पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/९२

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वयस २३८५ बयस-संज्ञा स्त्री० दे. "वय" । 'बायन'। उ.-भोजन करत कनक की यारी । द्रुपदसुता सह करति बयसर-संज्ञा स्त्री० [देश॰] कमखाव बुननेवालों की वह लकड़ी बयारी। जो उनके करघे में गुल्ले के ऊपर और नीचे लगती है। बयारा-संशा पुं० [हिं० बयार ] (1) हवा का झोंका । (२) बयसवाला-वि० [सं० वयस+हिं० वाला ] [ स्त्री० बयसवाली ] तूफान । युवक । जवान । बयारी-संज्ञा स्त्री० दे० 'वियारी", "न्यालू"। बयस-सिरोमनि*-संज्ञा पुं० [सं० वयसशिरोमणि ] युवावस्था। दे. "बयारि"। जवानी । यौवन । उ.-बय किसोर सरिपार मनोहर | बयाला-संज्ञा पुं० [सं० वाह्य+आला ] (1) दीवार में का वह बयस सिरोमनि होने। तुलसी।। छेद जिससे झाँककर बाहर की ओर की वस्तु देखी जा बया-संशा पुं० [सं० वयन चुनना । ) गौरैया के आकार और रंग सके । (२) ताख । आला । (३) पटाव के नीचे की खाली का एक प्रसिद्ध पक्षी जिसका माया बहुत चमकदार पीला जगह । (४) गढ़ों में वह स्थान जहाँ तो लगी रहती हैं। होता है। यह पाला जाता है और सिखाने से, संकेत करने (५) कोट की दीवार में वह छोटा छेद या अवकाश जिसमें पर, हलकी हलकी चीजें, जैसे, कौड़ी, पती आदि, किसी से तोप का गोला पार करके जाता है । उ०—तिमि घर- स्थान से ले आता है । यह अपना घोंसला सूखे तृणों से नाल और करनाले सुतरनाल जंजाल । गुरगुराब रहँकले बहुत ही कारीगरी के साथ और इस प्रकार का बनाता है भले तह लागे बिपुल बयालें। रघुराज । कि उसके तृण बुने हुए मालूम होते हैं। बयालिस-संज्ञा पुं० [सं० द्विचत्वारिंशत्, प्रा. विचत्तालीसा ] संज्ञा पुं० [अ० बायः बेचनवाला ] वह जो अनाज तौलने का (१) चालीस और दो की संख्या । (२) इस संख्या का काम करता हो । अनाज तौलनेवाला । तौलया । उ.-- सूचक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-१२॥ प्रेमनगर में दृग बया नोवे प्रगटे आइ । दो मन को कर एक वि० जो गिनती में चालीस से दो अधिक हो। मन भाव दियो ठहराइ । रसनिधि । बयालीसवाँ-वि० [हिं० बयालिम+वॉ० (प्रत्य॰)] जो क्रम में बयाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० बया+आई (प्रत्य॰)] अन्न आदि तौलने बयालिस के स्थान पर हो । इकतालिस के बाद का । की मजदूरी । तौलाई। बयासी-संज्ञा पुं० [सं० द्वि+अशीति, प्रा. बिअसी ] (1) अस्सी बयान-संघा पुं० [फा०] (१) बखान । वर्णन | ज़िक्र । चर्चा | और दो की संख्या । (२) इस संख्या का सूचक अंक (२) हाल । विवरण । वृत्तांत । जो इस प्रकार लिखा जाता है।-१२ । क्रि० प्र०—करना ।—होना । वि. जो संख्या में अस्सी और दो हो। बयाना-संशा पुं० [अ० बै+फा० प्रत्य-आना] वह धन जो कोई बरंग-संज्ञा पुं॰ [देश॰] (१) मध्य प्रदेश में होनेवाला छोटे चीज़ खरीदने के समय अथवा किसी प्रकार का ठेका आदि कद का एक पेर जिसकी लकड़ो सफेद और मुलायम देने के समय, उसकी बातचीत पक्की करने के लिये बेचने होती है और इमारत तथा खेती के औजार बनाने के काम वाले अथवा ठेका लेनेवाले को दिया जाय । किसी काम के में आती है। इसकी छाल के रेशों से रस्से भी बनते हैं। लिये दिए जानेवाले पुरस्कार का कुछ अंश जो बातचीत पोला । (२) बस्तर । कवच। (डिं.) पक्की करने के लिये दिया जाय । पेशगी। अगाऊ। बरंगा-संशा पुं० [देश॰] (1) छत पाटने की पत्थर की छोटी विशेष-बयाना देने के उपरांत देने और लेनेवाले दोनों के लिये पटिया जो प्रायः डे हाथ लंबी और एक बित्ता चौड़ी यह आवश्यक हो जाता है कि वे उस निश्चय की पाबंदी होती है। (२) वे छोटी छोटी लकड़ियाँ जो छत पाटते करें जिसके लिए क्याना दिया जाता है । अयाने की रकम समय धरनों के बीचवारा अंतर पाटने को लगाई जाती है। पीछे से दाम या पुरस्कार चुकाते समय काट ली जाती है। उ.-बरंगा बरंगी करी यौं जरी हैं। मनो ज्वाल ने बाह बयायान-संज्ञा पुं० [फा० बियाबान ] (1) जंगल । (२) उजाए। लच्छौं करी हैं।-सूदन।। बयार, यथारिश-संज्ञा स्त्री [सं० वायु ] इवा । पवन । उ.--- बर-संज्ञा पुं० [सं० वर ] (१) वह जिसका विवाह होता हो। (क) तिनुका बयारि के यस । ज्यों भाव त्यों उड़ाइले जाह दूल्हा । दे. "वर" | उ.-(क) जयपि पर अनेक जग आपने रस । स्वा. हरिदास । (ख) देखि तरु सब अति माँही । एहि कहँ सिव तजि दूसर नाहीं।-तुलसी । (ख) दराने हैं बड़े विस्तार । गिरे कैसे बयो अचरज नेकु नहीं घर अरु बधू आप जब जाने रुक्मिनि करत बधाई । रति बयार ।-सूर । (ग) कानन भूधर बारि बयारि महा विष | अरु काम प्रगट ता दिन ते कवि मिलि कीरति गाई।--सूर। म्याधि दवा अरि घोरे ।-तुलसी । मुहा०-बर का पानी विवाह से पहले नहछू के समय का वर महा-अयार करना-ऊपर पंखा हिलाना जिससे हवा लगे। का स्नान किया हुआ पानी जो एक पात्र में एकत्र करके कन्या