पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/९८

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बरसना २३९१ बरही का जन्म हुआ हो। वह दिन जिसमें किसीकी आयु का एक वर्षा के जल की तरह लगातार बहुत सा गिराना । जैसे, बरस पूरा हुआ हो। जन्मदिन । सालगिरह । उ०—कुछ फल बरसाना । (३) बहुत अधिक संख्या या मात्रा में चारों न मिला हमको बरसगाँठ से । एक बरस और गया गाँठ से। ओर से प्राप्त कराना। (१) दाएँ हुए अनाज को इस विशेष-आगरे आदि की तरफ़ घर में एक तागा रहता है। प्रकार हवा में गिराना जिससे दाने अलग और भूसा अलग जिसके नाम का यह तागा होता है उसके एक एक जन्म. हो जाय । ओसाना । डाली देना । दिन पर इस तागे में एक एक गाँठ देते जाते हैं। इसी से । संयो०क्रि०—देना ।-डालना। जन्मदिन को वर्षगाँठ कहते हैं। प्राचीन समय में भी ऐसी बरसायत-संशा स्त्री० [सं० बर+अ० सायत ] शुभ घड़ी । शुभ ही प्रथा थी। मुहूर्त । बरसना-क्रि० स० [सं० वर्षण ] (1) आकाश से जल की बूंदों संशा स्त्री० दे० "बरसाइत"। का निरंतर गिरना । वर्षा का जल गिरना । मेह पड़ना । बरसावना-संशा पुं० दे० "बरसाना"। (२) वर्षा के जल की तरह ऊपर से गिरना । जैसे, फूल | बरसिंघा-संशा पुं० [ बर+हिं० सांग ] वह बैल जिसका एक सींग घरसना । (३) बहुत अधिक मान, सण्या या मात्रा में खया और दूसरा नीचे की ओर झुका हो । मैना। चारों ओर से आकर गिरना, पहुँचना या प्राप्त होना। संशा पुं० दे० "बारहसिंगा"। जैसे, रुपया बरसना। बरसी-संश स्त्री० [हिं० बरस+ई ( प्रत्य० ) वह श्राद्ध जो किसी संयोग कि०---जाना! मृतक के उद्देश्य से उसके मरने की तिथि के ठीक एक बरस मुहा०-बरस पड़ना=बहुत अधिक क्रुद्ध होकर डाटने, डपटने बाद होता है। मृतक के उद्देश्य से किया जाने वाला प्रथम लगना । बहुत कुछ बुरी भली बातें कहने लगना।। वार्षिक श्राद्ध । (8) बहुत अच्छी तरह झलकना । खुब प्रकट होना । जैसे, बरसू-संज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार का वृक्ष । उनके चेहरे से शरारत बरसती है । शोभा बरसना । (५) | बरसोदिया -संज्ञा पुं० [हिं० बरस+ओदिया (प्रत्य॰)] पूरे साल दाएँ हुए गल्ले का इस प्रकार हवा में उड़ाया जाना जिसमें | भर के लिये रखा हुआ नौकर । वह नौकर जो साल भर के दाना अलग और भूसा अलग हो जाय । ओसाया जाना। लिये रखा जाय। डाली होना। बरसौंड़ी, बरसौदी -संज्ञा स्त्री० [ परम+और्ड। (प्रत्य०) ] वार्षिक वरसाइत -संज्ञा स्त्री० [सं० वट+सावित्रा ] जेठ बदी अमावस कर । प्रति वर्ष लिया जानेवाला कर । जिस दिन स्त्रियाँ वटसावित्री का पूजन करती है। बरहंटा-संज्ञा पुं० [सं० भंटाकी ] बड़ी कटाई । कड़वा भंटा । बरसाइन-संज्ञा स्त्री० [हिं० बरम+आइन (प्रत्य०)] प्रति वर्ष बच्चा पर्याय-वार्ताकी । बृहती। महती। सिंहिका । राष्ट्रिका । देनेवाली गाय । वह गौ जो हर साल बच्चा दे। स्थूल कंटा। क्षुद्रभंटा। वरसाऊ+-वि० [हिं० बरसना+आऊ (प्रत्य॰)] बरसनेवाला।। बरह-संज्ञा पुं० [हि. ] वृक्ष आदि का पत्ता । वर्षा करनेवाला (बादल आदि)। बरहना-वि० [फा०] जिसके शरीर पर कोई वस्त्र न हो। बरसात-संज्ञा स्त्री० [सं० वर्षा, हिं० बरसना+आत (प्रत्य०)] पानी नंगा । नम। बरसने के दिन । सावन-भादों के दिन जब कि खूब वर्षा बरहम-वि० [फा०] (१) जिसे गुस्सा आगया हो । कुद्ध । (२) होती है। वर्षाकाल । वर्षाऋतु । उसेजित । भड़का हुआ। बरसाती-वि० [सं० वर्षा ] बरसात का । बरसात संबंधी । जैसे, बरहा-संशा पुं० [हिं० बहा ] [स्त्री. अल्प० परहा ] खेतों में बरसाती पानी, बरसाती मेंढक । सिंचाई के लिये बनी हुई छोटी नाली। उ.-तरह संशा पुं० [सं० वर्षा, हिं० बरसात+ई (प्रत्य॰)] (१) घोड़ों तरह के पक्षी कलोल कर रहे थे, धरहों में चारों तरफ़ जल का स्थायी रोग जो प्रायः बरसात में होता है। (२) एक बह रहा था।-रणधीर । प्रकार का आंख के नीचे का धाव जो प्राय: बरसात में होता संज्ञा पुं॰ [देश॰] मोटा रस्सा। है। (३) पैर में होनेवाली एक प्रकार की फुसियाँ जो घर- | बरही-संज्ञा पुं० [सं० बर्हि ] (1) मयूर। मोर। (२) साही सात में होती हैं। (४) घरस पक्षी। चीनी मोर। तन नाम का जंगली जंतु । उ०-पुनि शत सर छाती मह मोर । (५) एक प्रकार का ढीला कपड़ा जिसे पहन लेने से दीन्हे । बीसहु भुज बरही सम कीन्हें ।-विश्राम । (३) शरीर नहीं भीगता। अग्नि । आग । (हिं.)। (४) मुरगा।। बरसाना-क्रि० स० [हिं० बरसना का प्रे०] (1) आकाश से जल संज्ञा स्त्री० [हिं० बारह ] (1) प्रसूता का वह स्नान तथा की बूदें निरंतर गिराना । वर्षा करना । वृष्टि करना । (२) अन्यान्य क्रियाएँ जो संतान उत्पन्न होने के बारहवें दिन होती