पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१०३

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3 बानिग । सज्जनताई ४६२१ संटेक सज्जनताई - सचा स्री० [ म० सज्जन + हिं० ताई (प्रत्य॰) ] दे० तह के घेरे मे गोलाकार होता है। दमका रग प्राय चमकीना 'सज्जनता' । गुतागी होता है । मर्म बहत ही छोटे छोटे बीज होते हैं । मज्जना--मना श्री० [मं०J१ वह हायो जिमार नायक या मवार प्राय इमो के उठलो और पत्तियो में मज्जीनार तैयार होता चढता हो। २ अलकृत करना। मूपित करना को०)। है। यह क्षुप तीन प्रकार का पाया जाता है। अलकरण । प्रमाधन । भूपण । मजावट 'को०)। ४ सारी सज्जुई। -पना प्रो० (हि० मन + ई (प्रत्य)] 20 'सजाव' । के पहले हाथी को सज्जित करना (को०) । सज्जुता-सहा श्री० [म० मयुता] सयुगा नामक छन् । वि० ० सज्जा'--मशा सी० [सं०] १ सजाने की क्रिया या भाव । मजावट | सयुता'। २ वेशभूपा । ३ युद्ध का उपकरण । सैनिक माजमामान । सज्जुट - वि० [40] ग्रानददायक । मुखकागे । सज्जनो को प्रियकर । शस्त्र, कवच आदि (को०)। मज्जे-[मं० म] मव । पिनकुन । सपूर्ण । सज्जा'-मचा स्त्री० [स० शय्या, प्रा० मज्जा, सेज्जा] १ चारपाई । शय्या । २ चारपाई, तोशक, चादर आदि वे सामान जो किसी सज्जे -अव्य, तमाम। सर्वत । सपूर्णत । के मरने पर उसके उद्देश्य से महापान को दिए जाते है । सज्ञान'-- पसा पुं० [सं०] १ वह जिसे ज्ञान हो। ज्ञानवाला मनुष्य । विशेष दे० 'शय्यादान' । १ बुद्धिमान या चार पुरप। मयाना। ३ उम अवस्था को सज्जा'-वि० [स० सव्य] दाहिना । (पश्चिम) । पहुँचा हुअा पुरुष जिसमे वह विवेकयुक्त हो जाता है। प्रोट । सज्जाद-वि० [अ०] अाराधक । उपासना करनेवाला [को०] । सज्जादगी-पञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० गद्दीनशोनो [को॰] । मज्ञान-वि० १ ज्ञानयुक्त । २ चतुर । व् द्वमान् । ३ मचैत । सावधान । होशियार। सज्जादा-पज्ञा पु० [अ० सज्जादह] १ बिठाने का वह कपडा जिस- पर मुसलमान नमाज पढते हैं । मुसल्ला । जानमाज । २. सज्य-वि० [मं०] ज्या अर्थात् प्रत्यचा मे युक्त । (धनुप) जिमपर आसन । ३. फकीरो या पीरो प्रादि को गद्दी । प्रत्यचा चहो हो किो०] । सज्जादानशीन--पञ्चा पुं० [अ० सज्जादह + फा• नशीन। १ वह सज्या -हा श्री० [म० शय्या] दे० 'शय्या' । जो गद्दी या तकिया लगाकर वैऽता हो । २ मुसलमान पोर सज्योत्सना -मचा स्त्री॰ [2] ज्योत्सनायुक्त गत । चादनी रात । या वडा फकीर। सझ - पहा जी० [सं० सज्जा] १ सजावट । २ तैयारो । (डि०) । सज्जित-वि० [स०] १ जिसको खूब सजावट हुई हो। अलकृत । सझर-पक्षा नी० [सं० सज्जा] मेना को मज्जित करने की क्रिया। आरास्ता। २. आवश्यक वस्तुप्रो से युक्त । तैयार । जैसे,- फौज तैयार करना (दि०)। युद्ध के निमित्त सज्जित सैन्य । ३ परिधा युक्त । वस्त्र मझनी-मया ली. [२०] एक प्रकार का छोटा पक्षी जिम की पीठ आदि धारण किए हुए (को०)। ४ शस्त्रो से सजा हुआ। काली, छाती मफेद और चोच लपो होती है। ५ बद्ध । सबद । लगा हुअा (को॰) । सझिदारी-पशा पं० [हिं० पामोदारा त्रा० समिदारिन् । हिस्मे- सज्जी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० स्वजि, मजिका] एक प्रकार का प्रसिद्ध क्षार दार । साझोदार । शरीक । जो सफेदी लिए हुए भूरे रंग का होता है । सझिदारो-मग श्री० [हिं० सकिदार । ई (प्रय०)| माझेदार विशेष-सज्जी दो प्रकार को होती है। एक वह जो मालावार होने का भाव । साझा । शिरकत । माझेदारी की ओर बनाई जाती है। इसमे वडो वडो खाइयां खोदकर सझिया -सचा पु० [हिं० साझा| १ मागोदार। हिम्मेदार । २ उनमे वृक्षो को शाखाएँ और पत्ते ग्रादि भरकर आग लगा माझा । हिस्सा । भाग। देते है। जब वे जलकर जम जाते है, तब उनको राख को सट-ग्धा पु० [सं०] १ जटा । २ वह व्यक्ति जो ब्राह्मण पिता और खारी कहते हैं। इसी खारी से भूमि मे सज्जी बनाते हैं। भटिजातीय माता से उत्पन्न हो (को०) । दूसरे प्रकार की मज्जी खार (क्षार) वालो जमीन मे होती है। खार के कारण भूमि पूल जाती है और उसी फूलो हुई सटई-शा लो० [श०] अनाज रखने का एक प्रकार का पात्र । मिट्टी को सज्जी कहते है। वैद्यक के अनुसार सज्जी गरम, सटक-पघा मी [अनु० सट मे] १ मटकने को किया । धोरे ने चपन तीक्ष्ण और वायुगोला, शूल, वात, कफ, कृमिरोग आदि को होने या विसकने का व्यापार । २ नबार पीने का लबा शात करनेवाली मानी जाती है। लचीला नैचा जो मोतर छल्लेदार तार देकर बनाया जाता है। सज्जीखार-सद्या पुं० [सं० सजिका क्षार] दे० 'सज्जो' । विरोप--यह रबर को ननो पो मौति ननौना पोर लपेटने -पमा स्पी० [सं० सोवनी क्षुप जाति को एक वनम्पति योग्य होता है। अधिक लो बाम से निगालो रखा मे प्रडचन जो प्रति वर्ष उत्पन्न होती है । होती है, प्रत जोग मटक का व्यवहार करते है। विशेष-यह ६ से १८ इत्र तक ऊँची होती है। इनकी शाखाएँ ३ पतली लरनेवाली छटो। उ०-चिलर चिक्नई चटक गाँ कोमल और पत्ते बहुत छोटे पौर तिकोने होते हैं । पुष्प छोटे लफति मटक लो प्राय। नारि सनीनो सांवरो नागिन ला इसि मौर एक से तीन तक साथ लगते है। बीजकोष १४ इच जाय ।-विहारी (शब्द०)। सज्जीबूटी-