पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/८७

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बनमाली २३८० बनानि कृष्ण, राम आदि देवनाओं के संबंध में बहुत आता है। घनरूह-संज्ञा पुं० [सं० वनरुह 1 (9) जंगल में आपसे आप होने- कहा है कि यह माला गले से पत्रों तक लंबी होनी चाहिए। वाला वृक्ष या पौधा । जंगली वेब। (२) कमल । उ०-रिपु बनमाली-संज्ञा पुं० [सं० वनमाली ] (1) बनमाला धारण करने रन जीति अनुज सँग सोभित फेरत धाप विशिष बनरूह वाला । (२) कृष्ण । (३) विष्णु । नारायण । (५) मेघ । कर।-तुलसी। बादल । उ०-बनमाली बज पर बरसत बनमाली बनमाली बनरुहिया-संज्ञा स्त्री० [सं० वनरुह ] एक प्रकार की कपास । दूर दुख केशव कैसे सहीं 1-केशव । (५) बन से घिरा वनवना*/-क्रि० स० दे० "बनाना"। हुआ देश । जिस प्रदेश में घने बन हों। उ०-बनमाली बनवर-संशा पुं० दे० "बिनौला"। ब्रज पर बरसत बनमाली बनमाली दूर दुख केशव कैसे बनवसन*-संज्ञा पुं० [सं० वनवसन ] वृक्षों की छाल का बना सहौं। केशव । हुआ कपड़ा। बनमुर्गा-संज्ञा पुं० [हिं० बन+फा० मुर्ग ] जंगली मुरगा। बनवा-संज्ञा पुं० [सं० वनजल+वा (प्रत्य॰)] पनडुब्बी बनमुर्गिया-संशा स्त्री० [हिं० बन+फा० मुर्गी+इया (प्रत्य॰)] नामक जल-पक्षी। हिमालय की तराई में रहनेवाला एक प्रकार का पक्षी संज्ञा पुं० [सं० वन जंगल ] एक प्रकार का बछनाग । जिसका गला और सीना साकेद, सारा शरीर आसमानी बनवाना-क्रि० स० [हिं० बनाना का प्रे० रूप ] दूसरे को बनाने रंग का और चोंच अंगली रंग की होती है। यह पक्षी में प्रवृत्त करना । बनाने का काम दूसरे से कराना। भूमि पर भी चलता है और पानी में भी सैर सकता है। | वनवारी-संज्ञा पुं० [सं० बनमाली ] श्रीकृष्ण का एक नाम । इसका मांस खाया जाता है। . बनवासी-संशा पुं० [सं० वनवासी ] बन का निवासी । जंगल में बनरखा-संज्ञा पुं० [हिं० बन+रखना-रक्षा करना ] (1) जंगल | रहनेवाला। की रखवाली करनेवाला । धन का रक्षक । (२) बहेलियों बनर्वया-संशा पुं० [हिं० बनाना+वैया (प्रत्य॰)] बनानेवाला। तथा जंगल में रहनेवालों की एक जाति । इस जाति के | बनसपती-संशा स्त्रा० ० "वनस्पति"। लोग प्रायः राजा महाराजाओं को शिकार के संबंध की बनसार-संशा पुं० [सं० वन जल+सार ? ] जहाज़ पर चढ़ने सूचनाएँ देते हैं और शिकार के समय जंगली जानवरों को और उससे उतरने का स्थान । बंगसार । ( लश.) घेर कर सामने लाते और उनका शिकार कराते हैं। बनसी-संज्ञा स्त्री० दे० "वंशी"। बनरा*-संज्ञा पुं० दे० "बंदर"। | बनस्थली-संशा स्त्री० [सं० वनस्थली ] जंगल का कोई भाग। संशा पुं० [हिं० बनना ] (१) वर । दल्हा । (२) विवाह । वनखंड। समय का एक प्रकार का मंगल गीत । उ०-गावै विधवा | वनस्पति-संशा पुं० दे."वनस्पति"। अपन कहि वनरा दुलहिन केर । -रधुनाथदास । वनस्पति विद्या-संज्ञा स्त्री० दे० "वनस्पति शास्त्र"। बनगज* -संज्ञा पुं० [सं० बनराज ] (9) बन का राजा, सिंह। बनहटी-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] एक प्रकार की छोटी नाव जो डाँड़ शेर । (२) बहुत बड़ा पेड़। से खेई जाती है। धनराय-संज्ञा पुं० दे० "बनराज"। | बनहरदी-संज्ञा स्त्री० [सं० वनहरिद्रा ] दारु हल्दी। दारु हरिद्रा। बनरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बनरा का स्त्री.] नववधू । नई म्याही हुई बना-संज्ञा पुं० [हिं० बनना ] [स्त्री० बनी ] वर । दूल्हा । बधू । उ०-सखी लखु सिय यनरी घर आई। परिछन करि संज्ञा पुं० [ ? ] एक छंद का नाम जिसमें 10, सच सासु उतारी पुनि पुनि लेत बलाई ।-रघुराज । ८ और १४ के विश्राम से ३२ मात्राएँ होती है। इसका बनरीठा-संज्ञा पुं० [हि० बन+रीठा ] एक प्रकार का जंगली रीठा दूसरा और प्रसिद्ध नाम 'दंडकला' है। जिसकी फलियों से लोग सिर के बाल साफ़ करते हैं। बनाइ(य)-कि० वि० [हिं० बनाकर अच्छी तरह ] (1) बिलकुल। इसका पेड़ कांटेदार होता है और सारे भारत में पाया . निपट । अत्यंत । नितांत । उ०—(क) देखि घोर तप शक जाता है। इसके पत्ते खट्टे होते हैं। इसलिए कहीं कहीं : उर कंपित भयो बनाह । मनमथ सकल समाज जुत आदर लोग उसको तरकारी बना कर भी खाते हैं। एला। कीन्ह खुलाइ । (ख) हरि तासों कियो युद्ध बनाई । सब धनरीहा-संशा सी० [हिं० बन+राहा (रास) या सं० रुह पौधा ] सुर मन में गये डराई।-सूर । (२) भली भाँति । अच्छी एक प्रकार की घास जिसकी छाल से सुतली वा सूत धनाया तरह । उ०—सूर गुरु महिसुर संत की सेवा कर बनाइ। जा सकता है । यह घास खसिया पहाड़ी पर बहुतायत से बनाउ-संज्ञा पुं० दे० "बनाव"। होती है। इसे रीसा या बनकटरा भी कहते हैं। कुछ लोग बनाउरि*-संशा स्त्री० दे० "वाणावली"। इसी को बनरीठा भी कहते है, परंतु वह इससे भिन्न है। बनाग्नि-संज्ञा स्त्री० [सं० वनाग्नि ] दावानल । दवारि ।