पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/८२

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बदलौवल २३७५ बद्धपरिकर यौ०-अदला बदली। क्रि० प्र०—करना । होना। (२) एक स्थान से दूसरे स्थान पर नियुक्ति । तबदीली । | बदूख* -संज्ञा स्त्री० दे० "बंदूक"। तबादला । जैसे, यहाँ से उसकी बदली दूसरे जिले में हो | यदे -अव्य० [सं० वर्त पलटा] (1) वास्ते । लिये । खातिर । गई । (३) एक के स्थान पर दूसरे की तैनाती । जैसे, अभी| अर्थ । (२) दलाली समेत दाम (दलाल)। पहरे की बदली नहीं हुई है। बदौलत-क्रि० वि० [फा०] (8) आसरे से। द्वारा अवलंब बदलौवला-संज्ञा स्त्री० [हिं० बदलना ] अदल बदल । हेर फेर। से। कृपा से । जैसे, जिसकी बदौलत रोटी खाते हो बदशकल-वि० [फा०] कुरूप । बेरोल । भद्दी सूरत का। उसी के साथ ऐसा ? (२) कारण से । सबब से । वजह बदसलूकी संज्ञा स्त्री० [फा० बद+ अ० सलूक ] (१) बुरा व्यव- | से । जैसे, तुम्हारी बदौलत यह सब सुनना पड़ता है। हार । अशिष्ट ग्यवहार । (२) अपकार । खुराई । बदर*1-संशा पुं० दे० 'बादल"। उ०-बहर की छाही, वैसो क्रि०प्र०—करना ।-होना। जीवन जग माहीं। बदसूरत-वि० [फा० बद+अ० सूरत ] कुरूप । भद्दी सूरत- | बद्दल-संज्ञा पुं० दे० "बादल" । उ.-बद्दल समान मुगलहल वाला । बेडौल। उदे फिरें।-भूषण । बदस्तूर-क्रि० वि० [फा०] मामूली तौर पर। जैसा था या रहता बढ्द-संज्ञा पुं० [देश॰] अरब की एक असभ्य जाति जो प्राय: है वैसा ही । जैसे का तैसा । ज्यों का त्यों। बिना फेरफार । लूटपाट किया करती है। __ जैसे, जो बातें पहले थी अब भी बदस्तूर कायम हैं। वि. बदनाम । बदहज़मी-संज्ञा स्त्री० [फा०] अपच । अजीर्ण । बद्ध-वि० [सं०] (१) बंधा हुआ। जो या जिससे बांधा गया बदहवास-वि० [फा०] (१) बेहोश । अचेत । (२) व्याकुल । हो। बंधन में पका हुआ या आँधने में काम आया हुआ । विकल । उद्विम । (३) श्रांत । शिथिल । पस्त । यौ०-बद्धपरिकर । बद्ध शिख । बदान-संज्ञा स्त्री० [हिं० बदना ] बदे जाने की क्रिया या भाव । ! (२) अज्ञान में फंसा हुआ । संसार के बंधन में पड़ा हुआ। प्रतिज्ञापूर्वक पहले से किसी बात का स्थिर किया जाना । जो मुक्त न हो। जैसे, बद्धजीव । (३) जिसपर किसी किसी बात के होने का पका । जैसे, आज कुश्ती की बदान है। प्रकार का प्रतिबंध हो। जिसके लिए कोई रोक हो । (४) बदाबदी-संज्ञा स्त्री० [हिं० वदना ] दो पक्षों की एक दूसरे के जिसकी गति, क्रिया, व्यवहार आदि परिमित और व्यव. विरुद्ध प्रतिज्ञा या हठ । लाग डाट । होरा होड़ी। हो । स्थित हो।जो किसी हद हिसाब के भीतर रखा गया हो। उ.-कौन सुनै कासों कहौं सुरति बिसारी नाह । बदाबदी जैसे, नियमबद्ध, मर्यादाबद्ध । (५) निर्धारित । निर्दिष्ट । जिय लेत हैं ये बदरा बदराह ।-बिहारी । स्थिर । ठहराया हुआ। (६) बैठा हुआ। जमा हुआ। बदाम-संज्ञा पुं० दे. "बादाम"। यौ०-बद्धमूल। बदामी-वि० [फा०] दे. "बादामी"। (७) सटा हुआ । जुड़ा हुआ । एक दूसरे से लगा संशा पुं० कौडियाले की जाति का एक पक्षी । एक प्रकार : का किलकिला। यौ०-बद्धांजलि। बदि*-संज्ञा स्त्री० [सं० वर्त=पलटा ] पलटा । बदला। एवज़। यद्धक-संज्ञा पुं० [सं० ] बँधुवा । कैदी। स्थानापन्न करने या होने का भाव । बद्धकोष्ठ-संज्ञा पुं० [सं०] मल अच्छी तरह न निकलने की अव्य. (१) बदले में । एवज़ में। पलटे में । उ०- अवस्था या रोग । पेट का माफ़ न होना । कम्ज़ । (क) एक कौर लीजै पितु की यदि एक कौर बदि मोरा । कब्जियत । एक कौर कैकेयी की बदि एक सुमित्रा कोरा ।-रघुराज । बद्धगुदोदर-संज्ञा पुं० [सं०] पेट का एफ रोग जिसमें हृदय और (ख) बोले कुरुपति वचन सुहाए। हम, नरेश, सब की नाभि के बीच पेट कुछ बढ़ आता है और मल रुक रुक- बदि आए ।-रघुराज । (२) लिये । वास्ते । खातिर । कर थोड़ा थोड़ा निकलता है। उ०--इनकी बदि हम सहत यातना । हरिपार्षद अब विशेष-वैद्यक के अनुसार जब अंतड़ियों में अन्न, मिट्टी, आन बास ना।-धुराज । बालू आदि जमते जमते बहुत सी इकट्ठी हो जाती है तब बदी-संज्ञा स्त्री० [१] कृष्ण पक्ष । अंधेरा पाख । जैसे, मल बहुत कष्ट से थोड़ा थोड़ा निकलता है। चिकनी, सावन बदी तीज । चिपचिपी चीजें अधिक खाने से यह रोग प्रायः हो जाता संशा स्त्री० [फा०] बुराई । अपकार । अहित । जैसे, नेकी है और इसमें बमन में मल की सी दुर्गंध आती है। बदी साथ जाती है। । बद्धपरिकर-वि० [सं०] कमर बाँधे हुए । तैयार।