पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१३१

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४६४९ सप्तरातु सपिंडन मपिंडन--मदा ५० [म० नपिण्डन] 7 'मपिटीकरण' को०] । भूमिक, सप्तभूमिमय, मनमोम = मान मजिनी वाना। नन- सपिंडी--पद्या स्त्री० [सं० मपिण्टी] मृतक के निमित्त वर गर्ग जिनमे मरीचिमान मरीचि या पिरणो वाना। गप्नानि । अग्नि । वह और पितगे या परिवार के मृत प्रागिया के माय पिडदान मानमहाभाग = विष्णु । मनमाम्य = मनाना। गप्न यम = द्वारा मिलाया जाता है। नात रनरो वाना। मतगत %मान गट्टिका का सप्ताह । सनगन क = जो मात गत तक चले। मामाहा । मप्ननग = गपिंडीकरण--सहा पू० [म० सपिण्डीकरण] १ ममान पितरो के मान का ममाहार । मानवर्ष = मात वप का। विदार = समान मे किया जाने वाला विगेग थाह का अनुष्ठान । यह बाह एक वृक्ष का नाम । सप्नविध = मात प्रकार का। मप्तममाधि- पहिले मृतक की मन्यु तिथि के एक वर्ष बाद किया जाता या परिकारक, मप्तममाधिपरिकारदायक = बुद्ध का एक नान । किंतु प्राजाल १२वे दिन ही किया जाने लगा है। २. किगी व्यक्ति को गपिंड का अधिकार देना (को०] । सप्तऋपि-सरा पु० [सं० मर्पि] दे० 'मानवि'। सपोड--वि० [म०] पोडा या वेदनायुक्त (को० । सप्तक'-मशा पुं० [म०] १ सात वस्तुग्री का समूह । २ संगीत मे मान स्वरो का समूह । मपीतक-मसा पुं० [सं०] घीया तुरई । नेनुवा । सप्तक'-१० [वि० सी० मप्तका, मानकी] १ मात गे युक्त । २ सपीति--मश स्त्री० [स०] बहुतो के एक माथ बैठकर पीने या खाने की जो छह के वाद हो । सात | ३ मप्नम । पातवां को०] । क्रिया । सहपान या सह मोज [को०] । सपीतिका--सहा सी० [सं०] लबी घीया या कद्दू । सप्तकी-सपा स्त्री॰ [म०] स्त्रियो का कमरवद । सपुर-वि० [स०] पुरवासियो के साथ । उ०—देखि सपुर परिवार सप्तकृत्-स्वा पुं० [सं०] विश्वेदेवा मे से एक । जनक हिय हारेउ ।--तुलसी ग्र०, पृ०५३ । सप्तगुण-वि० [सं०] मात बार और । मतगुना । सपुलक--वि० [म.] पुलक या हर्प के साथ । सप्तग्रही-महा यी० [सं०] एक ही राशि मे सात ग्रहो का योग या सपूत -सशा पुं० [स० सत्पुत्र, प्रा० सपुत्त, सउत्त] वह पुन जो अपने एकत्र होना। कर्तव्य का पालन करे। अच्छा पुन । उ०-सूर सुजान सप्तचत्वारिंश-वि० [स०] मैतालीसवां । सपूत सुलच्छन गनियत गुन गराई । —तुलसी (शब्द॰) । सप्तचत्वारिंशत्-वि० [स०] सैनालीम । सपूतो -सशा स्त्री० [हिं० मप्त+ई (प्रत्य॰)] १ सपूत होने का सप्तच्छद-सा पुं० [स०] सप्तपर्ण वृक्ष । छतिवन । भाव । लायकी । २ योग्य पुत्र उत्पन्न करनेवाली माता । सप्तजिह्व' '- महा पुं० [मं०] अग्नि, जिसकी सात जिह्वाएं मानी सपेत, सपेद-वि० [फा० सफेद, मि० स० श्वेत] सफेद । श्वेत । धवल। सप्तजिह्व-वि० मात जिह्वावाला । जिसे मात जीभ हो (को॰] । सपेती@t-सा स्त्री० [हिं० सफेदी] दे० 'सफेदी'। मप्तति-वि० [म.] मत्तर। सपेरा-सया पुं० [हिं० सँपेरा] दे० 'सपेरा' । सप्ततितम-वि० [म०] मत्तरवां । सपेला-सशा पु० [हिं० साँप + ऐला (प्रत्य॰)] माप का छोटा बच्चा । सप्तत्रिंश-वि० [मं०] मैनोगवा । उ.-जिमि कोउ कर गरुड सी खेला। डरपावै गहि स्वत्प मसत्रिंशत-वि० [स०] मैतीम । सपेला ।-मानस, ३।५० । सप्तदश-वि० [सं०] मत्तग्वाँ । सपोत-वि० [सं.] जिमके पाम नाव हो । पोत युक्त [को०] । मतदश वि० [स० मानदशन्] गत्तरह । सपोना-सशा पुं० [हिं० सांप+गोला (प्रत्य॰)] सॉप पा छोटा सप्तदशक-वि० [मं०] सवह से युक्त । निसमे मत्रह हो (को०] । सप्तदशम-वि० [म०] मत्तगहवा । सपीएमैत्र- वि० [म०] रेवती गौर अनुराधा नक्षत्र मे युवा को०] । मप्तद्वीप-मन्ना पु० [म०] पुगणानुमार पृवी ने मात बडे और सप्त--१० [सं०] गिनती मे सात । गुस विभाग। यो - गप्नाजोग = सात कोणो वाला। मनगग = एक म्यान- विशेप-सात द्वीप ये है-जबू द्वीप, महीप, नक्ष द्वीप, शाल्मलि विप जहां गगा सारा धारागो मे बहती है। सप्तगोदावरी द्वीप, न हीप, माक द्वीप और पुरवर द्वीप । एम नसे। सप्तवाल = सप्तानि । अग्नि । सप्पनति, प्लव = मात तारों ने युरा। सनदीधिति = अग्नि । सप्ता. २ पच्ची, जो मात द्वीपो ने युति है । वोर्ण = मात नारो-पांच द्रियां, मन और बुद्धि मे युमा । मत्वा-वि० [२०] १ सात भागो मे । २ नात गुना । मप्नधाटुक = सात धातु प्रो वाला। सप्नदिन, गप्नदिवम = मप्तधातु' - महा पुं० [म०] गायूर्वेद के अनुसार शरीर नान सयोजक सप्ताह । गप्नपद = मात पदो क । मणपुप =जो मान पोरमा द्रव्य अर्थात् रक्त, पित्त, मान, वमा, मज्जा, अम्थि और शुक्र । लवा हो । सप्नयोध्यग गुगुमाढ्य = एक बुद्ध का नाम । मन सतवातु'-नि० मात धानुग्रो ने बना दृपा । जैसे:-गरी। दि०१०१०-१५ गई है। वच्चा।