पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१३०

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(को०)। उपासना। मपत्रीकरण ४६८ सपिंड सपनाकरण--मया पु० [म०] १ ऐना वा मारना कि उसके पख सपरिकर-वि० [म०] १ अनुचर वर्ग के साथ । २ ठाठ बाट के नपीनर घम जायें । २ बहुत पीडित करना (२०] । साथ । जुलूम के साथ। सपवाकृत-वि० [न०] १ जिले ऐमा तीर लगा हो कि उसके पख सपरिक्रम वि० [५०|'सपरिकर' [को० । नर भीतर बुम ए हो । २ अाहत । घायन [को०) । सपरिच्छद वि० [म०J१ अनुचर वर्ग के माय । २ तैयारी के माथ । मपत्राकृति सानो [म० अत्यत कष्ट या पीडा। दारुण व्यथा ठाठ बाट के साथ । जुलूस के साथ । सपरिजन- वि० [स०] दे० 'सपरिकर'। उ०-बहुरि सपरिजन मरत कहु रिपि अस आयेसु दीन्ह । -मानस, २।२१३ । सपथ-सरा पु० [म० गपय] दे० 'शपथ"। उ० -भामिनि राम मपथ मत मोही।-मानस, २।२६। सपरिवृहण-वि० [म०] परिशिष्ट से युक्त (वेद) । सपरिवार-वि० [म० कुटुवियो या आत्मीयो के सहित को०] । सपदि--ग्रव्य० [म०] उसी समय । तुरत । शीघ्र । जल्द। उ०--(क) सपरिवाह -वि० [स०] १ जो पूरा भरा हो । लबरेज । २ सतह से मपदि जाड रघुपतिहि सुनाई।-नानन, ६४। (ख) मठ ऊपर बहता हुअा [को॰] । म्वपक्ष तब हृदय पिनाला। मपदि होहि पक्षो चडाला । सपरिव्यय-वि० [सं०] विविध प्रकार की सामगो, मसाले आदि के --मानम,७११२। योग से तैयार किया गया। जैसे,--खाद्य पदार्थ को०) । सपना--समा पु० [हिं० सपना] दे० 'सपना' । उ०-सुनि सिय सपरिहार-वि० [म०] १ परिहार या अपवाद युक्त । २ शालीनता मपन भरे जल लोचन । भए सोचवम सोचविमोचन ।- या भीरता से युक्त (को०] । मानम, २२२२५॥ सपर्ण--वि० [स०] पत्रयुक्त । पत्तियोवाला [को०] । सपना'-सपा पुं० [स० म्वन] १ वह दश्य जो निद्रा की दशा मे सपर्या-सज्ञा मो० [म०] १ पूजा। आराधना दिनाई पडे । नीद मे अनुभव होनेवाली बात । २ निद्रा की २ सत्कार । सेवा टहल (को०)। दशा मे दृश्य देखना। सपशु-वि० [स०] १ पशुयुक्त । जानवरो के सहित । २ जो पशुवलि मुहा०-सपना होना = देखने को भी न मिलना। दुर्लभ हो से सवधित हो (को०] । सपाट-वि० [सं० स+पट्ट, हिं० पाटा (= पीढा)] १ वरावर । सपना-मि० अ० [सं० सर्पण, प्रा० मप्पण] चलना। गतिशील हमवार । समतल । २ जिसकी सतह पर कोई उभरी या होना । उ०-लय पग रमक्किय प्रेत दिस, वर वीर सु मडिय जमी हुई वस्तु न हो । चिकना । चित्त रम । अविलघ करी मकर विन, रिपु थान सपत सु सपाटा-पज्ञा पुं० [स० सर्पण ( = मरकना)] १ चलने, दौडने या मैन मन ।---पृ० ग०, ११५३० । उडने का वेग । भोक । तेजो। जसे,-सपाट के साथ दौडना । सपरदा, मपरदाई-मरा पु० [स० सम्प्रदायो। गानेवाली तवायफ के २ तीव्र गति । दौड । झपट । झपटा । साथ (नबना, मारगी आदि) बजानेवाला । भेंडवा । ममाजी। कि० प्र०-भरना । - मारना ।—लगाना । साजिदा। यौ०-सैर सपाटा = घूमना फिरना । सपरना-कि० अ० [सं० सम्मादन, प्रा० सपाइन। १ किसी काम का सपाद-वि० [सं०] १ चरण महित । २ चतुर्थांश युक्त । ३ चतुर्थांश पूरा होना । समापन हाना। निबटना। २ काम का किया जा और अधिक के माथ । जिममे एक का चौयाई और मिला हो । सकना । हो माना । जैसे,—यह काम हममे नही सपरेगा। जैसे, नवा दो, सवा तीन, सवा चार । मुहा०-सपर जाना % मर जाना । यो०--मपादपीठ = पादपीठ के साथ । पादपीठिका मे युक्त । पैर ३ तैयारी करना । तैग होना । रखने की छोटी चौकी में युक्त। सपादमल्य = एक प्रकार का सपरब -वि० [स० नपर्व गांठयुक्त । पोरदार । उ०-बेनु हरित मत्स्य । सपादलम = सवा लाग । एक लाख पचीस हजार । मनिमय मब कोने । सरल नपरख पाहिं नहिं चोने । -मानम, सपादुक-वि० [म.] जो पादुका, खडाऊँ या चट्टी पहने हो [को०] । १६२८०। सपाल--वि० [म.] १ पशुपालक से गति या युक्त। जिसके साथ मपरम-वि० [हिं० न ( = मह)+ परन (स्वर्ग)] छून पशुपालक हो । २ राजा से युक्त को०] । यक्त । म्पृश्य । स्पर्श करने योग्य । 'अरम' का विलोम | सपिंड-मचा पुं० [म० मपिण्ड] एक ही कुल का पुरप जो एक ही उ०-ग्राम ठौर तहां माम जाइ कमे, वासना न धोवै ती पितरो को पिंडदान करता हो। एक ही खानदान का । लानन के पधारे सहा ।-यनानद, पृ० १९८ । विशेष--छह पीढी ऊपर और छह, पीढी नीचे तक के लोग सपराना-नि० म० [हिं० मपग्ना) १ काम पूग करना । निपटाना। मपिंड की गगाना मे आते है। इनके अतिरिक्त माता नाना याम करना। २ पूग र मकना । कर सकना। ३ । और पडनाना प्रादि, कन्या, कन्या का पुत्र और पौत्र आदि नहलाना । न्नान कराना। तथा पिता माता के भाई वहिन अादि वहुत से आते है। जाना।