पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१००

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सच्चाई ४६१८ सजना' सच्चाई-सश स्त्री० [हिं० सच्चा+आई (प्रत्य॰)] सच्चा होने का सजवाल-वि० [म० सजम्बाल] कोचड से युक्त । पकिल को॰] । भाव । सच्चापन । सत्यता। सज'--सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सज्जा, हिं० सजावट] १ सजने को किया या भाव। सच्चापन-सञ्ज्ञा पु० [हिं० सच्चा+पन (प्रत्य॰)] सत्य होने का भाव । मत्यता । सचाई। यो०- सजधज । २ प । बनाव । डौल । शकल। ३ शोमा। सौदर्य । मजावट । सच्चार-सञ्ज्ञा पुं० [म०] १ वह जो सपत्ति की रक्षा करता है। २ शृगार। कुशल दूत । चतुर गुप्तचर (को०) । सच्चारा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] हलदी। हरिद्रा । सज-~मचा पुं० [देश॰] एक प्रकार का बहुत लवा वृक्ष। असीन का पेड। सच्चाहट-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सच्चा+हट (प्रत्य॰)] सच्चा होने का विशेप-इस वृक्ष के पत्ते शिशिर ऋतु मे झड जाते हैं। यह भाव । सच्चापन । सत्यता। हिमालय, वगाल और दक्षिण भारत मे अधिकता से पाया सच्चिकना-वि० [सं० सचिक्करण) दे० 'सचिक्कण, 'सचिक्कन' । जाता है। इसके हीर की लकडो बहुत कडो और मजबूत होती सच्चित्-सञ्ज्ञा पुं० [म०] सत् और चित् दोनो से युक्त, ब्रह्म । है। इसकी लकडी का रग स्याही लिए भूरा होता है और यह सच्चिदानद-सञ्ज्ञा पुं० [स० सच्चिदानन्द] (सत्, चित् और पानद से जहाज, नाव आदि बनाने में काम आती है। इसे कही कही युक्त होने के कारण) परमात्मा का एक नाम। ईश्वर । असीन भी कहते है। यह बहुत लवा वृक्ष होता है । परमेश्वर। सजग-वि० [हिं० जागगा जागरुकता से युक्त)) सावधान । मचेत । सच्चिन्मय-वि० [स०] सत् और चित् अर्थात् चैतन्य से युक्त । सत् सतर्क । होशियार । उ०--(क) तव आपु३ बम होइहै जिमि पौर चैतन्य का स्वरूप। वनिया कर भूत । तदपि सजग रहिए सदा रिपु सम जानि सच्छद'-वि० [स० सच्छन्द] [वि॰ स्त्री० सच्छदा] समान अथवा एक कपूत ।--(शब्द०)। (ख) जो राजा अस सजग न होई। ही तरह के छदोवाला (को०] । काकर राज कहाँ कर होई । —जायसी (शब्द०)। सच्छद-वि० [स० स्वच्छन्द] दे० 'स्वच्छद' । सजडा-सञ्चा पुं० [हिं० सहिजन] दे० 'सहिंजन' (वृक्ष)। सच्छत-वि० [स० स+क्षत] जिसे क्षत लगा हो। घायल । सजदार--वि० [हिं० सज+फा० दार (प्रत्य॰)] जिमकी आकृति जरमी । उ०—जिनको जग अच्छत सीस धरै । तिनको जग अच्छी हो । सुदर। सच्छत कौन करे ।-केशव (शब्द॰) । सजधज-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० सज धज अन०] बनाव सिंगार । सजा- सच्छाक-मज्ञा पु० [स० सत् + शाक] अदरक का पत्ता । आदी का वट । जैसे,—उनकी बारात बहुत सजधज ने निकली थी । पत्ता [को०] 1 सजन'-~मचा पु० [स० सत् +जन (= मज्जन), [सी० सजनी] सच्छाय-वि० [म०] १ समान या एक रग का। २ भासमान् । १ मला आदमी। सज्जन । शरीफ । २ पति । भर्ता। उ०- भास्वर । जो चमकनेवाला हो। ३ छायादार। छायायुक्त । बहुत नारि सुभाग सुदरि और घोष कुमारि। सजन प्रीतम जिसमे छाया हो । जैसे,—सच्छाय वृक्ष (को०] । नाऊँ लै लै देहिं परस्पर गारि । —सूर (शब्द०)। ३ प्रिय- तमा प्राशना । यार । सच्छाश्त्र--सज्ञा पुं॰ [स०] वह ग्रथ जो सिद्धातो का अच्छे ढग से प्रतिपादन करे (को०)। सजन'-वि० [स०] जनयुक्त । जनसहित । जहाँ लोग रहते हो। जिसमे लोग हो। सच्छिद्र-वि० [सं०] १ दोपयुक्त । जिसमे ऐव हो । २ छिद्रयुक्त । छेदवाला [को०] । सजन'- सन्चा पु० १ एक ही परिवार या कुल के प्रादमी । सबधी जन । सच्छोg:--सञ्ज्ञा पु० [स० साक्षी] गवाह या दर्शक | दे० 'साक्षी' । २ जनसमाज । लोग बाग [को०)। सच्छोर--सक्षा स्वी० गवाही । दे० 'साक्षी'। सजनपद-वि० [स०] समान या एक जनपद का को०] । सच्छोल'--वि० [स०] शीलयुक्त । उदात्त गुणोवाला [को०] । सजना'-क्रि० अ० [स० सज्जा] १ भूपण, वस्त्र प्रादि से अपने को सज्जित करना । अलकृत करना। शृगार करना। उ०-तीज सच्छील --सञ्ज्ञा पु० अच्छा या भला आचरण [को०। परब सौतिन सजे, भूषन वसन सरीर। सबै मरगजे मुंह करी, सच्छलोक-वि० [स० सत् + श्लोक] जिसकी सु दर कीर्ति हो । अच्छे वहे मरगजे चीर ।-विहारी (शब्द०)। २ शोभा देना। नाम या ज्यातिवाला [को०] । शोभित होना। भला जान पडना। जैसे,—यह गुलदस्ता भी सच्युति'-सज्ञा स्त्री॰ [स०] दल बल सहित चलना । यहां खूब सजता है। ३ शस्त्रास्त्र से सुसज्जित होना। रण के सच्युति'-वि० १ रेतस् स्खलन युक्त । २ स्खलन युक्त (को०] । लिये तैयार होना। उ०- हमही चलिहै ऋषि सग अब सछद-वि० [स० स+ छन्द] १ जो छद युक्त हो। २ स्वरा- सजि सैन चल चतुरग सबै ।-केशव (शब्द०)। चागे। २ चालवाला। चालवाज। ४. समूह या परिकर सजना-क्रि० स० १ वस्तुओ को उचित स्थान मे रखना जिसमे वे से युक्त। सु दर जान पडें । व्यवस्थित करना। सजाना। सुसज्जित