पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/९६

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वरदवाना बरवर की एक रस्सी जो पगिया में बंधी रहती है। “नथिया" ब्याहना । उ०-(क) जो एहि बरइ अमर सो होई। भी इसी में बँधी रहती है। समर भूमि तेहि जीत न कोई । -तुलसी । (ख) मरे ते संज्ञा पुं० [फा० बादबान ] तेज़ हवा । (कहार) अपसरा आइ ताकौ बरति भाजि हैं देखि अब गेह नारी।- घरद्घाना-क्रि० स० [हिं० बरदाना ] बरदाना का प्रेरणार्थक सूर । (२) कोई काम करने के लिये किसी को चुनना या रूप । बरदाने का काम दूसरे से कराना। ठीक करना । नियुक्त करना । उ०-बरे विन चहुँ वेद केर बरदा-संशा स्त्री० [ देश० ] दक्षिण भारत की एक तरह की रुई। रविकुल गुरु ज्ञानी। तुलसी। (३) दान देना। संज्ञा पुं० दे० "वरधा"। + क्रि० अ० दे० "जलना"। उ०-धाई सीखी सुलखि बरदाना-क्रि० स० [हि. बरधा बैल ] गौ, भैंस, बकरी, घोडी विरह बरति बिललात । बीचहि सूवि गुलाब गौ छीटो छुई आदि पशुओं का उनकी जाति के नर-पशुओं से, संतान न गात ।-बिहारी। उत्पन्न कराने के लिये संयोग कराना । जोदा खिलाना। क्रि० स० दे० "घटना"। जुफ्री खिलाना। बरनाल-संशा पुं० [हिं० परनाला ] जहाज़ मैं वह परनाला या संयो०क्रि--डालना-देना । पानी निकलने का मार्ग जिसमें से उसका फालतू पानी कि० अ० गो, भैंस, बकरी, घोड़ी आदि पशुओं का अपनी निकलकर समुद्र में गिरता है। (लश०) जाति के नर-पशुओं से गर्भ खाना । जोड़ा खाना । बरनाला-संज्ञा पुं० दे० "परनाला" ! (लश.) जुफ्री खाना। बरनेता-संज्ञा स्त्री० [हिं० बागा वरण करना+पत (प्रत्य॰)] संयोकि-जाना। विवाह की एक रस्म जो विवाहमुहूर्त में कुछ पहले होती बग्दाफ़रोश-संज्ञा पुं० [ 10 ] गुलाम घेचनेवाला । दासों को है और जिसमें कन्या-पक्ष के लोग बर-पक्षवालों को अपने खरीदने और बेचनेवाला। यहाँ बुलाते और विवाहमंडप में उन्हें बैठाकर उनसे गणेश बरदाफ़रोशी-संज्ञा स्त्री० [फा० ] गुलाम बेचने का काम । आदि का पुजन कराते हैं। बग्दार-वि० [फा० ] (1) ले जानेवाला । वहन करनेवाला ।। बरपा-वि० [ +10 ] खड़ा हुआ । उठा हुआ । मचा हुआ। (इस ढोनेवाला । धारण करनेवाला । जैसे, बल्लम-बरदार । पाब्द का प्रयोग प्राय: झगड़ा, फयाद, आफत, कयामत (२) पालन करनेवाला । माननेवाला । जैसे, फ़र अप्रिय अशुभ बातों के लिये ही होता है।) माँबरदार। बरफ-संज्ञा स्त्री० दे. "धर्फ"। वरदाश्त-संज्ञा स्त्री० [फा० ] सहने की क्रिया या भाव । सहन । बरफी-संज्ञा स्त्री० [फा० वरफ ] एक प्रकार की प्रसिद्ध मिठाई बरदुआ-संज्ञा पुं० [देश॰] बरमे की तरह का एक औजार जो चीनी की चाशनी में गरी या पेठे के महीन महान जिससे लोहा छेदा जाता है। टुकड़े, पीया हुआ बदाम, पिस्ता या मुंग आदि अथवा बरदौन-संज्ञा पुं० [सं० बरद+और (प्रत्य॰) ] गौओं और खोवा डालकर जमाई जाती है और पीछे से छोटे छोटे चौकोर बैली के बाँधने का स्थान । मवेशीखाना। गोशाला । टुकड़ों के रूप में काट ली जाती है। इसकी जमावट आदि बरध, बरधा -संज्ञा पुं० [सं० बलीबर्द ] बैल । प्रायः बरफ की तरह होती है इसीलिये यह बरफी बरधवाना-क्रि० स० दे. "बरदवाना"। कहलाती है। बरधाना-क्रि० स० दे० "बरदाना"। बरफीदार कनारी-संज्ञा स्त्री॰ [ फा बरफादार+देश ० कनारी ] कि० अ० दे० "बरदाना"। वह स्थान जहाँ सफेद रंग के काटे अधिकता से मार्ग बरधी-संशा पुं० [देश० ] एक प्रकार का चमड़ा। में पड़ते हों ( पालकी के कहार )। बरनन -संज्ञा पुं० दे० "वर्णन"। घरफ़ी संदेस-संशा पुं० [फा० बरफी+वंग संदेश ] बरफी की घरनना -क्रि० स० [सं० वर्णन ] वर्णन करना । बयान करना।! तरह की एक प्रकार की बँगला मिठाई। उ.-बरनी रघुवर विमल जस जो दायक फल चारि ।- बरबंड*वि० [सं० बलवंत ] (1) बलवान् । ताकतवर । (२) तुलसी। प्रतापशाली । (३) उदंड। उद्वत । (४) प्रचंड । प्रखर । बरनर-संशा पुं० [ अं०] लंप का वह ऊपरी भाग जिसमें बसी | बहुत तेज । लगाई जाती है । बसी इसी भाग में जलती है और इसी के बरबत-संज्ञा पुं० [अ० ] एक प्रकार का बाजा। ऊपर से होकर प्रकाश बाहर निकलता और फैलता है। बरबरी-संज्ञा स्त्री० [ अनु०] व्यर्थ की बातें । बक बक । उ.- बरना-क्रि० स० [सं० वरण ] (1) वर या बधू के रूप में ग्रहण सुनि भृगुपति के बैन मनही मन मुसक्यात मुनि । सबै करना । पति या पती के रूप में अंगीकार करना ।। शान यह है न, वृथा ककत बरबर वचन ।--रखुराज ।