पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१३२

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सप्तधातु ४६५० सप्तरुचि सप्तवातु २-सबा पु० चद्रमा के घोडो मे से एक का नाम । सप्तप्रकृति-मचा स्त्री० [सं०] राज्य के सात अग जो ये है - राजा, मप्तवान्य-सञ्ज्ञा १० [स०] जो, धान, उरद आदि मात अन्नो का मेल मन्त्री, मामन, देश, कोश, गट और मेना । जो पूजा में काम आता है। सप्तवाह्य-सचा पु० [स०] वाह्नीक देश । बलख । सप्तनली-सज्ञा स्त्री॰ [म०] बहेलियो का चिडिया फैमाने का एक सप्तमगिनय-मचा पुं० [स० मप्नभगिनय] दे० 'सप्तमगी'-१ । उपकरण । कपा यिो०] । सप्तभगी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म० सप्तभदगी] १ जैन न्याय या त के नात सप्तनवति-सचा मी० [म०] सत्तानवे की सख्या-९७ । ग्रवव जिन पर स्याद्वाद की प्रतिष्ठा है। सप्तनाडिका-मचा स्त्री॰ [म० सप्ननाडिका] सिंघाडा । विशेप-ये मातो अवयव या सूत्र स्थान् जब्द ने प्रारभ होने हैं । सप्तनाडी चक्र-सचा पु० [म० सप्ननाडीचक्र] फलित ज्योतिप मे मात यथा-स्यादस्ति, म्यान्नास्ति, स्यादम्निचाम्नि, स्यादवक्तव्य, टेटी रेवाग्रा का एक चक्र जिसमे सब नक्षत्रो के नाम भरे म्यादम्नित्रातक्तव्य, स्यान्नास्तिचावक्तव्य, म्यादन्तिवना- रहते हैं और जिसके द्वारा वर्षा का आगम बताया जाता है। निचावक्तव्य । सप्तनामा-मद्धा श्री० [सं०] अादित्यभक्ता। हुलहुल नाम का पौधा । २ सप्तमगी को माननेवाला । न्यावाद का अनुयायी जैन । सप्तपचाश-वि० [म० सनप्मञ्वाग] मत्तावनवौ । यो-मप्नभगीनय = दे० 'मनभगिनय' । सप्तपचागत्-वि० [स० सप्नपञ्चागत् सत्तावन । सप्तभद्र-मज्ञा पु० [म०] १ मिरिम । शिगेप वृक्ष । २ नेवारी । नव- सप्तपत्र'-वि० [म०J१ जिसमे सात पत्ते या दल हो । २ जिसके मल्लिका । ३ गुजा । चिरभटी। वाह्न मात घोटं हो। सप्तभुगन -मज्ञा पु० [२] उपर के मात लोक । विशेप दे० 'लोक । सप्तपत्र'-सज्ञा पु० १ मोतिया । मोगरा वेला। २ सप्तपर्ण वृक्ष । सप्तभूम'-सशा पु० म०] मकान के मान खड या मरातिब । छतिवन । ३ मूर्य । सप्तपदी-मशा स्त्री० [स०] १ विवाह को एक रीति जिसमे वर और सप्तभूम-वि० सात खडो का । सतमजिता । मप्तभूमि-समा मी० [स०] १ रसातल । २ दे० 'मप्तभूम' । वधू अग्नि के चारो ओर मात परिक्रमाएँ करते हैं और जिनमे सप्तमत्र-महा पु० [स० सप्नमन्त्र] अग्नि । मनात्रि को०] । विवाह पक्का हो जाता है। भांवर । भंवरी। २ किसी बात को अग्नि की साक्षी देकर पक्का करना। सप्तम-वि० [सं०] [वि० सी० सप्तमी] मातवां । सप्तपदी पूजा-सज्ञा स्त्री० [स०] विवाह के अवसर पर होनेवाला सप्तमातृका-सचा त्री० [स०] मान माताएं या शक्तियां जिनका पूजन विवाह आदि शुभ अवनरो के पहले होता है । एक पूजन । विशेप-इसमे एक लोढा वर और वधू के आगे रखकर बर को विशेप-टनके नाम ये हैं-वाह मी या ब्राह मणी, माहेश्वरी, उमे पूजने को कहा जाता है, पर वह उमे पैर से कौमारी, वैष्णवो, वाराही, ऐंद्री या इद्राणी और चामुटा। हटा देता है। सप्तमी'-वि० स्त्री० [म.] मातवाँ । सप्तपराक-नशा ५० [सं०] एक प्रकार का तप । सप्तमी- महा स्त्री०१ किमी पक्ष की मातबी तिथि। २ किमी पक्ष सप्तपर्ण-मन्ना ५० [म०] १ छतिवन का पेड। २. एक का मानवाँ दिन। ३ अधिकरण कार की विभक्ति का नाम की मिठाई। (व्याकरण)। सप्तपर्ण-वि० जिममे सात दल या पत्ते हो (को०] । सप्तमुष्टिक-मज्ञा पु० [सं०] ज्वर की एक प्रौप धि जो कई द्रव्यो के सप्तपर्णक-सहा पु० [स०] छतिवन वृक्ष (को०] । योग से बनती है। सप्तपर्णी-सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] १ लज्जालु । लज्जावती लता । २ एक सप्तमृत्तिका -पञ्चा लो. [स०] शाति पूजन में काम आनेवाली मान मिठाई। ३ छतिवन का फन (को०)। स्थानो की मिट्टी। सप्तपलाश-सज्ञा पु० [सं०] दे० 'सप्तपण' । विशेप-राजद्वार की, गजशाला की तथा इमी प्रकार और न्यानो सप्तपाताल-लचा पु० [स०] पृथ्वी के नीचे के सात लोक जिनके नाम की मिट्टी मँगाई जातीहै। ये हैं--अतल, वितल, मुतल, रमातल, तलातल, महातल और सप्तरक्त-सचा पु० [म०] शरीर के मात अवयव जिनका रंग लाल पाताल। होता है। यया-हथेली, तलवा, जीभ अाँख या पलक का सत्पुत्री -सज्ञा स्त्री॰ [स०] तुरई की तरह की सतपुतिया नाम की निचला भाग, तालू और अोठ । तरकारी। सप्तराव-सञ्चा पु० [स०] गरुड के एक पुत्र का नाम । सप्तपुरी--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] मान पवित्न नगर या तीर्थ जो मोक्षदायक सप्तराशिक-मञ्ज्ञा पुं० [स०] गणित को एक क्रिया जिसमे सात कहे गए है। राशियाँ होती है। विशेप-प्रयोध्या, मथुरा, मापा (हरिद्वार), काशी, कारी, अव सप्तरुचि-सचा पुं० [स०] १ वह जो सात गेचि या किरणो मे युक्त निका (उज्जयिनी) और द्वारका ये मात पवित्र पुरियाँ हैं। हो । २ अग्नि का एक नाम । प्रकार