पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/८६

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बननि २३७२ वनमाला मिलना । जैसे,—जब वो आदमियों में लगाई होती है, फुट तक की ऊँचाई पर होती है। इसका पौधा बहुत तब तीसरे की ही बनती है। छोटा होता है जिसमें बहुत पतली और छोटी शाखाएँ संयो० क्रि० आना ।—पड़ना।। निकलती है जिनके सिरे पर बैंगनी, या नीले रंग के (१६) स्वरूप धारण करना । जैसे,-थिएटर में वह बहुत खुशबूदार फूल होते हैं। इसकी पत्तियाँ अनार की अच्छा अफ़ीमची बनता है। (१७) मूर्ख ठहरना । उप पत्तियों से कुछ मिलती जुलती होती हैं। इसकी जड़, फूल हासास्पद होना । जैसे,—आज तो तुम खूब बने । (१८) और पत्तियाँ तीनों ही औषधि के काम में आते हैं। साधा- अपने आपको अधिक योग्य गंभीर अथवा उच्च प्रमाणित रणतः फूल और पत्तियों का व्यवहार जुकाम और ज्वर करना । महत्व की ऐसी मुद्रा धारण करना जो वास्तविक न आदि में होता है और जड़ दस्तावर दवाओं के साथ हो । जैसे,-वह छोकरा हम लोगों के सामने भी बनता है। मिलाकर दी जाती है। फूलों और जड़ का व्यवहार वमन संयो०क्रि०-जाना। कराने के लिए भी होता है और खाली फूल पेशाब लाने- मुहा०—बनकर अच्छी तरह। भली भाँति । पूर्णरूप से। वाले माने जाते हैं। उ०—(क) मनमोहन सो बिछुरे इतही बनिकै ने अबै बनवकरा-संज्ञा पुं० [हिं० बन+बकरा ] एक प्रकार का पक्षी जो दिन द्वै गये हैं। सखि वे हम वे तुम वेई बनो पै कछु | काश्मीर और भूटान आदि ठंढे देशों में पाया जाता है। के कछू मन इव गये है।-पनाकर । (ख) यमपुर द्वारे. यह रंग में भूरा और लंबाई में लगभग एक फुट के होता लगे तिनमें केवारे कोड हैं न रखवारे ऐसे बनकै उजारे है। यह घास और पत्तियों से भूमि पर या नीची झाड़ियों हैं।-पभाकर। में घोंसला बनाता है। अपरैल से जून तक इसके अंडे देने (११) स्वब सिंगार करना । सजना। सजावट करना । का समय है। यह एक यार में तीन चार अंडे देता है। यौ०-बनना संघरना, बनना उनना खूब अच्छी तरह अपनी ! वनवास-संज्ञा पुं० [सं० वनवास ] (१) बन में धसने की क्रिया ___ सजावट करना । खूब श्रृंगार करना। या अवस्था । (२) प्राचीन काल का देशनिकाले का दंड। धननि*-संशा स्त्री० [हिं० बनना ] (1) बनावट । (२) बनाव जलावतनी। सिंगार। बनबासी-संज्ञा पुं० [सं० वनवासी] (१)धन में रहनेवाला । वह बननिधि-संशा पुं० [सं० वननिधि ] समुद्र । जो बन में बसे । (२) जंगली । बन पिंडालू-संशा पुं० [हिं० बन+पिंडालू ] एक जंगली वृक्ष जो बनबाहन-संज्ञा पुं० [सं० वनवाहन ] जलयान । नाय । नौका । बहुत बड़ा नहीं होता । इसकी लकड़ी जर्दी लिए भूरे रंग उ०-जब पाहन भे बन-धाहन से उतरे बनरा जय राम की और कंधी, कलमदान या नकाशीदार चीजें बनाने के काम में आती है। यह पे मभ्य देश, घंगाल और मद्रास बनबिलाव-संज्ञा पुं० [हिं० बन+बिलाव-विली ] उत्तर भारत, में होता है। बंगाल और उड़ीसा में मिलनेवाला बिल्ली की जाति का बनपट*-संज्ञा पुं० [सं०] वृक्षों की छाल आदि से बनाया और उससे बहुत ही मिलता जुलता एक जंगली जंतु जिसे हुआ कपड़ा। लोग प्रायः बिल्ली ही मानते हैं। यह बिल्ली से कुल बड़ा बनपति-संज्ञा पुं० [सं० वनपति ] सिंह । शेर । होता है और इसके हाथ पैर छोटे तथा हद होते हैं। बनपथ-संज्ञा पुं० [सं० वनपथ ] (१) समुद्र । (२) वह गस्ता इसका रंग मटमैला भूरा होता है और इसके शरीर पर जिसमें जल बहुत पड़ता हो। (३) वह रास्ता जिसमें काले लंबे दाग़ और पूँछ पर काले हल्ले होते है। यह प्रायः जंगल बहुत पवता हो। दलदलों में रहता है और वहीं मछली पकड़कर खाता है। बनपार-संज्ञा पुं० [हिं० बन+पाट ] जंगली सन । जंगली यह कुछ अधिक भीषण होता है और कभी कभी कुत्तों या पटुआ। बछदों पर भी आक्रमण कर बैठता है। बनपाती-संका स्त्री० [हिं०बन+पत्ती ] वनस्पति । बनमानुष-संज्ञा पुं० [हिं० बन+मानुष ] (१) बंदरों से कुछ बनपाल-संज्ञा पुं० [सं० वनपाल ] बन या बाग का रक्षक । माली। उन्नत और मनुष्य से मिलता जुलता कोई जंगली जंतु । बनप्रिय-संज्ञा पुं० [सं० वनप्रिय ] कोयल । कोकिल । जैसे, गोरिल्ला, चिंवैजी आदि । (२) बिलकुल जंगली बनफल-संशा पुं० [हिं० बन+फल ] जंगली मेवा । आदमी । (परिहास) बनफूई-वि० [फा०] बनफ्शे के रंग का । बनमाला-संशा स्त्री० [सं० वनमाला ] सुलसी, कुंद, मंदार, पर- बनफशा-संशा पुं० [फा०] एक प्रकार की वनस्पति जो नेपाल, जाता और कमल इन पाँच चीज़ों की बनी हुई माला। ऐसी काश्मीर और हिमालय पर्वत के दूसरे स्थानों में ५००० माला का वर्णन हमारे यहाँ के प्राचीन साहित्य में विष्णु, 6