पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१०१

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संजना ४६१८ मजाव' ३. जाने करना। माजना । जैसे,-मकान मजना, थाली सनना। निया। सजाने का काम । २ सजाने का भाव । २ किसी वस्तु को धारण करना । की मजदूरी। सजना'-पचा पु० [हि० सहिजन २० 'महिंजन' । सजाई पुर-मचा दी [फा० सजा ३० मजा'। 30-जो अन्य कछु सजना पु'-पझा पु० [सं० मज्जन, हिं• मुजन। पति । प्रियतम । कहब बनाई। तो विधि देवहि हमाहि सजाई।-मानम, २०१६ । सजनो-शा बी० [हिं० साजन| सखो । सहेलो । मिन्न रनो। सजागर-'व० [मं०1१ जागता हुमा । २ सजग । हाशिधार । सजनाय-० [म०] प्रसिद्ध । विख्यात । मशहूर । सजात'-वि० [सं०] १ सहजात । साथ साथ उत्पन । २ बधु बावव सजनु-वि० [सं०] महजात । एक साय उत्पन्न या निमित को०) । से युक्त (को०] । यौर-सजातकाम = परिजनो पर शासन करने की इन्छावाला। सजन्य- Tहा पुं० [स०] जो नातेदार या रिश्तेदार सबधो हो को०] । सजप - शा . [स०] १. वह जो तूप्णोम् या मौन भाव से जप मे सजात-सझा पु० भ ई को०] । रत हो । २ एक प्रकार के सन्यासो का०] । सजाति' -वि० [म०] एक जाति का । समान जाति का । जैसे,--- सजवज-मञ्चा स्त्री० [हिं० सज + बज (अनु०), " सजवज । (क) वे तो हमारे सजाति हो हैं । (ख) ये दानो वृक्ष सगाति हैं । २ समान । तुल्य (को॰) । सजन'-० [१०] १ जल से युक्त या पूर्ण । जिसम पानो हा । २ अश्रुपूर्ण (नेव) । अाँसुप्रो से पूर्ण (प्राय)। उ०-लोचन सजाति २-मक्षा पु० १ वह वालक जो एक हो जाति के माता पिता सजल मकरद भरे अरविद खुलो खुले बूदपति मधुप किशोर से उत्पन्न हो [को॰] । को।-काव्यकलाधर (शब्द०) । सजातीय-वि० [सं०] १ एक जाति या गोन का। २ ममान । यो०--सजलनयन, सजलनेन = पासूभरी आँखोवाला । तुल्य । को०)। सजातीय-सा पु० दे० 'सजाति"। सजन-वि• (म० स+ज्वाल १ स्नेहयुक्त । ज्वालायुक्त । जनता सजात्य'-वि० [स०] दे० 'सजातीय' । हुग्र।। २ दीप्न । प्रकाशित । उ०-घर नीगुल दोवउ नजल, छाजइ पुणग न माइ।-ढोला०, दू० ५०६ । सजात्य'-मचा पु० वधुत्व । माईचारा [को०) । सजला-वि० [हिं० मॅझना का अनु॰] [हिं० सजलो चार सहोदरो सजान-सज्ञा पुं० [सं० सज्ञान] १ जानकार । जाननेवाला। २ मे से तीसरा । मँझले से छोटा पर सबमे छोटे से बडा। चतुर । होशियार। सजाना-कि० स० [स० सज्जा] १ वस्तुपो को यथास्थान रखना। सजना'--वि० स्त्रो [म०] जल से भरी हुई । जलयुक्त । ययाक्रम रखना। तरतीर लगाना। २ अलकृत करना। सजवना-सहा पुं० [हि० सजना] सजने को किरा या भाव । सँवारना । शृगार करना। तैयारो। उ०-बहुतन्ह अस गढ कीन्ह मजवना । अत भई ल का जम रवना ।-जायसी (शब्द०)। सजानि--वि० [स०] पत्नी के सहित। मपत्नीक (को०) । सजाय'-सहा स्त्री॰ [स०] वह जो अपनी स्त्री के महित वर्तमान हो। सजवाई - श्री० [हिं० सज (ना) + वाई(प्रत्य॰)] १ सजवाने को क्रिया। २ सुमज्जित करवाने का भाव । ३ सजाने को सजायां -पञ्चा श्री० [हिं० सजा] दे० 'सजा' । उ०-पहहि सजाय मजदूरी । जैसे,—इस टोपो को सजवाई दो रुपए लगे हैं। नतु कहत वजाय तोहिं, बावरी न होहि वानि जानि कपिनाह की। पान हनुमान को दोहाई बलवान को, मपय महावीर को, सजवाना-क्रि० स० [हिं० सजाना का प्रे० रूप] किमो के द्वारा जो रहै पोर बांह को। -तुलसी (शब्द०)। किसी वस्तु को सुमज्जिन कराना । सुमज्जित करवाना । सजायाफता-ज्ञा पु० [फा० सजायातह] वह जिमने दद विधान जैमे,--माज कल महाराज अपनो कोठी मजवा रहे है। के अनुसार दड पाया हो। वह जो सजा नाग चुका हो। वह सजा-मना पुं० [अ० सजा'] तुक । अत्यानुप्रास । अनुप्रास [को०] । जो कैदखाने हो पाया हो। सजा--सञ्ज्ञा स्त्री० [फा० सजा] १ अपराध आदि के कारण होनेवाला सजायाव -वि० [फा० मजायाब] १ जो दड पाने के योग्य हो । दड । २ प्रत्यपकार। वुराई का बदला (को०)। ३. अयंदड दडनीय । २ जो कानून के अनुसार मजा भोग चुका हा । जिने (को०)। ४ कारागार का दड । जेल मे रखने का दड । कारागार का दर मिल चुका हो । क्रि० प्र०-रना |--देना।-पाना । -भुगतना ।--मिलना। सजार, सजारु--शा पुं० [सं० शत्यक माहिल । शल्पक । माही। होना। सजाल-वि० [स०] अयालदार । केमरयुक्त को०) । यौ०-सजायाफ्ता । सजायाव । सजाव'--मधा पुं० [म. सद्य, प्रा० मज्ज+हि० ग्राव (प्रत्य॰)] एक सजाइ पुज-मा बी० [फा० सजा] सजा । दइ । उ०--पर्वतमाहित प्रकार का दही । मलाईदार मीठा दही। धोइ व्रज डारी देउ समुद्र वहाइ। मेरो वलि योरहि ले असत विशेष-से बनाने के लिये दूध को पहले चूर जान का बनी इनको कर सजाइ ।-~सूर०, १०८२२ । है और तब उस न जानन छाडते है, म प्रकार जमा प्रा रही सजाई-पचा बी० [सं० सजाना+आई (प्रत्य॰)] १. सजाने को बहुत उत्तम होता है, उनको साडो या मनाई बहुत नाटी प्रार