पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/८३

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बमुष्टि बधिर बद्धमुष्टि-वि० [सं०] जिसकी मुट्ठी बैंधी हो अर्थात् देने के लिये बदती । (२) पुत्रजन्म पर होनेवाला आनंदमंगल । नखुलती हो । कृपण | कंजूम। बेटा होने का उत्सव या खुशी। (३) मंगल अवसर का घद्धमल-वि० [सं०] जिम्ममे जब पका ही हो। जोस और गाना बजाना । मंगलाचार । उ दघर बजति अनंद अटल हो गया हो। बधाई।-सूर। क्रि० प्र०—करना ।—होना । क्रि० प्र०-बजना। बद्धयुक्ति-संज्ञा स्त्री० [सं०] वंशी बजाने में उसके छिद्रों पर से (४) आनंद। मंगल । उत्सव। .खुशी। चहल पहल । उँगली हटाकर उसे खोलने की क्रिया । (संगीत)। (५) किसी संबंधी, इष्ट मित्र आदि के यहाँ पुत्र होने पर बद्धरसाल-संज्ञा पुं० [सं०] उत्तम जाति का एक प्रकार का आनंद प्रकट करनेवाला वचन या संदेसा । मुबारकबाद । आम। क्रि० प्र०-देना। बद्धवर्चस्-वि० [सं० ] मलरोधक।। (६) इष्ट मित्र के शुभ, आनंद या सफलता के अवसर बद्धशिख-वि० [सं० ] जिसकी शिखा या चोटी वैधी हो। पर आनंद प्रकट करनेवाला वचन या संदेसा । मुबारक- विशेष—बिना शिखा बाँधे जो कुछ धर्म कार्य किया जाता बाद । जैसे, (क) जीत की बधाई, पास होने की बधाई । है वह निष्फल होता है। (ख) तुम्हें इसकी बधाई है। संज्ञा पुं० शिशु । वश्वा । क्रि० प्र०-देना। बद्धशिखा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] उच्चटा । भूम्यामलकी । (७) उपहार जो मंगल या शुभ अवसर पर दिया जाय। बद्धमूतक-संज्ञा पुं० [सं० ] रपेश्वर दर्शन के अनुसार बद्ध रस | बंधाना-क्रि० स० [हिं० बधना का प्रे० ] बध कराना। दूसरे या पारा जो अक्षत, लघुदाबी, तेजोविशिष्ट, निर्मल और से मरवाना। गुरु कहा गया है। ! बधाया-संज्ञा पुं० [हिं० बधाई ] बधाई । उ.-जय ते राम विशेष उपेश्वर दर्शन में देह को स्थिर या अमर करने पर ज्याहि घर आये । नित नव मंगल मोद बधाये ।-सुलसी। मुक्ति कही गई है। यह स्थिरता रस या पारे की सिद्धि बधावना-संज्ञा पुं० दे० "वधावा"। द्वारा प्राप्त होती है। बधाधा-संज्ञा पुं० [हिं० बधाई ) (१) बधाई । (२) आनंद बद्धी-संज्ञा स्त्री० [सं० बद्ध ] (1) वह जिससे कुछ कसें या बाँध। मंगल के अघसर का गाना बजाना । मंगलाचार । डोरी। रस्सी। तलमा । जैसे, तबले की बद्धी । (२)! क्रि०प्र०-बजना। मोला या सिकड़ी के आकार का घार लहों का एक गहना (३) उपहार जो संबंधियों या इष्टमित्रों के यहाँ से पुत्र जिसकी दो लई तो गले में होती हैं और दो लई दोनों जन्म, विवाह आदि मंगल अवसरों पर आता है। कंधों पर से जनेऊ की तरह होती हुई छाती और पीठ तक ( मिठाई, फल, कपड़े गहने आदि)। गई रहती है। क्रि० प्र०--आना ।-जाना ।-भोजन । बद्धोदर-संशा पु० [सं०] बदगुदोदर रोग। | बधिक-संज्ञा पुं० [सं० वधक] () बध करनेवाला । मारनेवाला। बध-संशा पुं० [सं० ] वह व्यापार जिसका फल प्राण-वियोग हत्यारा । (२) प्राणदंड पाए हुए का प्राण निकालनेवाला । हो । मार डालना । हनन । हस्या । __ जल्लाद । (३) व्याध । बहेलिया। घधक-वि० [सं०] बध करनेवाला । वधिया-संज्ञा पुं० [हिं० बध मारना ] (1) वह बैल या और कोई यधगराड़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बाध-न-गराकी ] रस्सी बटने का पशु जो अंडकोश कुचल या निकालकर पंड कर दिया औज़ार । गया हो। नपुंसक किया हुआ चौपाया। ख़स्सी । आस्ता । बधत्र-संज्ञा पुं० [सं० ] अस्त्र । चौपाया जो ऑडू न हो। बधना-क्रि० स० [सं० बध+ना (प्रत्य॰)] मार डालना । बध क्रि० प्र०—करना ।-होना। करना । हत्या करना। महा०-बधिया बैठना घाटा होना । टोटा होना । दिवाला संज्ञा पुं० [सं० वर्द्धन मिट्टी का गडुवा ] (१) मिट्टी या धातु निकलना । (लश०)। का टोंटीदार लोटा जिसका व्यवहार अधिकतर मुसलमान (२) एक प्रकार का मीठा गया। करते हैं। (२) चूनीवालों का एक औज़ार । बधियाना-क्रि० स० [ हि० बधिया ] बधिया करना। बधिया बधभूमि-संज्ञा स्त्री० [सं०] वह स्थान जहाँ अपराधियों को बनाना। प्राण दिया जाता हो। बधिर-संशार पुं० [सं०] जिसमें श्रवण-शक्ति न हो। जिसमें बधाई-संशा स्त्री० [सं० वर्धन, हि० बढ़ना, बढ़ती, बदाई] () वृद्धि।। सुनने की शक्ति न हो । बहरा।