदनीयत-वि० [फा० बद-+अ० नीयत । (१) जिसकी नीयत मुहा०-यदर निकालना=जिम्मे रकम निकालना । किसीके बुरी हो। जिसका अभिप्राय दुष्ट हो । नीचाशय । (२) हिसाव में उसके नाम बाको बताना । जिसके मन में धोखा आदि देने की इच्छा हो। बेईमान । बदरनवीसी-संज्ञा स्त्री० [फा०] (१) हिसाब किताब की जाँच । बदनीयती-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] बेईमानी । दगाबाज़ी । (२) हिसाय में गड़बड़ रकम अलग करना । बदनुमा-वि० [फा० ] जो देखने में बुरा लगे। कुरूप । भहा। बदरा -संज्ञा पुं० [ हिं . ] बादल । मेघ। उ०-कौन सुनै कासों भोग। कहीं सुरति बिसारी नाह। बदाबदो जिय लेत हैं ये बदरा बदपरहेज़-वि० [फा०] कुपथ्य करनेवाला । जो खाने पीने ! बदराह ।-बिहारी आदि का संयम न रखता हो। संज्ञा स्त्री० [सं०] वराहकांसी का पौधा । बदपरहेज़ी-संज्ञा स्त्री० [फा० ] कुपथ्य । खाने पीने आदि में | बदामलक-संज्ञा पुं० [सं०] एक पौधा । पानी आमला । असंयम । विशेष-इसके पौधे जलाशयों के पास होते हैं। पत्ते लंबे लंबे बदबस्त-वि० [ फा . ] बदकिस्मत । अभागा । और फल लाल लाल बेर के समान होते हैं। टहनियों में बदबाछा-संज्ञा पुं० [फा० बद+हिं. बाछ ] वह हिस्सा जो छोटे छोटे काँटे भी होते हैं। बेईमानी करने से मिला हो। बदराह-वि० [फा०] (1) कुमार्गी । कुमार्गगामी । पुरी राह बदबू-संशा स्त्री० [फा०] दुर्गंध । बुरी गंध । बुरी बास । पर चलनेवाला। (२) दुष्ट । खुरा। उ०-बदाबदी जिय क्रि० प्र०—आना ।-उठना ।-फैलना। लेत है ये बदरा बदराह । —बिहारी । बदबूदार-वि० [फा०] दुर्गंधयुक्त । जिसमें से बुरी बास आती हो। बदरि-संज्ञा पुं० [सं०] बेर का पौधा या फल । उ-जिनहि बदमज़ा-वि० [फा०] (1) दुःस्वाद । बुरे स्वाद का। ख़राब ! विश्व कर बदरि समाना।--तुलसी। ज़ायके का । (२) आनंदरहित । जैसे, तबीयत बदमज़ा | बदरिकाश्रम-संज्ञा पुं० [सं०] तीर्थ विशेष जो हिमालय पर है। होना। यहाँ नर-नारायण तथा व्यास का आश्रम है। बदमस्त-वि० [फा०] (१) नशे में चूर । अति उन्मत्त । नशे विशेष-यह तीर्थ श्रीनगर (गढ़वाल ) के पास अलकनंदा में यावला । (२) कामोन्मत्त । लंपट । नदी के पच्छिमी किनारे पर है। कहते हैं कि भृगुसंग बदमस्ती-संशा स्त्री० [फा०] (१) मतवालापन । उन्मत्तता । नामक अंग के ऊपर एक बदरीवृक्ष के कारण बदरिकाश्रम (२) कामोन्मसता । कामुकता । लपटता। नाम पड़ा। महाभारत में लिखा है कि पहले यहाँ गंगा बदमाश-वि० [फा० बद+अ० मआश=जीविका ] (1) पुरे कर्म की गरम और ठंढी दो धाराएँ थीं, और रेत सोने की थी। से जीविका करनेवाला । दुस। (२) खोटा। दुष्ट । पाजी। यहाँ पर देवताओं ने सप करके विष्णु को प्राप्त किया था। लुच्चा । नटखट । (३) दुराचारी । बदचलन। गंधमादन, बदरी, नरनारायण और कुवेरलंग इसी तीर्थ के बदमाशी-संज्ञा स्त्री० [फा० बद+अ० मआश] (1) बुरी वृत्ति । अंतर्गत हैं। नरनारायण अजुन ने यहाँ बड़ा तप किया जघन्य वृत्ति । दुष्कर्म । खोटाई। (२) मीचता । दुष्टता। था। पांडव महाप्रस्थान के लिये इसी स्थान पर गए थे। पाजीपन । नटवटी। शरारत । (३) व्यभिचार । लपटता। पद्मपुराण में वैष्णधों के सब तीयों में बदरिकाश्रम श्रेष्ठ बदमिज़ाज-वि० [फा०] दु:स्वभाव ।बुरे स्वभाव का। जो कहा गया है। जल्दी अप्रसन्न हो जाय । चिड़चिड़ा। बदरिया-संज्ञा स्त्री० दे० "बदरी", "बदली"। बदमिज़ाजी-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] बुरा स्वभाव । चिड़चिड़ापन। बदरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] बेर का पेड़ या फल । बदरंग-वि० [फा०] (1) बुरे रंग का । जिसका रंग अच्छा न | बदरीच्छदा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) एक प्रकार का बेर । (२) हो। भहे रंग का । (२) जिसका रंग बिगड़ गया हो। एक सुगंध द्रव्य जो शायद किसी समुद्री जंतु का सूखा विवर्ण। मांस हो। संज्ञा पुं० (1) ताश के खेल में जो रंग दाँव पर गिरना बदरीनाथ-संज्ञा पुं० [सं०] बदरिकाश्रम नाम का तीर्थ । चाहिए उससे भिन्न रंग। (२) चौसर के खेल में एक एक बदरीनारायण-संशा पुं० [सं०] (1) बदरिकाश्रम के प्रधान खिलाड़ी की दो गोटियों में वह गोटी जोरंग न हो। देवता। (२) नारायण की मूर्सि जो बदरिकाश्रम बदरंगी-संज्ञा स्त्री० [फा०] रंग का फीकापन या महापन। में है। बदर-संज्ञा पुं० [सं०] (1) बेर का पेड़ या फल । (२) बदरीपत्रक-संज्ञा पुं० [सं०] एक सुगंध द्रव्य । कपास । (३) कपास का बीज । बिनौला । । बदरीफला-संज्ञा स्त्री० [सं०] नील शेकालिका का पौधा ।