पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/९७

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बरवरी वरसगाँठ संज्ञा पुं० दे० "बर्बर"। बीच में एक बड़ा कमरा होता है और पीछे की ओर ऐसा बरबरी-संज्ञा स्त्री० [सं० वर्षरी 1(१) बर्बर या वर्षरी नामक यंत्र बना होता है जिसे वारह आदमी पैर से चलाते हैं। देश । (२) एक प्रकार की करी।। बरम्हा-संशा पुं० (११) दे. "ब्रह्मा" । (२) दे० 'बरमा"। वरवस-त्रि.० वि० [सं० बल+यश] (1) बलपूर्वक । ज़बरदस्ती। | बरम्हाना-क्रि० स० [सं० ब्रह्म ] ( ब्राह्मण का) आशीर्वाद हटात् । (२) व्यर्थ । फ़िज़ल । उ०—(क) खेलत में कोउ ! देना । उ-जाति भाँट कत औगुन लावसि । बाएँ हाथ काको गुसयों । हरि हारे जीते श्रीदामा बरबस ही क्यों। राज बरम्हावसि । --जायसी। करत रिसैयाँ।-सूर। बरम्हाव-संज्ञा पुं० [सं० ब्रह्म+आव (प्रत्य॰)] ब्राह्मणत्व । घरवाद-वि० [फा०] (1) नष्ट । चौपट । तबाह । जैसे, घर (२) ब्राह्मण का आशीर्वाद । उ०—(क) ठाढ़ देखि सब बरबाद होना । (२) व्यर्थ खर्च किया हुआ। जैसे,—सैकड़ों राजा राऊ । बाएँ हाथ दीन्ह बरम्हाऊ ।--जायसी । (ख) रुपए बरबाद कर सुके, कुछ भी काम न हुआ। तुम्हें क्या भट्ट अज्ञा को भाँट औ भाऊ। बाएँ हाथ दिये बरम्हाऊ। मिल जायगा? -जायसी। घरबादी-संज्ञा स्त्री० [फा०] नाश । खराबी। तबाही । जैसे,—इस बररे-संशा स्री० दे. "बरें"। झगड़े में तो हर तरह तुम्हारी बरबादी ही है। बरवट-संशा स्त्री० दे० "तिल्ली" (रोग)। बरम*-संज्ञा पुं॰ [सं० वर्ग ] जिरह वक्तर । कवच । शरीर त्राण । बरवल--संज्ञा पुं॰ [देश॰ ] भेड़ की एक जाति । इस जाति की उ.--असन बिनु बिनु बरम बिनु रण बच्यो कठिन भेद हिमालय पर्वत के उत्तर में जुमिला से किरंट तक कुचायें। -तुलसी। और कमाऊँ से शिकम तक पाई जाती है। यह पहाड़ी बरमा-संज्ञा पुं० [ देश ] [ श्री. अल्प० बरमी कड़ी आदि में भेड़ों के पाँच भेदों में से एक है। इसके नर के सिर पर हद देद करने का, लोहे का बना एक प्रसिद्ध औज़ार । इसमें सगि होती हैं और वह लड़ाई में ख़ब टक्कर लगाता है। लोहे का एक नुकीला छह होता है जो पीछे की ओर इसका ऊन यद्यपि मैदान की भेड़ों से अच्छा होता है, तो लकड़ी के एक दस्ते में इस प्रकार लगा होता है कि सहज भी मोटा होता है और कम्मल आदि बनाने के काम में ही में खूब अच्छी तरह धूम सके। जिस स्थान पर छेद आता है। इसका मांस खाने में रूखा होता है। करना होता है, उस स्थान पर नुकीला कोना लगाकर बरवा-संज्ञा पुं० दे० "बरवै"। और दस्ते के सहारे उसे दबा कर रस्मी की गाड़ियों की | यरवै-संशा पुं० [देश॰] १९ मात्राओं का एक छंद जिसमें १२ सहायता से अथवा और किसी प्रकार खय ज़ोर ज़ोर से । और ७ मात्राओं पर यति और अंत में "जगण" होता है। घुमाते हैं जिससे वहाँ छेद हो जाता है। इसे "ध्रुव" और "कुरंग" भी कहते हैं। उ०—मोतिन जरी संशा पुं० [सं० ब्रह्मदेश ] भारत की पूर्वी सीमा पर, किनरिया विधुरे बार। बंगाल की खाड़ी के पूर्व और आपाम तथा चीन के दक्षिण | बरपना*-क्रि० अ० दे० 'बरसना"। का एक पहाड़ी प्रदेश जो पहले वहाँ के देशी राजा के | बरपा*-संशा स्त्री० [सं० वर्षा] (1) पानी बरसना । वृष्टि । अधिकार में था, पर अब अँगरेज़ों के अधिकार में आ गया उ.-का बरपा जय कृषी सुखाने । समय चूकि पुनि का है और भारतवर्ष में मिला लिया गया है। इस प्रदेश में पछताने ।-तुलसी । (२) वर्षाकाल । बरसात । खाने और जंगल बहुत अधिकता से हैं। यहाँ चावल बहुत बरपाना*-क्रि० स० दे० "बरसाना"। अधिकता से होता है । इस देश के अधिकांश निवासी | यरषासन* -संशा पुं० [सं० वर्षाशन ] एक वर्ष की भोजन- बौद्ध है। सामग्री । उतना अनाज आदि जितना एक मनुष्य अथवा बरमी-संज्ञा पुं० [हिं० बरमा+ई (प्रत्य॰)] वरमा देश का एक परिवार एक वर्ष में खा सके। निवासी । घरमा का रहनेवाला। बरस-संशा पुं० [सं० वर्ष ] बारह महीनों अथवा ३६५ दिनों का संज्ञा स्त्री० बरमा देश की भाषा । समूह । वर्ष। साल । जैसे,—(क) दो बरस हुए, बहुत वि० वरमा-संबंधी । बरमा देश का । जैसे, बरमी चावल । बाढ़ आई थी। (ख) अभी तो वह चार बरस का बच्चा संशा स्व. गीली नाम का पेड़। विशेष-दे. है। विशेष-दे. "वर्ष"। "गोली"। यौ०-बरसगाँठ। वरम्हयोट- संज्ञा स्त्री० [हिं० बरमा (देश) अं० बोट=नाव ] | मुहा०-बरस दिन का दिन ऐसा दिन (त्योहार या पर्व आदि) प्रायः चालीस हाय लघी एक प्रकार की नाव जिसका जो साल भर में एक ही बार आता हो । बड़ा तिहवार । पिछला भाग अपेक्षाकृत अधिक चौड़ा होता है। इसके | बरसगाँठ-संशा स्त्री० [हिं० बरस+गाँठ ] वह दिन जिसमें किसी